जानिए दमा से जुड़ी सही जानकारियां
आज भी दमा के संदर्भ में देश में अनेक भ्रांतियां व्याप्तहैं, जिनका तथ्यों की रोशनी में निराकरण करना जरूरी है। भ्रांति: यह छुआछूत की बीमारी है। तथ्य: दमा एक एलर्जी जनित रोग है। यह एक मनुष्य से दूसरे को नहीं लग सकता है। हालांकि सगे संबंधियों में यदि यह बीमारी है, तो परिवार के सदस्
आज भी दमा के संदर्भ में देश में अनेक भ्रांतियां व्याप्तहैं, जिनका तथ्यों की रोशनी में निराकरण करना जरूरी है।
भ्रांति: यह छुआछूत की बीमारी है।
तथ्य: दमा एक एलर्जी जनित रोग है। यह एक मनुष्य से दूसरे को नहीं लग सकता है। हालांकि सगे संबंधियों में यदि यह बीमारी है, तो परिवार के सदस्यों में इस रोग के होने की संभावना बढ़ सकती है। अगर माता-पिता दमा से पीड़ित हैं, तो उनके बच्चों में इसके होने की संभावना अधिक होती है।
भ्रांति: इनहेलर्स दमा का अंतिम इलाज है।
तथ्य: अतीत में दमा का इलाज इंजेक्शन और खाने की दवाओं से किया जाता था, लेकिन वर्तमान समय में इनहेलेशन थेरेपी इसके इलाज में कारगर साबित हुई है। किसी भी टैब्लेट या कैप्सूल खाने पर उसका 90 प्रतिशत भाग शरीर के विभिन्न अंगों में जाता है, जो दुष्प्रभाव का कारण बनता है। शेष 10 प्रतिशत भाग ही फेफड़े में पहुंचता है, जो प्रभावकारी होता है। इनहेलर के द्वारा वही 10 प्रतिशत दवा सीधे सांस नली में जाती है और प्रभावकारी होती है। इसलिए इनहेलर दमा का प्रथम उपचार है।
भ्रांति: एक बार इनहेलर लेने पर इसकी आदत पड़ जाती है।
तथ्य: यह बिल्कुल गलत धारणा है। इनहेलर ही दमा में सबसे प्रभावकारी और प्रारंभिक चिकित्सा पद्धति है। इसकी पीड़ित व्यक्ति को आदत नहीं पड़ती।
भ्रांति: गर्भावस्था में इनहेलर का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
तथ्य: यह एक महत्वपूर्ण भ्रांति है। गर्भावस्था में सभी तरह के इनहेलर्स सुरक्षित और प्रभावकारी होते हैं। यहां तक कि स्टेरायड इनहेलर्स भी पूर्णतया गर्भस्थ शिशु और भावी मां के लिए सुरक्षित हैं।
गर्भावस्था में यदि इनहेलर द्वारा दमा को नियंत्रित नहीं किया जाता, तो गर्भस्थ शिशु का विकास भी प्रभावित होता है और गर्भवती महिला को प्रसव के दौरान कई समस्याओं से जूझना पड़ता है।
भ्रांति: दमा से प्रभावित बच्चा सामान्य जीवन नहीं जी सकता।
तथ्य: यह पूर्णतया गलत धारणा है। ऐसे सभी बच्चे जो दमा से पीड़ित हैं, वे सामान्य जीवन जी सकते हैं, बशर्ते उनके दमा को इनहेलर द्वारा नियंत्रित किया जाए। अगर दमा का नियंत्रण ठीक से नहीं होता है, तो बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
(डॉ.अशोक कुमार सिंह, सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट)