खुद की खोज
द मॉन्क हू सोल्ड हिज फेरारी का नायक जूलियन मेंटल अपने शहर का प्रतिष्ठित वकील है। उसके पास ऐशो-आराम की सभी चीजें हैं। काम में वह इतना मसरूफ रहता है कि अपना ख्याल भी नहीं रख पाता। इसकी वजह से वह अपनी उम्र से अधिक दिखता है। एक दिन कोर्ट रूम में ही उसे दिल का दौरा पड़ जाता है। बीमारी के दौरान उसके
द मॉन्क हू सोल्ड हिज फेरारी का नायक जूलियन मेंटल अपने शहर का प्रतिष्ठित वकील है। उसके पास ऐशो-आराम की सभी चीजें हैं। काम में वह इतना मसरूफ रहता है कि अपना ख्याल भी नहीं रख पाता। इसकी वजह से वह अपनी उम्र से अधिक दिखता है। एक दिन कोर्ट रूम में ही उसे दिल का दौरा पड़ जाता है। बीमारी के दौरान उसके मन की आंखें खुल जाती हैं। अपनी आत्मा की आवाज सुनकर वह अपनी सारी संपत्ति बेच देता है। बेचे गए सामान में वह फेरारी कार भी है, जिससे उसे बहुत अधिक लगाव था। इसके बाद वह चल पड़ता है भारत की ओर स्वयं की तलाश में।
यहां नायक जूलियन बीमार पड़ने के बाद इस प्रश्न से रु-ब-रु हो पाता है कि जीवन में वह इतनी भागदौड़ क्यों कर रहा है? वह कौन है? आजकल के युवा जूलियन से दो कदम आगे हैं। लक्ष्य हासिल करने के लिए वे भागदौड़ जरूर करते हैं, लेकिन बीमार पड़ने का इंतजार नहीं करते। वे समय-समय पर अपने काम से ब्रेक लेते हैं और स्वयं की तलाश में निकल पड़ते हैं। उनकी मंजिल होती है योग-अध्यात्म और आत्मविकास के शिविर। वे शांति की तलाश में हिमाचल, उत्तराखंड, सिक्किम आदि राज्यों के गुमनाम गांवों में भी महीने-दो महीने रहने के लिए चले जाते हैं।
तनाव से दूर
रिसर्च साइंटिस्ट हिमांगी मखीजा हिमाचल के मलाना गांव में कुछ दिन बिताने की योजना बना रही हैं। वे कहती हैं, ''मैं वहां न सिर्फ मोबाइल, अखबार की दुनिया से अलग रहूंगी, बल्कि घर-परिवार से भी संपर्क तोड़ लूंगी। वहां मेरा मिशन स्वयं को जानने और समझने का होगा।
साइकोलॉजिस्ट स्वाति मुखर्जी कहती हैं, कई बार वर्क प्रेशर की वजह से हम तनाव में जीने लगते हैं, जिसे 'स्ट्रेस बर्नआउट' कहा जाता है। इस दौरान न केवल ऑफिस परफॉर्मेस, बल्कि हमारे परिवार-दोस्त भी प्रभावित होने लगते हैं। ऐसी स्थिति में जब हम बाहरी दुनिया से संपर्क काट लेते हैं, तो हमें स्वयं को जानने-समझने का मौका मिलता है। वहां हमारी सारी जवाबदेही खत्म हो जाती है। हमारे आस-पास मौजूद प्राकृतिक नजारे सुकून और शांति देते हैं। दो-तीन महीने पूरी दुनिया से कट कर रहने के बाद जब हम दोबारा काम पर लौटते हैं, तो स्वयं को एक नई ऊर्जा से भरा हुआ महसूस करते हैं। हमारी पूरी पर्सनैल्टी निखर जाती है। अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस जैसे पश्चिमी देशों में यह चलन काफी पहले से है। काम से ऊबे लोग निकल पड़ते हैं कुदरत के नजदीक सुख पाने के लिए।
स्वयं से बातें
हिमांगी कहती हैं, ''मैं छोटी उम्र से ही पढ़ाई के साथ-साथ जॉब कर रही हूं। वर्क प्रेशर और परिवार की जिम्मेदारियों के बीच इतनी फंसी रहती कि अपने लिए वक्त ही नहीं निकाल पाती। एक दिन ऑफिस से लौटने पर मुझे एक प्रश्न बार-बार परेशान करने लगा कि मैं कौन हूं? मैं किन चीजों के पीछे लगातार भाग रही हूं? उसी समय मैंने निर्णय लिया कि मैं घर-परिवार और ऑफिस दोनों से कुछ दिनों के लिए ब्रेक ले लूंगी।
फैशन डिजाइनर साइना एनसी के अनुसार, ''जब कभी हम किसी पर्सनल प्रॉब्लम या ऑफिस की समस्या से परेशान हो जाते हैं, तो किसी और खोज में लग जाते हैं। हमारा मन बेचैन होने लगता है। हम सिर्फ स्वयं के साथ वक्त गुजारना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में हम ऐसे स्थान की तलाश में जुट जाते हैं, जहां हम स्वयं से बातें कर सकें और समस्या की मुख्य वजह जान सकें।
नए अनुभवों का स्वाद
