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हाइपोथाइराइड: बनेगी बिगड़ी बात

एक मर्ज कई रोगों को बुलावा दे, तो आप यह समझ लें कि वह कितना गंभीर हो सकता है। जी हां यहां हम बात कर रहें हैं हाइपोथाइराइड नामक मर्ज की जिसका समय रहते उपचार किया जा सकता है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Tue, 24 May 2016 03:10 PM (IST)Updated: Tue, 24 May 2016 03:25 PM (IST)
हाइपोथाइराइड: बनेगी बिगड़ी बात

थायराइड ग्रंथि में थाइरॉक्सिन नामक हार्मोन की कमी के कारण हाइपोथाइराइड नामक मर्ज होता है। नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश की आबादी में लगभग 5.4 प्रतिशत लोग हाइपोथाइराइड से ग्रस्त हैं।

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हाइपोथाइराइड होने का एक सहायक कारण शरीर में आयोडीन की कमी का होना है।

प्रमुख लक्षण

- थकान, सुस्ती और उदासी महसूस करना।

- वजन में वृद्धि या मोटापे से ग्रस्त होना।

- मांसपेशियों में कमजोरी महसूस होना।

- शारीरिक श्रम करने पर सांस फूलना।

- सुनने की क्षमता में कमी होना।

- शरीर में ग्लूकोज की कमी होना, पैरों में सूजन और जोड़ों में दर्द होना।

- हाथ-पैरों में झनझनाहट और रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी होना।

जांचें: रक्त की जांच के जरिये हाइपोथाइराइड की डाइग्नोसिस की जाती है। रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी (एनीमिया लगभग 10 ग्रा. प्रतिशत या उससे कम हीमोग्लोबिन होना) । इसी तरह थाइराइड ग्रंथि के हार्मोन्स की रक्त में मात्रा- टीएसएच टीयू 0.8 से 2.7 एमएल., टीएसएच 0.4 से 5.0 एमएल. होना चाहिए।

वहीं रक्त में कोलेस्टेरॉल की मात्रा 250 मि.ग्रा.से बढ़कर 350 से 400 मि.ग्रा. और रक्त में सोडियम की मात्रा में कमी से हाइपोथाइराइड का पता चलता है।

मर्ज का दिल पर प्रभाव: हाइपोथाइराइड का हृदय और रक्त वाहिनियों पर विशेष प्रभाव पड़ता है। दिल की धड़कन की गति में कमी (50 से 60 प्रति मिनट), हाई ब्लडप्रेशर, रक्त में कोलेस्टेरॉल की वृद्धि और कोरोनरी धमनियों में रक्तप्रवाह में कमी के कारण एंजाइना और दिल के दौरे की आशंकाएं बढ़ जाती हैं।

उपचार

रक्त परीक्षणों और थाइराइड हार्मोन्स टी3, टी4 और टीएसएच की जांचों के आधार पर लक्षणों केअनुसार हाइपोथाइराइड का इलाज किया जाता है। हाइपोथाइराइड से ग्रस्त व्यक्तियों के इलाज में एक बात ध्यान देने योग्य है। वह यह कि अन्य दवाओं- जैसे रक्त को पतला करने वाली दवाएं और मिरगी के उपचार की दवाओं की मात्रा को सुनिश्चित करना जरूरी होता है।

ध्यान दें

गर्भावस्था में हाइपोथाइराइड की पहचान अत्यंत आवश्यक है। इसलिए गर्भावस्था की प्रथम तिमाही में गर्भवती महिलाओं को टी3, टीयू और टी4 रक्त जांचें करवाने का परामर्श दिया जाता है।

डॉ.अनिल चतुर्वेदी फिजीशियन

पुष्पावती सिंघानिया, अस्पताल, नई दिल्ली


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