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दमा पर दमदार नियंत्रण

विश्व स्वास्थ्य संगठन की 'ग्लोबल बर्डन ऑफ अस्थमा- नामक रिपोर्ट के अनुसार संप्रति विश्व में 30 करोड़ लोग दमा (अस्थमा) से पीडि़त हैं। इस समय भारत में यह संख्या लगभग 3 करोड़ है। जाहिर है, देश में दमा के प्रसार की स्थिति काफी गंभीर है, लेकिन कुछ सुझावों पर अमल

By Babita kashyapEdited By: Published: Tue, 05 May 2015 02:21 PM (IST)Updated: Tue, 05 May 2015 02:34 PM (IST)
दमा पर दमदार नियंत्रण

विश्व स्वास्थ्य संगठन की 'ग्लोबल बर्डन ऑफ अस्थमा- नामक रिपोर्ट के अनुसार संप्रति विश्व में 30 करोड़ लोग दमा (अस्थमा) से पीडि़त हैं। इस समय भारत में यह संख्या लगभग 3 करोड़ है। जाहिर है, देश में दमा के प्रसार की स्थिति काफी गंभीर है, लेकिन कुछ सुझावों पर अमल कर इस रोग पर काबू पाया जा सकता है...

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दमा में रोगी की सांस की नलियों में कुछ कारकों (एलर्जन्स) के प्रभाव से सूजन और सिकुडऩ आ जाती है। इस कारण रोगी को सांस लेने में तकलीफ होती है। वस्तुत: दो तिहाई से अधिक लोगों में दमा बचपन से ही प्रारंभ हो जाता है। इस कारण बच्चों को खांसी होना, सांस फूलना, सीने में भारीपन, छींक आना व नाक बहना

और बच्चे का समुचित शारीरिक विकास न हो पाना जैसे लक्षण प्रकट होते हैं। देश के एक तिहाई लोगों में दमा के लक्षण युवा अवस्था में प्रारम्भ हाते हैं।

कारण

दमा के कुछ प्रमुख कारण ये हैं...

आनुवांशिक कारण: अगर परिवार के किसी सदस्य- मां या पिता को दमा रहा हो,

तो उनके बच्चों में इस रोग के होने का जोखिम बढ़ जाता है। घर के अंदर मौजूद कारक (इनडोर एलर्जन): जैसे धूल आदि। किताबों और अन्य वस्तुओं पर जमी धूल। इसके अलावा

ये कारण भी शामिल हो सकते हैं...

- घरेलू धूल में उपस्थित कीट।

- पालतू जानवरों के शरीर पर उपस्थित एलर्जन।

- कॉकरोच और फफूंदी (सीलन के कारण)।

- इत्र व परफ्यूम का इस्तेमाल।

- सोफा कवर, कारपेट, परदे आदि पर जमने वाली गर्दा।

- मच्छरों के खिलाफ प्रयोग किये जाने वाली कॉइल का धुआं।

- पूजा में प्रयोग होने वाली धूप बत्ती, अगरबत्ती आदि।

बाहर उपस्थित कारक ( आ उ ट डो र एलर्जन): वाहनों से निकलने वाला धुआं

आदि। कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं...

- पौधे के फूलों में पाए जाने वाले सूक्ष्म कणों को परागकण कहते हैं, जो एलर्जी के प्रमुख कारक हैं।

- वायु प्रदूषण।

- कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ जिनसे कुछ लोगों में अस्थमा बढ़ सकता है। ये हैं- अंडा,

मांस, मछली, फास्ट फूड्स, शीतल पेय और आइसक्रीम आदि।

अन्य कारण

विषाणुओं (वाइरस) का संक्रमण। जैसे इंफ्लूएंजा और राइनोवाइरस आदि।

इसके अलावा जीवाणुओं का संक्रमण, कुछ दवाएं जैसे एस्पिरिन आदि। इसी तरह एसिडिटी, तनाव व धूम्रपान और शरीर में मौजूद हार्मोन्स के कारण भी दमा की समस्या पैदा हो सकती है।

