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आर्थोस्कोपिक सर्जरी: कंधे की दिक्कत होगी दुरुस्त

दैनिक कार्र्यो को अंजाम देने में मजबूत कंधे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विभिन्न कारणों से कंधे में कई प्रकार की समस्याएं पैदा हो सकती हैं। जैसे कंधे में तेज दर्द होना और उसे मोड़ने में समस्या हो सकती है। कंधे की समस्याओं में प्रमुख हैं-कंधे की अर्थराइटिस, कंधे की हड्डियों को

By Edited By: Published: Tue, 17 Jun 2014 12:32 PM (IST)Updated: Tue, 17 Jun 2014 12:32 PM (IST)
आर्थोस्कोपिक सर्जरी: कंधे की दिक्कत होगी दुरुस्त

दैनिक कार्र्यो को अंजाम देने में मजबूत कंधे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विभिन्न कारणों से कंधे में कई प्रकार की समस्याएं पैदा हो सकती हैं। जैसे कंधे में तेज दर्द होना और उसे मोड़ने में समस्या हो सकती है। कंधे की समस्याओं में प्रमुख हैं-कंधे की अर्थराइटिस, कंधे की हड्डियों को घुमाने वाली मांसपेशी का फटना, कंधे की झिल्ली में सूजन आना, मांसपेशियों की नसों का फूल जाना। इसके अलावा मांसपेशियों का कंधे की हड्डियों के बीच में फंसना भी कंधे की एक अन्य समस्या है।

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शुरुआती इलाज

रोग के शुरुआती दौर में कॉर्टिकोस्टेरॉयड दवाएं, नॉन स्टेराइडल एंटी-इन्फ्लैमेटरी ड्रग्स और फिजियोथेरेपी से इलाज किया जा सकता है, परंतु यदि समस्या गंभीर हो चुकी है, तो कंधे की सर्जरी ही समाधान है। रोगी के समक्ष पारंपरिक बड़े चीरे वाली ओपन सर्जरी और आर्थोस्कोपिक सर्जरी दोनों का ही विकल्प मौजूद है, जिसमें आर्थोस्कोपी सर्जरी अधिक बेहतर विकल्प है।

जांच

मांसपेशियों और लिगामेंट की जांच के लिए एम.आर.आई.परीक्षण किया जाता है।

सर्जरी के लाभ

आर्थोस्कोपिक सर्जरी में कम से कम चीरफाड़ की जाती है। इसमें जोड़ के क्षतिग्रस्त भीतरी भाग का इलाज आर्थोस्कोपी के द्वारा किया जाता है। आर्थोस्कोपी एक प्रकार की दूरबीन है, जिसे आप शरीर के भीतरी हिस्सों को देखने वाला इंडोस्कोप कह सकते हैं। ऑर्थोस्कोपी में परंपरागत ओपन सर्जरी की तुलना में ज्यादा फायदा इसलिए है, क्योंकि इसमें जोड़ों को पूरी तरह नहीं खोला जाता। ऑर्थोस्कोपी के लिए केवल 4 मिमी (1/8 इंच) के दो छोटे चीरे लगाए जाते हैं- एक ऑर्थोस्कोप के लिए और दूसरा सर्जरी के उपकरणों को भीतर ले जाने के लिए। जोड़ के हिस्सों को देखने, जोड़ों को फैलाने और सर्जरी के लिए जगह बनाने के लिए तरल पदार्थ से उन्हें भिंगोने की जरूरत पड़ती है। तत्पश्चात छोटे उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए सर्जरी पूरी की जाती है। आर्थोस्कोपिक सर्जरी में सर्जन एक वीडियो मॉनिटर पर जोड़ (ज्वाइंट) के भाग को देखते हैं और जोड़ के फटे हुए टिश्यूज, फटी हुई मांसपेशियों, लिगामेंट और कार्टिलेज का पता लगाकर उनकी रिपेयरिंग कर सकते हैं। आर्थोस्कोपी में टिश्यूज का नुकसान कम होता है। छोटे चीरों की वजह से त्वचा पर निशान भी कम पड़ते हैं क्योंकि घाव अतिशीघ्र भर जाता है।

सर्जरी के बाद

सर्जरी के बाद कंधे की गति को फिर से संचालित करने और कंधे को घुमाने वाली मांसपेशी को मजबूत करने के लिए व्यायाम कराए जाते हैं।

(डॉ.एस.के.सिंह ऑर्थो-स्पाइन सर्जन एपेक्स हॉस्पिटल, वाराणसी)


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