बीमार बना रहे हैं गैजेट्स...
बच्चों और बड़ों में दिन-रात गैजेट्स में बिजी रहने का ट्रेंड है जोरों पर। अनजाने में ही सही, इससे हो रही हैं कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याएं...
गैजेट्स ने हमारी जिंदगी में जरूरत से अधिक पैठ बनाई है। कामकाजी लोगों के साथ ही बच्चों का टेकसेवी होना भले ही गर्व की बात हो लेकिन सच तो यह है कि इनका अधिक इस्तेमाल कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याओं को दावत दे रहा है। कम उम्र में सुनने की क्षमता प्रभावित होना, चश्मा चढऩा, बच्चों का ही नहीं, वयस्कों का चिड़चिड़ा होना और स्लीपिंग पैटर्न में बदलाव इसी तकनीकी की सौगात है।
समय की है मांग
नेट सर्फिंग और चैटिंग में कई-कई घंटे बिताने वाली स्टूडेंट पूर्णिमा निगम बताती हैं, 'अगर आप लेटेस्ट तकनीक के साथ अपडेट नहीं रहतीं तो मानिए कि अन्य लोगों से बहुत पीछे हैं। नए गैजेट्स का इस्तेमाल करना और टेकसेवी होना समय की मांग है। मैं स्टडी ही नहीं, संदेश देने, डिस्कस करने और खुशी या गम शेयर करने में इन्हीं संसाधनों का इस्तेमाल करती हूं। मेरी पढ़ाई काफी हद तक इन्हीं तकनीकी संसाधनों पर निर्भर रहती है।'
उड़ रही है नींद
हर्ष नगर की गृहणी मनीषा शुक्ला बताती हैं, 'गैजेट्स ने हमारी जिंदगी की राह बहुत आसान कर दी है लेकिन यह भी सच है कि इनका अधिक प्रयोग आलसी और अपंग बना रहा है। अब मुझे इनके इस्तेमाल की ऐसी आदत बन गई है कि मैं देर रात तक चैटिंग, सर्फिंग, वीडियो और गाने सर्च करने में व्यस्त रहती हूं। कभी-कभी तो पता ही नहीं चलता कि कब रात गुजर गई। अब तो सोने और जगने का कोई निश्चित समय ही नहीं है। वास्तव में यह हमें अपना आदी बना लेते हैं। जिस तरह से नींद का शेड्यूल बदला है तो मुझे यह स्वीकारने में कोई परहेज नहीं है कि यह सब इन्हीं गैजेट्स की देन है।'
बेडौल हो रहा शरीर
एक स्कूल की शिक्षिका ममता अवस्थी कहती हैं, 'हमारा बचपन काफी कुछ अलग था। आजकल बड़ों की तो बात छोडि़ए बच्चे गैजेट्स का इतना इस्तेमाल करते हैं कि उनका किसी भी काम का कोई निश्चित समय नहीं है। कई बार बच्चे स्कूल में पढ़ते-पढ़ते झपकी लेने लगते हैं। कारण पता चलता है कि उन्होंने देर रात तक टीवी देखा है या फिर चैटिंग में बिजी रहे हैं। अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने साथ ही बच्चों को भी इनमें अधिक दिलचस्पी न लेने दें। इनका अधिक प्रयोग सेहत से खिलवाड़ का कारण है।'
कम उम्र में चढ़ता चश्मा
गहलोत आई सेंटर स्वरूप नगर के आई सर्जन डॉ. आलोक गहलोत बताते हैं, 'वयस्कों और बच्चों में आंखों की बीमारी होने की वजह काफी हद तक गैजेट्स का अधिक इस्तेमाल और समय से नींद न लेना है। इनके अधिक इस्तेमाल से आंखों का नम रहना, सूखा होना, खुजली, जलन और विजन का कम होना आदि समस्याएं हो सकती हैं। चैटिंग, सर्फिंग या टीवी देखने का सीधा असर आंखों में पड़ता है। विजन ठीक होने के बावजूद धुंधला दिखने की समस्या भी स्क्रीन से चिपके रहने के कारण होती है। कम उम्र में बच्चे को चश्मा लगने का एक कारण यह भी होता है।'
कान हो रहे बेजान
वरिष्ठ ईएनटी सर्जन डॉ. देवेंद्रलाल चंदानी बताते हैं, 'जब हैंडफ्री या ब्लूटूथ का अधिक इस्तेमाल किया जाता है तो कान की प्राकृतिक आवाज सुनने की क्षमता प्रभावित होती है। हैंडफ्री की आवाज अप्राकृतिक होती है, इसलिए कुछ दिनों बाद कान भारी या महीन आवाज में अंतर नहीं कर पाता और आवाज के भाव सुनने की क्षमता भी चली जाती है। तेज आवाज सुनने के चलते कान के परदे का वाइब्रेट होना कम हो जाता है, जिससे ऊंचा सुनने की समस्या हो जाती है। एक-दूसरे के हैंडफ्री के प्रयोग से कान में संक्रमण भी हो जाता है।'