रीढ़ के दर्द से हैं बेहद परेशान तो ये सर्जरी आपको पहुंचा सकती है राहत
आधुनिक माइक्रो एंडोस्कोपिक सर्जरी के जरिये रीढ़ की हड्डी से संबंधित कई समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है। जानिए यह सर्जरी क्या है और इसके विशेष लाभ क्या हैं ...?
जब आप कमर दर्द से परेशान होते होंगे तो कोई मरहम या बाम मल लेते होंगे। दर्द अगर कमर से टांगों में उतर जाए, पैरों या हाथों में सुई चुभने जैसा अहसास हो, तो शायद आप कोई पेनकिलर ले लें और अगर हाथ व पैर सुन्न पड़ जाएं, तब शायद आपको डॉक्टर के पास जाना होगा, लेकिन किसी न्यूरो सर्जन को आप तभी दिखाएंगे, जब आपका डॉक्टर ऐसी सलाह देगा। हालांकि कम ही डॉक्टर ऐसे लक्षणों का सही आकलन कर पाते हैं, जबकि किसी न्यूरो सर्जन की नजरों में ये लक्षण मरीज की सेहत के लिए अत्यंत खतरनाक प्रभाव छोड़ सकते हैं।
लक्षणों पर दें ध्यान
हाथ या पैर में दर्द, सुन्न होना या सुई की चुभन जैसे लक्षण इस बात का संकेत हो सकते हैं कि रीढ़ (स्पाइन) में कोई गंभीर समस्या है।
क्या है एमईएस तकनीक
तकनीकी प्रगति की बदौलत अब माइक्रो एंडोस्कोपिक सर्जरी (एमईएस) प्रचलन में आ चुकी है। यह सर्जरी गर्दन, कमर और रीढ़ की हड्डी से संबंधित समस्याओं जैसे स्लिप डिस्क और स्लिप वर्टिब्रा में भी कारगर है। एमईएस काफी कम चीरफाड़, कम क्षति और कम जोखिम वाली है। इसके अलावा परंपरागत ओपन सर्जरी की तुलना में इस सर्जरी के बाद मरीज स्वास्थ्य लाभ भी तेजी से करता है। काबिले गौर है कि रीढ़ की सर्जरी के मामले में इस उपचार की सलाह तभी दी जाती है, जब इलाज के अन्य विकल्प विफल हो जाते हैं।
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कब हो सर्जरी
विशेषज्ञों के अनुसार जब गर्दन और कमर के मामले में रीढ़ के इलाज की बात आती है, तो सर्जरी का विकल्प अत्यंत कारगर होता है। लेकिन अगर तीन से छह महीनों तक ऑपरेशन के बगैर इलाज करने से कोई सुधार न हो या फिर हालत और बिगड़ जाए तो सर्जिकल उपचार ही उपयुक्त है। सर्जरी का फैसला अलग-अलग मरीजों की भिन्न स्थिति के आधार पर लिया जाता है।
कैसे होती है यह सर्जरी
एमईएस सर्जरी के अंतर्गत न्यूरो स्पाइन सर्जन त्वचा में एक छोटा चीरा लगाकर रीढ़ तक पहुंचने के लिए विशेष उपकरणों का उपयोग करते हैं। पारंपरिक ओपन स्पाइन सर्जरी में 5 से 6 इंच लंबे चीरे लगाए जाते हैं, जबकि एमईएस तकनीक में सवा सेमी. से लेकर सवा इंच के चीरे लगाए जाते हैं। एमईएस से मांसपेशियों और रीढ़ से संबंधित अन्य अंगों को कम से कम चोट पहुंचती है। इस प्रक्रिया से सर्जन को समस्याग्रस्त स्थान की उपयुक्त स्थिति जानने में मदद मिलती है। इस तरह टिश्यूज की भी कम से कम क्षति होती है और सर्जरी के दौरान खून की हानि भी कम होती है और मरीज के जिस्म पर ऑपरेशन के निशान भी कम पड़ते हैं। माइक्रो एंडोस्कोपिक सर्जरी के बाद मरीज दो से तीन दिनों में ही घर लौट सकता है।
डॉ. मनीष वैश्य, न्यूरो एंड स्पाइन सर्जन
मैक्स हॉस्पिटल, नई दिल्ली
- जेएनएन