अत्यधिक मोटापा भी दमा के जोखिम को बढ़ा देता है।

जब अस्थमा के कारक मरीज के संपर्क में आते हैं, तो शरीर में मौजूद विभिन्न

रासायनिक पदार्थ (जैसे हिस्टामीन) स्रावित होते हैं। इस कारण सांस नलिकाएं संकुचित

हो जाती हैं। सांस नलिकाओं की भीतरी दीवार में लाली और सूजन आ जाती है और

उन में बलगम बनने लगता है। इन सभी से दमा के लक्षण पैदा होते हैं।

डायग्नोसिस

दमा का निदान (डायग्नोसिस) अधिकतर लक्षणों के आधार पर और कुछ परीक्षण

करके जैसे सीने में आला लगाकर म्यूजिकल साउंड (रॉन्काई) सुनकर और फेफड़े की

कार्यक्षमता की जांच (पी.ई.एफ. आर. और स्पाइरोमीट्री) द्वारा की जाती है।

रोकथाम

- मौसम बदलने से सांस की तकलीफ बढ़ती है। मौसम बदलने के 4 से 6 सप्ताह

पहले ही सजग हो जाना चाहिए और डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।

- इन्हेलर व दवाएं डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही लेनी चाहिए।

- ऐसे कारक जिनकी वजह से सांस की तकलीफ बढ़ती है या जो सांस के दौरे को उत्पन्न करते हैं उनसे बचाव करना चाहिए। जैसे-धूल, धुआं, नमी, व धूम्रपान आदि।

- ऐसे खाद्य पदार्थ, जो रोगी की जानकारी में स्वयं आ जाते है कि वे नुकसान कर रहे

है, उनसे परहेज करना चाहिए।

- सर्दी, जुकाम, गले की खराश या फ्लू जैसी बीमारी का तुरंत इलाज कराना चाहिए,

क्योंकि इन रोगों से दमा के बिगडऩे का खतरा रहता है।

- सेमल की रुई युक्त बिस्तरों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कारपेट, बिस्तर व

चादरों की नियमित रूप से और सोने से पूर्व इनकी अवश्य सफाई करनी चाहिए।

- व्यायाम या मेहनत का कार्य करने से पहले इन्हेलर अवश्य लेना चाहिए। यदि रात

में सांस फूलती है तो रात में सोने से पहले ही इन्हेलर और अन्य दवाएं उचित चिकित्सकीय सलाह से लें।

- बच्चों को लंबे रोएंदार कपड़े न पहनाएं व रोएंदार खिलौने खेलने को न दें।

- घर की सफाई, पुताई व पेंट के समय रोगी को घर से बाहर रहना चाहिए।

उपचार

दमा के दौरे को या इस रोग की तकलीफ को कम करने में इन्हेलर बेहद कारगर

साबित हुए हैं। इन्हेलर से सांस के जरिए दवा सीधे फेफड़े में पहुचंती है। इस कारण

दवा सीधे फेफड़ों पर असर करती है और उसका शरीर के अन्य अंगों पर न्यूनतम

प्रभाव पड़ता है। दमा के इलाज के लिए दो प्रमुख तरीके के इन्हेलर हैं...

रिलीवर इन्हेलर: ये जल्दी से काम करके सांस नलिकाओं की मांसपेशियों का तनाव

ढीला करते है और तुरन्त असर करते हैं। इन्हें सांस फूलने पर लेना पड़ता है।

कंट्रोलर इन्हेलर: ये सांस नलियों में उत्तेजना और सूजन घटाकर उन्हें अधिक

संवेदनशील बनने से रोकते हंै और दमाल के गंभीर दौरे का खतरा कम करते हंै। इन्हें

लक्षण न होने पर भी लगातार लेना चाहिए।

अन्य आधुनिक उपचार

1. एंटी आईजीई थेरेपी: यह नये प्रकार का उपचार है, जो दमा के ऐसे गंभीर रोगियों को

दिया जाता है, जिनके मामले में इन्हेलर भी कारगर नहीं होते।

2. ब्रॉन्कियल थर्मोप्लास्टी: इस विधि में सांस नलियों में मौजूद बढ़ी हुई मांसपेशियों

की मोटाई को थर्मल एनर्जी का प्रयोग करके मशीन द्वारा

डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी

प्रमुख-पल्मोनरी मेडिसिन विभाग

चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ


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