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गर्भावस्था वजन के बारे में वजनदार तथ्य

गर्भधारण को प्रभावित करने वाले कई कारणों में वजन भी एक महत्वपूर्ण कारक है। विवाहित महिला के लिए अधिक वजन की समस्या के अलावा कम वजन की समस्या भी गर्भधारण में समस्या पैदा कर सकती है, किंतु इस समस्या का इलाज संभव है...

By Babita kashyapEdited By: Published: Tue, 22 Dec 2015 04:52 PM (IST)Updated: Tue, 22 Dec 2015 04:59 PM (IST)
गर्भावस्था वजन के बारे में वजनदार तथ्य

गर्भधारण को प्रभावित करने वाले कई कारणों में वजन भी एक महत्वपूर्ण कारक है। विवाहित महिला के लिए अधिक वजन की समस्या के अलावा कम वजन की समस्या भी गर्भधारण में समस्या पैदा कर सकती है, किंतु इस समस्या का इलाज संभव है...

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गर्भधारण के समय वजन का काफी महत्व होता है। वजन की बात करते ही लोगों के दिमाग में

सिर्फ मोटापा ही ध्यान में आता है। मोटापा तो कई समस्याओं कारण है ही, लेकिन यह जरूरी नहीं हैं

कि सिर्फ अधिक वजन से ही गर्भधारण प्रभावित हों, कम वजन से भी गर्भधारण में कई प्रकार की समस्याएं

उत्पन्न हो सकती हैं। कम वजन और अधिक वजन के होने से गर्भावस्था में कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

जैसे... गर्भावस्था के दौरान समस्याएं- कम वजन की महिलाओं में प्रीटर्म बर्थ (निर्धारित समय से पहले जैसे

आठवें महीने में) का खतरा भी होता है। प्रीटर्म न भी हो, तो बच्चे का वजन सामान्य से कम होता है। इस

कारण बच्चे को भी कई परेशानियां हो सकती हैं। जैसे एनीमिया या कुछ अन्य प्रकार की समस्याएं भी हो

सकती हैं। इसलिए जो महिलाएं गर्भधारण करने की इच्छुक हैं, वे वजन सामान्य बनायें रखें। गर्भधारण के

संदर्भ में उम्र के अनुसार आदर्श वजन को इस फॉर्मूले से निकाला जा सकता है...

आदर्श वजन = लंबाई -100। इस फार्मूले का

आशय यह है कि यदि आपकी लंबाई 155 सेमी. है, तो

आपका वजन 55 किलो होना चाहिए। इस प्रकार वजन

को संतुलित रखकर समस्याओं से बचा जा सकता है।

मोटापा कई तरीके से गर्भधारण को प्रभावित कर

सकता है।

हार्मोन पर प्रभाव

वजन बढऩे से हार्मोन प्रभावित होते हैं। इससे अंडाणु बनने की प्रक्रिया (ओव्यूलेशन) प्रभावित होती है। इस कारण गर्भधारण की संभावना कम हो जाती है।

पीसीओएस की समस्या- ज्यादा वजन से पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस)

नामक समस्या पैदा होती है। इस समस्या में महिलाओं में इंसुलिन का स्तर बढ़ता है। इसके कारण ओव्यूलेशन

का घटना, अनियमित माहवारी होना और टेस्टोस्टेरॉन नामक हॉर्मोन में वृद्धि होती है। पीडि़त महिला को कुछ

किलो वजन घटाकर गर्भधारण का प्रयास करना चाहिए। इससे कोई दवा लिए बगैर समस्या को दूर

किया जा सकता है।

गर्भपात का खतरा- वजन बढऩे के कारण

गर्भपात का खतरा भी बढ़ जाता है। अत्यधिक वजन के कारण कई बार आईवीएफ ट्रीटमेंट में भी परेशानी

आती है।

फर्टिलिटी होती है प्रभावित- कम वजन का अर्थ है शरीर में फैट का प्रतिशत कम होना। ओव्यूलेशन

और माहवारी के समय पर होने के लिए बॉडी फैट 22 प्रतिशत अवश्य होना चाहिए।

22 से 34 वर्ष की उम्र में गर्भधारण की क्षमता बेहतर मानी जाती है।


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