सेहत के फूल खिल उठे बसंत में
आम तौर पर बसंत ऋतु को सुहाना माना जाता है, लेकिन इस मौसम में सांस संबंधी बीमारियों जैसे दमा,सी.ओ.पी.डी. और एलर्जी आदि का प्रकोप कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है, लेकिन कुछ सजगताएं बरतकर रोगमुक्त रहकर इस मौसम का लुत्फउठाया जा सकता है...
आम तौर पर बसंत ऋतु को सुहाना माना जाता है, लेकिन इस मौसम में सांस संबंधी बीमारियों जैसे दमा,सी.ओ.पी.डी. और एलर्जी आदि का प्रकोप कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है, लेकिन कुछ सजगताएं बरतकर रोगमुक्त रहकर इस मौसम का लुत्फउठाया जा सकता है...
बसंत ऋतु जल्द ही दस्तक देने वाली है। आम तौर पर यह मौसम लोगों के लिए वर्ष का सबसे
मनोरम और सुखद मौसम होता है, लेकिन यह मौसम सांस संबंधी रोगों से ग्रस्त लोगों और सीओपीडी के मरीजों के स्वास्थ्य के लिए चुनौती बन सकता है।
कारण
बसंत ऋतु में तापमान परिवर्तन भी अधिक होता है, जिससे दिन में मौसम गर्म हो जाता है और सुबह और रात को सर्दी बढ़ जाती है। ऐसे मौसम में खांसी के संक्रमण बढ़ जाते है। बसंत ऋतु में वातावरण में परागकणों की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है। यह परागकण एलर्जी पीडि़त लोगों के लिए मुसीबत का कारण बन जाते हैं। इस वजह से लोगों की आंखों में जलन, नाक में खुजली, गले में खराश और खांसी जैसे लक्षण सामान्य तौर पर प्रकट होते हैं।
मौसम बदलने के साथ ही सांस की नली की संवेदनशीलता भी तुलनात्मक रूप से बढ़ जाती है। इस कारण सांस की नली सिकुड़ती है और इस स्थिति में सांस के रोगियों की समस्या बढ़ सकती है। बच्चों और वृद्धों के लिए यह दिक्कतें और भी ज्यादा होती हैं।
बच्चों और बुजुर्र्गों का रखें ध्यान
छोटे बच्चों और बुजुर्र्गों में रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम होने के कारण उन्हें सांस संबधी बीमारियों से ज्यादा
खतरा रहता है। उनमें फेफड़ों के संक्रमण का खतरा भी अधिक होता है। इसलिए बच्चों, वृद्धों और सांस के
रोगियों को खासतौर पर इस मौसम में सचेत रहना चाहिए।
सीओपीडी से बचाव: देश में सीओपीडी और दमा(अस्थमा) के रोगियों की कुल संख्या लगभग पांच करोड़ से अधिक है।
इस जोखिम वाली आबादी को इस सुहाने मौसम की अनचाही मार से बचाए रखना जरूरी है। बसंत का मौसम कुछ खास किस्म के बीमारी फैलाने वाले वाइरस को सक्रिय कर देता है।सी.ओ.पी.डी. की परेशानी से ग्रस्त मरीजों की दिक्कतें बसंत में और भी बढ़ जाती हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि दिन में जहां तापमान सामान्य होता है, वहीं रात में तापमान में तीव्र गिरावट होती है। इस कारण से सीओपीडी मरीजों में सांस की नली में सूजन और संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। इस समय संक्रमणजनित बुखार व बलगम की परेशानी बढ़ जाती है।
दमा: वातावरण में किसी भी प्रकार के बदलाव से शरीर के वातावरण में परिवर्तन होता है। इस कारण एलर्जी और दमा के रोगी मुख्य रूप से प्रभावित होते है। बसंत ऋतु में इन मरीजों की परेशानियां बढ़ जाती हैं। इसलिए उन्हें विशेष तौर पर अपना ख्याल रखने की सलाह दी जाती है। दमा से पीडि़त मरीज इनहेलर और अन्य आवश्यक दवाएं लेना न भूलें।
एलजी: बसंत ऋतु में वातावरण में परागकणों की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है। यह परागकण एलर्जी
पीडि़त लोगों के लिये मुसीबत का कारण बन जाते हैं। इस वजह से इन लोगों की आंखों में जलन, आंसू आना, नाक में खुजली, गले में खराश और खांसी जैसे लक्षण सामान्य तौर पर देखने को मिलते हैं।
इन्फ्लूएन्जा: यह समय फ्लू या इन्फ्लूएंजा के विषाणुओं (वाइरस) के सक्रिय होने का भी है। इसके
परिणामस्वरूप फ्लू के मामलों में काफी वृद्धि हो जाती है। बच्चों, वृद्धों, गर्भवती महिलाओं, एच.आई.वी.
रोगियों और दमा, सीओपीडी, डाइबिटीज और हृदय रोगों से ग्रस्त लोगों में फ्लू का प्रकोप गंभीर रूप ले
सकता है। इन गंभीरताओं में न्यूमोनिया, हार्ट-अटैक, मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर जैसी स्थितियां भी शामिल हैं।
इनहेलर की डोज दुरुस्त कराएं
सांस के रोगी नियमित रूप से डॉक्टर के संपर्क में रहें और उनकी सलाह से अपने इनहेलर की डोज भी दुरुस्त कर लें। कई बार इन्हेलर्स की मात्रा बढ़ानी होती है और आमतौर पर ली जाने वाली नियमित खुराक से ज्यादा मात्रा में खुराक लेनी पड़ती है। इसके अलावा इन सुझावों पर अमल करें...
- तापमान में परिवर्तन से होने वाली समस्याओं से बचने के लिए सिर, गले और कान को खासतौर पर ढकें।
- सर्दी के कारण साबुन से हाथ धोने की अच्छी आदत न छोड़ें। साबुन से हाथ धोना आपको जुकाम और फ्लू की बीमारी से बचाकर रखता है।
- सर्दी, जुकाम, खांसी, फ्लू और सांस के रोगियों को सुबह-शाम भाप (स्टीम) लेनी चाहिए। यह गले व
सांस की नलियों (ब्रान्काई) के लिए फायदेमंद है।
खानपान
सब्जियों व फलों का भरपूर सेवन करें। पेय पदार्थों की पर्याप्त मात्रा लें। इससे हमारे शरीर के रोग
प्रतिरोधक तंत्र में इजाफा होता है। खाने में ठंडी, खट्टी व तीखी चीजों, फास्ट फूड्स, आइसक्रीम, और कोल्ड
ड्रिंक के सेवन से बचें। गर्म भोजन और गर्म पेय पदार्थों का प्रयोग श्रेयस्कर होता है।
डॉ.सूर्यकांत
प्रमुख: रेस्पाइरेटरी मेडिसिन विभाग, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