यह जरूरी नहीं कि ऐसी स्थिति का सामना सिर्फ बड़ी उम्र के लोग करते हैं। कॉलेज के छात्र भी ऐसे अनुभवों से गुजरते हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के छात्र निकेत वशिष्ठ को स्वेट मार्डन और पाउलो कोएलो की किताबें पढ़ना बहुत पसंद है। वह पाउलो की तरह अलमस्त जीवन जीते हैं और उनकी तरह 'द पिलग्रिमेज' जैसा नॉवेल भी लिखना चाहते हैं। उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ मस्ती भी खूब की है। वह कहते हैं, देर रात तक मूवी देखना, दोस्तों के साथ घूमना-फिरना या किसी खास विषय पर बहस करना जैसी चीजें मैंने खूब की हैं। अब मेरा मन इन सभी चीजों से उचाट होने लगा है। मैं कुछ दिनों के लिए ऐसी जगह पर रहना चाहता हूं, जहां मुझे कोई पहचान न पाए। वहां मैं कुछ छोटा-मोटा काम भी करना चाहूंगा। ऐसा करके मैं जीवन के कुछ नए अनुभवों का स्वाद चखना चाहता हूं और खुद का विकास भी। निकेत ने तय किया है कि वह पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ महीनों के लिए ऋषिकेश चले जाएंगे।
फोटोग्राफर अमित मधेशिया कुछ दिनों के लिए गंगा किनारे रहने की योजना बना रहे हैं। वह कहते हैं, जब व्यक्ति रोजमर्रा की जिंदगी से संपर्क काट कर किसी नए स्थान पर रहना शुरू करता है, तो उसे रोज एक नया अनुभव होता है। वह उन सभी विषयों पर सोचना और काम करना शुरू कर देता है, जिसे उसने जिंदगी में काफी पहले छोड़ दिया था। उस दौरान वह कई ऐसे फैसले ले पाता है, जो उसकी प्राइवेट लाइफ और कॅरियर दोनों के लिए फायदेमंद साबित होते हैं।
आत्मा का आनंद
मोक्षायतन इंटरनेशनल योगाश्रम उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में है। यहां हर वर्ष बड़ी संख्या में देश-विदेश के लोग योग-अध्यात्म शिविर में भाग लेने आते हैं। इसकी संचालक और माइंड थेरेपिस्ट आचार्य प्रतिष्ठा कहती हैं, ''यहां लोगों को ब्रह्ममुहूर्त में जागना होता है। मेडिटेशन, योग वॉक, स्वाध्याय और अपनी रुचि का रचनात्मक कार्य भी उन्हें यहां करना पड़ता है। कुछ दिनों तक यहां की जीवनशैली फॉलो करने के बाद उनमें आमूल-चूल परिवर्तन आ जाते हैं और वे खुद को स्फूर्ति से भरपूर पाते हैं। दरअसल, शहरी क्षेत्रों में हमारी लाइफ काफी बिजी होती है। हम लगातार काम करते रहते हैं। इससे हमारी बॉडी, माइंड और स्पिरिट तीनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हम शारीरिक और मानसिक थकान अनुभव करने लगते हैं। कभी-कभी यह थकान पारिवारिक कारणों या कॅरियर में मिलने वाली असफलता से भी हो सकती है। इस दौरान हम फ्री-स्पेस की तलाश करते हैं, जहां हमें स्वयं के बारे में सोचने का मौका मिले। ऐसी स्थिति में पहाड़ी क्षेत्र हमारे लिए माकूल होता है। प्रकृति की गोद में हमें शुद्ध वातावरण और भरपूर शांति मिलती है। वहां हमें योग और ध्यान से जुड़ने में सहूलियत मिलती है। इससे हमारी बॉडी और सोल दोनों रिलैक्स हो जाते हैं और दोबारा काम पर लौटने पर हम स्वयं में ताजगी महसूस करते हैं।
क्या-क्या करें हम
कुछ दिनों के लिए किसी निर्जन स्थान पर रहने के लिए जाएं।
- वहां अपने दिन की शुरुआत योग-ध्यान, प्राकृतिक नजारों को निहारने आदि से करें।
- स्वयं से प्रश्न करें कि आप कौन हैं और अब तक अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए क्या-क्या किया?
- ऐसी किताबें पढ़ें, जो स्वयं को जानने में आपकी मदद करें।
- अपनी किसी ऐसी हॉबी, जिसे अपनी व्यस्त दिनचर्या की वजह से आप भूल गए थे, उसे करना शुरू करें। जैसे- पेंटिंग, फोटोग्राफी, राइटिंग आदि।
- टीवी, अखबार, मोबाइल से संपर्क न रखने की कोशिश करें। ये सभी चीजें आपको स्वयं की तलाश में बाधा पहुंचा सकती हैं।
द्य सकारात्मक सोचें। तीन महीने के अंदर आप स्वयं में परिवर्तन महसूस करेंगे। आपके अंदर असीम ऊर्जा होगी।
स्मिता
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