मस्कुलर डिस्ट्राफी का माकूल इलाज
स्टेम सेल थेरेपी ने लाइलाज माने जाने वाले मस्कुलर डिस्ट्राफी नामक रोग में बेहतरीन परिणाम दिए हैं। ये परिणाम क्या हैं...?
स्टेम सेल थेरेपी ने लाइलाज माने जाने वाले मस्कुलर डिस्ट्राफी नामक रोग में बेहतरीन परिणाम दिए हैं। ये परिणाम क्या हैं...?
मस्कुलर डिस्ट्राफी मूल रूप से मांसपेशियों के रोगों के एक समूह को कहते हैं, जिसमें लगभग 80 प्रकार की बीमारियों को शामिल किया जाता है। इन रोगों में सबसे खतरनाक और जानलेवा बीमारी ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी है। दुनिया भर में 3500 बच्चों में से एक बच्चा इस रोग से ग्रस्त होता है। दुनिया में भारत को स्टेम सेल थेरेपी के डेस्टिनेशन (उपयुक्त स्थान) के रूप में देखा जा रहा है। इसलिए जब मारीशस स्थित मस्कुलर डिस्ट्राफी एसोसिएशन को भारत में इस सुविधा की जानकारी मिली, तब उन्होंने ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी से पीडि़त बच्चों को इलाज के लिये भारत भेजना शुरू किया। बीते दिनों 10 वर्षीय टोशन रामखिलावन स्टेम सेल थेरेपी के लिए देश में लगभग दो माह तक रुका था और इस छोटे से समय में भी उसकी मांसपेशियों की ताकत लगभग तक 25 प्रतिशत वापस आ चुकी है, जबकि वह पिछले एक वर्ष से अपने बिस्तर पर ही सीमित रह गया था।
राहत की दरकार
चूंकि मारीशस के मरीज वहां की सरकार और मस्कुलर डिस्ट्राफी एसोसिएशन से मदद पाते हैं। इसलिए किसी प्रकार अपना इलाज करवा लेते हैं, लेकिन अपने देश के गरीब मरीजों का बुरा हाल है। स्टेम सेल थेरेपी ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी के अलावा अन्य प्रकार की मस्कुलर डिस्ट्राफी के इलाज में अन्य चिकित्सकीय विधियों की तुलना में बेहतर है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस रोग के इलाज में ज्यादातर चिकित्सक कॉर्टीसोन या स्टेरायड नामक दवाओं का प्रयोग करते हैं, लेकिन अंत में ये दवाएं अपने दुष्प्रभावों के चलते बच्चों में डाइबिटीज, शरीर में पानी भरना और हड्डियों का खोखलापन आदि विकार उत्पन्न कर देती हैं। जबकि स्टेम सेल थेरेपी में शरीर में ऊर्जा और स्फूर्ति के साथ नई मांसपेशियों का निर्माण होता है।
मुख्य लक्षण
- शुरू में बच्चा तेज चलने पर गिर जाता है।
- पीडि़त बच्चा जमीन से उठने में घुटने का सहारा लेकर या फिर घुटने पर हाथ रखकर उठता है।
- वह मुश्किल से सीढिय़ां चढ़ पाता है या फिर धीमे-धीमे चढ़ता है।
- पैर की पिंडलियां मोटी हो जाती हैं।
- बच्चा थोड़ा सा भी दौडऩे पर थक जाता है।
कारण
मस्कुलर डिस्ट्राफी जीन में आयी विकृति के कारण होता है, लेकिन इसके लक्षण सिर्फ लड़कों (मेल चाइल्ड) में ही पाए जाते हैं। जबकि लड़कियों में जीन विकृति आने पर वे कालांतर में विवाह के बाद अपनी संतानों को ये बीमारियां दे सकती हैं।
रोकथाम
गर्भवती महिलाओं को 10 से 12 हफ्ते के गर्भकाल के दौरान एमनिओटिक फ्लूड्स की
जेनेटिक जांच करानी चाहिए।
डॉ. बी.एस.राजपूत स्टेम सेल ट्रांसप्लांट सर्जन
क्रिटीकेयर हॉस्पिटल, जुहू, मुंबई