पल्मोनरी फाइब्रोसिस डरने की जरूरत नहीं
वल्र्ड पल्मोनरी फाइब्रोसिस फेडरेशन ने दुनियाभर में सितंबर को पल्मोनरी फाइब्रोसिस जागरूकता माह के रूप में मनाने का निश्चय किया है। संपूर्ण विश्व में लगभग 50 लाख लोग फेफड़े की फाइब्रोसिस नामक बीमारी से ग्रस्त हैं। समय रहते इस बीमारी की पहचान न हो पाना मरीज की मौत का कारण
वल्र्ड पल्मोनरी फाइब्रोसिस फेडरेशन ने दुनियाभर में सितंबर को पल्मोनरी फाइब्रोसिस जागरूकता माह के रूप में मनाने का निश्चय किया है। संपूर्ण विश्व में लगभग 50 लाख लोग फेफड़े की फाइब्रोसिस नामक बीमारी से ग्रस्त हैं। समय रहते इस बीमारी की पहचान न हो पाना मरीज की मौत का कारण बन सकता है, लेकिन कुछ सजगताएं बरतकर इस रोग को नियंत्रित कर इसका कारगर इलाज संभव है...
टी.बी. और दमा जैसी बीमारियों और फेफड़े की फाइब्रोसिस (पल्मोनरी फाइब्रोसिस) के लक्षणों में काफी समानता होने के कारण कुछ डॉक्टर भी इस बीमारी की पहचान करने में चूक कर जाते हंै। एक अनुमान के अनुसार विश्व में एक लाख की जनसंख्या पर 15 रोगी फेफड़े की
फाइब्रोसिस से पीडि़त हैं।
प्रकार
फेफड़े की फाइब्रोसिस के अनेक प्रकार होते
हैं, जिन्हें दो प्रमुख भागों में बांटा गया है...
1.आई.पी.एफ. (इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस): जो लगभग 50 फीसदी मरीजों में पाया जाता है।
2.नॉन आई.पी.एफ: जो अन्य 50 फीसदी
मरीजों में पाया जाता है।
लक्षण
- सूखी खांसी आना।
- लगातार सांस फूलना।
- भूख कम लगना।
- शरीर का कमजोर हो जाना
याद रखें, इस बीमारी के लक्षण टी.बी. या
अस्थमा या दमा के लक्षणों से काफी समानता रखते हैं। इसलिए सामान्य लोग इस बीमारी को टी.बी. या अस्थमा समझ लेते हैं।
जांचें
पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट (पी.एफ.टी.) नामक जांच के जरिए दमा और फेफड़े की फाइब्रोसिस मेंअंतर आसानी से किया जा सकता है। फेफड़े की फाइब्रोसिस का सटीक पता लगाने के लिये फेफड़े का सी.टी. स्कैन (जिसे एच.आर. सी.टी. के नाम से जाना जाता है) कराया जाता है। अपने देश में एक्स रे के हर धब्बे को टी.बी. समझा जाता है। इसलिए यहां पर यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि जैसे हर चमकती चीज सोना नहीं होती, वैसे ही एक्स-रे का हर धब्बा टी.बी. नहीं होता।
उपचार
बीमारी की प्रारंभिक अवस्था में स्टेरायड,
एन-एसिटाइल, सिस्टीन, परफेनिडोन आदि
दवाओं का प्रयोग किया जाता है। बीमारी के
गंभीर पर होने पर फेफड़े कमोवेश मधुमक्खी
के छत्ते की भांति दृष्टिगत होने लगते है (जिसे हनीकॉम्बिंग कहते हैं)। इस अवस्था में ऑक्सीजन देना ही आखरी उपचार बचता है। फेफड़े
की फाइब्रोसिस में फेफड़े का प्रत्यारोपण (लंग ट्रांसप्लान्टेशन) भी किया जा सकता है। ऐसा
ट्रांसप्लांटेशन हमारे देश में अभी शुरुआती अवस्था में है और अत्यधिक खर्चीला भी हैं।
टीकाकरण फेफड़े की फाइब्रोसिस में संक्रमण रोकने के लिये समय-समय पर टीकाकरण
(वैक्सीनेशन) करवाना आवश्यक है। जैसे
इन्फ्लूएन्जा वैक्सीन प्रतिवर्ष डॉक्टर के
परामर्श से लगवाएं। इसी तरह न्यूमोकोकल
वैक्सीन भी हर पांच वर्ष में लगवाएं।
इन बातों पर दें ध्यान
वैसे तो फेफड़े की फाइब्रोसिस के कारण
अज्ञात है,लेकिन ऐसा देखा गया है कि जिन
लोगों को गैस्ट्रो इसोफेगियल रीफ्लक्स डिजीज
(जी ई आर डी) की समस्या होती है, उनमें
फेफड़ों की फाइब्रसिस होने की आशंकाएं
ज्यादा होती हंै। कुछ दवाओं के प्रभाव के
कारण फेफड़ों की फाइब्रोसिस हो सकती है।
जैसे कैंसर की दवाएं।
हालांकि मेडिकल साइंस ने अभी तक यह
साबित नहीं किया है, लेकिन ऐसा देखा गया
है कि प्राणायाम भी फेफड़ों की फाइब्रोसिस
के शुरुआती दौर में लाभप्रद हो सकता है।
वहीं धूम्रपान करने वाले लोगों में फेफड़ों की
फाइब्रोसिस होने की संभावना ज्यादा होती है।
यह फर्क है टी.बी. और फेफड़े की फाइब्रोसिस में...
टी.बी.
1.बुखार आता है।
2. खांसी में खून आता है।
3.सामान्यत: एक्स-रे में धब्बा ऊपरी
हिस्से में पाया जाता है।
4. सामान्यत: मरीज के नाखून तोते की
चोंच (क्लबइंग) की तरह नहीं होते हंै।
5. टी.बी. में बलगम की जांच होती है,
जिसमें टी.बी. के जीवाणु पाए जाते हैं।
फाइब्रोसिस
1. सामान्यत: बुखार नहीं आता।
2. सामान्यत: खांसी में खून नहीं आता है।
3. सामान्यत: एक्स-रे में धब्बा निचले
हिस्से में पाया जाता है।
4. सामान्यत: मरीज के नाखून तोते की
चोंच की तरह होते हैं।
5. फाइब्रोसिस में यह जांच नेगेटिव आती
है।
कैसे अंतर करें अस्थमा और फाइब्रोसिस में...
अस्थमा
1.सांस फूलने का मर्ज बचपन से होता है।
2. कभी-कभी सांस फूलती है और कभीकभी
नहीं फूलती है।
3. सामान्यत: मरीज के नाखून तोते की
चोंच की तरह नहीं होते हैं।
4. दमा या अस्थमा में एक्सरे व सी टी
स्कैन दोनों सामान्य होते हैं।
फाइब्रोसिस
1. सांस फूलने की बीमारी सामान्यत: 40
वर्ष के बाद शुरू होती है।
2. सांस फूलना हमेशा जारी रहता है
3. सामान्यत: मरीज के नाखून तोते की
चोंच की तरह होते हैं।
4. जबकि फाइब्रोसिस में एक्सरे व सीटी
स्कैन इन दोनों में ही धब्बे हो सकते हैं।
डॉ.सूर्यकांत त्रिपाठी
प्रमुख: पल्मोनरी मेडिसिन विभाग
चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