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मम्मी-पापा सिगरेट पीते हैं तो बच्चे को क्लब फुट का खतरा

भोपाल। गर्भावस्था के दौरान बीड़ी-सिगरेट का धुआं गर्भस्थ शिशु को जीवन भर के लिए क्लब फुट जैसी जन्मजात बीमारी दे सकता है। मां धूम्रपान करती है तो बच्चा सीधा धुएं के संपर्क में आ जाता है। पिता सिगरेट-बीड़ी पीता है तो मां के सांस से यह धुआं बच्चे तक पहुंचता

By Babita kashyapEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2015 02:39 PM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2015 02:42 PM (IST)
मम्मी-पापा सिगरेट पीते हैं तो बच्चे को क्लब फुट का खतरा

भोपाल। गर्भावस्था के दौरान बीड़ी-सिगरेट का धुआं गर्भस्थ शिशु को जीवन भर के लिए क्लब फुट जैसी जन्मजात बीमारी दे सकता है। मां धूम्रपान करती है तो बच्चा सीधा धुएं के संपर्क में आ जाता है। पिता सिगरेट-बीड़ी पीता है तो मां के सांस से यह धुआं बच्चे तक पहुंचता है। इससे जन्मजान विकृृतियां (कंजेनाइटल एनामली) होने की आंशका रहती है। क्लब फुट के मामले भी धूम्रपान के चलते ब़$ढ रहे हैं। यह खुलासा हाल में हुई कई रिसर्च में सामने आ चुका है। यह बात दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के हड्डी रोग विशेषषज्ञ डॉ. अनिल मेहतानी ने यहां जीएमसी में शनिवार को क्लब फुट पर आयोजित एक वर्कशाप में कही।

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उन्होंने बताया कि गर्भावस्था के शुरू के तीन महीने में कुछ दवाएं खाने से भी क्लब फुट की आशंका रहती है। इस दौरान बिना डॉक्टरी सलाह दवाएं नहीं लेना चाहिए। डॉ.मेहतानी ने कहा कि जीन में दिक्कत होने से यह बीमारी होती है। दो-तीन साल के भीतर रिसर्च में इसके लिए जिम्मेदार कुछ जीन की पहचान भी की जा चुकी है। अब यह रिसर्च चल रही है कि जीन में होने वाले बदलावों को कैसे रोका जाए जिससे यह बीमारी कम हो सके। उन्होंने बताया कि क्लब फुट का इलाज जल्द शुरू किया जाए तो इसका इलाज बहुत आसान है। बच्चा बिल्कुल सामान्य हो जाता है।

सेंटी स्टीफेंस अस्पताल दिल्ली के अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. मैथ्यू वर्गीस ने बताया कि क्लब फुट का इलाज अब पोंसेटी तकनीक से किया जा रहा है। इसमें दो महीने तक बच्चे के पैर में प्लास्टर च़$ढाया जाता है। प्लास्टर में हर हफ्ते था़े$डा बदलाव किया जाता है। साथ ही इसके लिए विशेषष जूता पहनाया जाता है। दो महीने में पैर सीधे हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि क्लब फुट के इलाज की पुरानी तकनीक (काइट टेक्निक)में सर्जरी करना प़$डती थी। इसमें सफलता करीब 60 फीसदी केस में ही मिलती थी। पोंसेटी टेक्निक में 90 फीसदी केस ठीक हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि जन्म के एक महीने के भीतर इलाज शुरू करना बेहतर होता है। इलाज में जितना देरी होगी उतनी ही मुश्किल होगी।

सफदरजंग अस्पताल से आए डॉ. विकास गुप्ता ने कहा कि री़$ढ की हड्डी में दिक्कत की वजह से भी क्लब फुट हो सकती है, इसलिए स्पाइन की भी शुरू में जांच करना चाहिए। कार्यशाला के आयोजन सचिव डॉ. पुलक शर्मा ने बताया कि जिला अस्पतालों से भी इस कार्यशाला में डॉक्टर आए थे। मकसद यह है कि छोटे अस्पताल में भी पोंसेटी तकनीक से क्लब फुट का इलाज हो सके। हमीदिया में आर्थोपेडिक्स के एचओडी डॉ. संजीव गौर ने बताया कि यह बीमारी अमूमन 1हजार में एक बच्चे को होती है। इस दौरान अस्थि रोग विशेषषज्ञ डॉ. आशीषष गोहिया, डॉ. राहुल वर्मा, पीजी स्टूडेंट समेत 100 से ज्यादा चिकित्सक मौजूद थे।

क्या है क्लब फुट हमीदिया अस्पताल के अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. दीपक मरावी ने बताया कि यह जन्मजात विकृृति हैं। इसमें बच्चे के दोनों पैर (पंजे), अंगुलिया ट़े$ढे होकर एक-दूसरे की ओर मु़$ड जाते हैं। जिससे बच्चे को चलने में दिक्कत होती है। सामान्य बच्चों की तुलना में वह काफी देर से चलना शुरू करता है, लेकिन अच्छे से चल नहीं पाता।


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