जेस्टेशनलडाइबिटीज डरने की जरूरत नही
गर्भावस्था हर महिला के जीवन का एकमहत्वपूर्ण दौर होता है। यह अवस्था स्त्री के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक रूप में बदलाव लाती है। इस अवस्था में मां के शरीर में हार्मोन्स से संबंधित कई बदलाव भी आते हैं। गर्भावस्था के दौरान अनेक महिलाएं मधुमेह से ग्रस्त हो जाती हैं।
गर्भावस्था हर महिला के जीवन का एकमहत्वपूर्ण दौर होता है। यह अवस्था स्त्री के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक रूप में बदलाव लाती है। इस अवस्था में मां के शरीर में हार्मोन्स से संबंधित कई बदलाव भी आते हैं। गर्भावस्था के दौरान अनेक महिलाएं मधुमेह से ग्रस्त हो जाती हैं। इस स्थिति को गर्भावस्था में होने वाला मधुमेह (जेस्टेशनल डाइबिटीज) कहते हैं। इस मधुमेह (डाइबिटीज) को दूर किया जा सकता है...
14 अपै्रल, 2015
अपने शिशु का पालन प्लेसेन्टा (गर्भनाल) के माध्यम से करती है। प्लेसेन्टा कुछ हार्मोन भी बनाता है,जो शिशु के विकास में मदद करते हैं।
गर्भावस्था की तीसरी तिमाही के दौरान इन हार्मोन्स का उत्पादन बढ़ जाता है, परन्तु ये हार्मोन्स इंसुलिन विरोधी होते हैं। इस कारण से इंसुलिन प्रतिरोध (रेजिस्टेन्स) बढ़ जाता है और शरीर इंसुलिन का प्रयोग पूरी तरह से नहीं कर पाता। इंसुलिन का प्रयोग न होने से रक्त-शर्करा (ब्लड शुगर) ऊर्जा की तरह इस्तेमाल होने की जगह खून में ही रह जाती है। इस कारण रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है।
अधिकांश महिलाओं के अग्नाशय (पैन्क्रियास) पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन बनाकर स्थिति को नियंत्रण में ले आते हैं, परंतु कुछ महिलाओं के अग्नाशय पर्याप्त इंसुलिन बनाने में सक्षम नहीं होते हैं और
रक्तशर्करा (ब्लडशुगर) बढ़ जाती है।
प्लेसेन्टा के माध्यम से यह अधिक ग्लूकोज बच्चे तक पहुंचता है। यह ग्लूकोज बच्चे के पोषण का एकमात्र स्रोत भी है, परन्तु आवश्यकता से अधिक ग्लूकोज बच्चे को नुकसान पहुंचा सकता है।
गर्भावस्था में मधुमेह की इसी स्थिति को जेस्टेशनल डाइबिटीज कहा जाता है। भारत में लगभग 9 से 10 प्रतिशत महिलाएं इससे पीडि़त हो जाती हैं। आमतौर पर 24 से 28 सप्ताह में इसकी जांच की जाती है। कुछ महिलाओं को गर्भावस्था से पूर्व भी मधुमेह हो सकता है। इसीलिए सलाह यह है कि गर्भावस्था की जानकारी होते ही रक्त शर्करा की जांच कराएं और 24 सप्ताह में फिर से जांच कराएं।
इन्हें है ज्यादा खतरा
-ज्यादा वजन बढऩे से जेस्टेशनल डाइबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। गर्भावस्था के पहले और इस दौरान वजन को नियंत्रित रखना जरूरी है।
-अगर गर्भवती महिला के माता-पिता को मधुमेह है, तो जेस्टेशनल डाइबिटीज का खतरा बढ़ जाता है।
-अगर गर्भावस्था से पहले महिला को पॉली-सिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओडी) नामक रोग था, तो जेस्टेशनल डाइबिटीज का खतरा बढ़ जाता है।
- देर से शादी कर मां बनने वाली महिलाओं को जेस्टेशनल डाइबिटीज होने का खतरा अधिक रहता है।
जांच कैसे कराएं
आम तौर पर जेस्टेशनल डाइबिटीज के कोई लक्षण प्रकट नहीं होते। इसलिए जांच अनिवार्य है। गर्भवती महिला को ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (ओजीटीटी) नामक स्क्रीनिंग करायी जाती है। पहले खाली पेट (8 से 10 घंटे ओवरनाइट फास्टिंग) खून की जांच होती है और फिर 75 ग्राम ग्लूकोज पिलाया जाता है। ग्लूकोज पिलाने के एक घंटे और दो घंटे बाद फिर खून की जांच होती है।
गर्भावस्था में मधुमेह में ज्यादातर महिलाएं स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं, बशर्ते वह रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) को नियंत्रण में रखें।
ब्लड शुगर की जांच के लिए घर में ही ग्लूकोमीटर का प्रयोग किया जा सकता है। बहरहाल, जेस्टेशनल डाइबिटीज या मधुमेह के संदर्भ में अच्छी खबर यह है कि बच्चा होने के बाद मधुमेह दूर हो जाता है। बावजूद इसके, जेस्टेशनल डाइबिटीज इस बात की चेतावनी है कि कालांतर में जीवनकाल में महिला को टाइप-2 डाइबिटीज होने का खतरा है।
इन बातों पर दें ध्यान
गर्भवती महिला को ब्लड शुगर को नियंत्रण में रखने के लिए नियमित शुगर की जांच, संतुलित भोजन का सेवन, व्यायाम और इंसुलिन लेने की जरूरत पड़ती है। अगर रक्त शर्करा को नियंत्रण में न रखा जाए, तो मां और शिशु पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। याद रखें, अगर आप गर्भवती हैं, तो आप को 'दो के लिए' खाने की जरूरत नहीं है। लगभग 300 अतिरिक्त कैलोरी प्रतिदिन आपके स्वस्थ वजन और आपके बच्चे के गर्भ में विकास के लिए पर्याप्त है।
डॉ.अंबरीश मित्तल