अमेरिकी शोधकर्ताओं ने बनाया ऐसा कैप्सूल, अब रोज-रोज नहीं खानी होंगी मलेरिया की गोलियां
भविष्य में इसमें मलेरियारोधी मिश्रण भरकर इस संक्रामक बीमारी पर प्रभावशाली तरीके से अंकुश लगाया जा सकेगा।
वाशिंगटन, प्रेट्र। आने वाले दिनों में आपको रोज-रोज मलेरिया की गोलियां नहीं खानी पड़ेंगी। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने एक ऐसा कैप्सूल बनाने का दावा किया है, जो पेट में जाकर दो सप्ताह तक सक्रिय रह सकता है। उनका दावा है कि भविष्य में इसमें मलेरियारोधी मिश्रण भरकर इस संक्रामक बीमारी पर प्रभावशाली तरीके से अंकुश लगाया जा सकेगा।
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी) के वैज्ञानिकों ने यह सफलता हासिल की है। उन्होंने बताया कि पेट में जाने के बाद यह कैप्सूल धीरे-धीरे फूलता है और इसके अंदर का मिश्रण उसी अनुपात में बाहर निकलता है। ऐसे में यह लंबे समय तक सक्रिय रहता है। इससे बार-बार दवा लेने की झंझट से भी छुटकारा मिल सकता है। कैप्सूल का आइवरमेक्टिन दवा के साथ परीक्षण किया गया है। यह दवाई पारासाइट से होने वाली बीमारियों से निपटने में मददगार है। मलेरिया प्लाजमोडियम परासाइट से होता है। मादा एनाफिलीज मच्छर इसके वाहक हैं। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि नए कैप्सूल से मलेरिया उन्मूलन अभियान को प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
नए कैप्सूल की जटिल बनावट
एमआइटी के प्रोफेसर रॉबर्ट लैंगर ने बताया कि नया कैप्सूल मलेरिया के अलावा अन्य बीमारियों से निपटने में भी सक्षम है। खासकर अलजाइमर और अन्य मानसिक बीमारियों में इसके कारगर होने की उम्मीद है। आमतौर पर दवाइयां पेट और आंत के संपर्क में आने से कम वक्त ही प्रभावशाली रह पाती हैं। लेकिन, नया कैप्सूल अम्ल के प्रभाव में आने के बावजूद जल्दी नहीं घुलेगा। शोधकर्ताओं ने बताया कि आइवरमेक्टिन को मलेरियारोधी दवाई आर्टीमिसीनिन के साथ मिलाकर छह आम्र्स वाले कैप्सूल में भरा जा सकता है, जो रबर जैसे पदार्थ से आपस में जुड़े होते हैं। ये आम्र्स पॉलीकैप्रोलैक्टोन (एक तरह का पॉलीमर) से बने होते हैं। यह जल्दी नष्ट नहीं होता है। दवाओं के मिश्रण को इन्हीं में रखकर दिया जा सकेगा।
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