ऑस्टियो अर्थराइटिस ऐसे आएगा काबू में
अर्थराइटिस का आशय जोड़ों की सूजन से होता है। इसलिए ऐसी किसी बीमारी जिसके कारण जोड़ों में सूजन, दर्द और तनाव आदि समस्याएं पैदा हो जाती हैं, उन्हें अर्थराइटिस कहा जाता है। अगर ऐसी समस्या बार-बार होती है या बहुत समय तक रहती है, तो यह जोड़ों के कार्टिलेज, हड्डियों
अर्थराइटिस का आशय जोड़ों की सूजन से होता है। इसलिए ऐसी किसी बीमारी जिसके कारण जोड़ों में सूजन, दर्द और तनाव आदि समस्याएं पैदा हो जाती हैं, उन्हें अर्थराइटिस कहा जाता है। अगर ऐसी समस्या बार-बार होती है या बहुत समय तक रहती है, तो यह जोड़ों के कार्टिलेज, हड्डियों और समीप के टिश्यू को क्षति पहुंचाती है और दर्द के कारण व्यक्ति की जीवन-शैली पर सीधा प्रभाव डालती है। वैसे तो अर्थराइटिस के अनेक प्रकार हैं, परंतु इनमें सबसे ज्यादा लोग ऑस्टियो अर्थराइटिस से ही प्रभावित होते हैं।
क्या है ऑस्टियो-अर्थराइटिस बढ़ती उम्र में ऑस्टियो अर्थराइटिस के मामले कहीं ज्यादा सामने आते हैं। इस अर्थराइटिस में जोड़ बनाने
वाली हड्डियों के ऊपर पायी जाने वाली कार्टिलेज की सतह धीरे-धीरे घिस कर खत्म होती जाती है। घिसी हुई सतह आपस में एक-दूसरे से रगडऩे लगती है। इस वजह से दर्द और सूजन आदि रहने लगती है। जोड़ों में पाए जाने वाले साइनोवियल फ्लूड या द्रव के क्षीण होने से यह प्रक्रिया और तेज हो जाती है।
कुछ जोड़ों पर ज्यादा असर ऑस्टियो-अर्थराइटिस शरीर के किसी जोड़ को प्रभावित कर सकता है, लेकिन यह ज्यादातर वजन पडऩे वाले जोड़ों जैसे घुटने और कूल्हे को सबसे अधिक प्रभावित करता है। ऑस्टियो अर्थराइटिस की चार अवस्थाएं होती हैं और उसके अनुसार ही इलाज होने पर लाभ मिलता है।
इलाज
ऑस्टियो अर्थराइटिस की पहली अवस्था में दवाओं के साथ विस्को सप्लीमेंट का इंजेक्शन लगाया जाता है। रोग की दूसरी अवस्था में दवाओं के साथ दूरबीन विधि (आर्थोस्कोपी) के जरिये जोड़ की खुदरी सतह को चिकना बनाया जाता है। वहीं अर्थराइटिस की तीसरी अवस्था (जहां कार्टिलेज पूरी तरह से क्षतिग्रस्त नहीं हुए हैं, लेकिन पैर टेढ़ा हो गया है) में 'हाई टिबियल ऑस्टियोटॅमीÓ की जाती है या यूनीस्पेसर इंप्लांट डाला जाता है। ऑस्टियो अर्थराइटिस की चौथी अवस्था में (जब जोड़ों के कॉर्टिलेज पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके हों) तब जोड़ प्रत्यारोपण ही अंतिम और कारगर विकल्प है।
आर. के. सिंह
आर्थोपेडिक एन्ड स्पाइन सर्जन