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अब निराश न हों दिल और फेफड़ों के रोगी

स्टेम सेल थेरेपी का उपयोग वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न लाइलाज बीमारियों का एक समुचित वैकल्पिक इलाज तलाशने में किया जा रहा है। इसके बावजूद काफी पुख्ता प्रमाण न मिलने और रोगियों की ज्यादा संख्या न होने की वजह से इस थेरेपी को अनेक लोग शंका की नजर से देखते रहे हैं, लेकिन हाल

By Edited By: Published: Tue, 10 Jun 2014 04:03 PM (IST)Updated: Tue, 10 Jun 2014 04:03 PM (IST)
अब निराश न हों दिल और फेफड़ों के रोगी

स्टेम सेल थेरेपी का उपयोग वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न लाइलाज बीमारियों का एक समुचित वैकल्पिक इलाज तलाशने में किया जा रहा है। इसके बावजूद काफी पुख्ता प्रमाण न मिलने और रोगियों की ज्यादा संख्या न होने की वजह से इस थेरेपी को अनेक लोग शंका की नजर से देखते रहे हैं, लेकिन हाल में ऑक्सफोर्ड स्थित कॉकरेन रिसर्च ग्रुप ने 1255 हृदय रोगियों के आंकड़े पेश करके आलोचकों की शंकाओं पर पानी फेर दिया है। इसी तरह फेफड़े की कुछ बीमारियों में भी स्टेम सेल थेरेपी के नतीजे अच्छे रहे हैं।

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रिसर्च ग्रुप का निष्कर्ष

कॉकरेन रिसर्च ग्रुप के अनुसार जिन रोगियों ने अपनी बोन मैरो या रक्त से निर्मित स्टेम सेल्स का प्रयोग किया, उनमें अगले 2 साल में मरने वाले या वापस अस्पताल में भर्ती होने वाले रोगियों की संख्या चौथाई से भी कम दर्ज की गयी, उन मरीजों की तुलना में जिन्हें स्टेम सेल थेरेपी नहीं दी गई थी।

यह फायदा विशेष तौर पर उन रोगियों को मिला है, जो हार्ट अटैक के बाद क्रॅानिक इस्चीमिया (हृदय में रक्त संचार की कमी) या हार्ट फेल्यर के शिकार हो गये थे।

शोधकर्ता वैज्ञानिकों के अनुसार 23 रेंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल के विश्लेषण के बाद यह पाया गया कि स्टेम सेल थेरेपी दिल के रोगियों के इलाज में एक वैकल्पिक थेरेपी या एडजुवेंट थेरेपी (दूसरे इलाजों के साथ इसका प्रयोग) के रूप में प्रयोग की जा सकती है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ता मार्टिन रेन्डन के अनुसार इस विश्लेषण से यह सिद्ध हो गया है कि स्टेम सेल थेरेपी हृदय रोगों में प्रभावी है। खास तौर पर हार्ट फेल्यर और इस्चीमिया संबंधी हृदय रोगों में। अमेरिका में मियामी स्थित मिलर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिन के निदेशक जोशुआ हैरी ने नवंबर 2013 में अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की वार्षिक बैठक में अपना शोध-पत्र प्रस्तुत किया था। इस शोध पत्र में उन्होंने यह सिद्ध किया था कि आटोलोगस स्टेम सेल्स हृदय रोग- इस्चीमिक कार्डियो मायोपैथी- में कारगर है। उनका निष्कर्ष था कि इस थेरेपी से रोगियों के हृदय का क्षतिग्रस्त भाग कम हो गया। इस प्रकार रोगियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हुआ।

मिलर इंस्टीट्यूट, मियामी में कार्डियो-वैस्कुलर सर्जरी विभाग में प्रोफेसर जेम्स ने भी स्टेम सेल थेरेपी के परिणामों को उत्साहव‌र्द्धक बताया है। जेम्स के अनुसार ओपन हार्ट सर्जरी के रोगियों के हृदय में स्टेम सेल्स प्रत्यारोपित की जा सकती हैं, क्योंकि इन सेल्स की उपयोगिता प्रमाणित हो चुकी हैं।

फेफड़ों के रोग

हृदय ही नहीं बल्कि फेफड़ों संबंधी बीमारियों खासकर लंग फाइब्रोसिस में स्टेम सेल थेरेपी को काफी प्रभावी पाया गया है। अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित टैंपा लंग इंस्टीट्यूट में गैरी नामक युवक को जब स्टेम सेल्स दी गयी थीं, तब शायद ही किसी विशेषज्ञ को उसकी हालत में सुधार होने की आशा रही होगी, लेकिन नौ महीने बाद गैरी की सेहत में आए आश्चर्यजनक सुधार से उसके डॉक्टर (पल्मोनोलॉजिस्ट) चकित हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि गैरी को डबल लंग्स ट्रांसप्लांट की सलाह दी गयी थी।

देश में भी नतीजे अच्छे

विदेश क्या, देश के भी रोगी आटोलोगस स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन से लाभान्वित हो रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण मुंबई निवासी अल्बर्ट नामक युवक है। अल्बर्ट पिछले 20 सालों से लंग फाइब्रोसिस और सिस्टेमिक स्क्लीरोसिस से पीड़ित है। हाल में शुरू किये गये स्टेम सेल थेरेपी के सेशन के बाद पहली बार वह अपनी स्थिति में सुधार महसूस कर रहा है।

कहां उपयुक्त है स्टेम सेल थेरेपी

हार्ट अटैक के बाद हृदय की पंपिंग क्षमता का कम होना।

-क्रॉनिक हार्ट फेल्यर।

-पल्मोनरी फाइब्रोसिस (फेफड़ों का लचीलापन कम हो जाना)।

-एक्यूट लंग इंजरी (फेफड़ों में कई कारणों से लगी गंभीर चोट)

इस थेरेपी के अन्य उपयोग

-स्पाइनल कॉर्ड इंजरी (रीढ़ की हड्डी में लगी चोट)।

-आटिज्म (बच्चे में बोलने और समझने की क्षमता में कमी)।

-सेरीब्रल पेल्सी (मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी)और डेवलपमेंटल डिले (बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास धीमा होना)।

स्टेम सेल्स के उपयुक्त स्रोत

-बोन मैरो व रक्त व वसा या चर्बी।

-कॉर्ड ब्लड या कॉर्ड टिश्यू (गर्भनाल से प्राप्त रक्त या टिश्यू)।

ध्यान दे

चूंकि हर रोगी में यह थेरेपी कारगर नहीं होती। खास तौर पर रोग के काफी बढ़ जाने पर इसके सफल होने की संभावना कम हो जाती है। इसलिए इसे आखिरी इलाज की बजाय वैकल्पिक या एडजुवेंट थेरेपी के रूप में प्रयोग करना चाहिए।

(डॉ.बी.एस.राजपूत)


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