पैरों में तकलीफ लापरवाही ठीक नहीं
चलते समय अगर आपके पैरों में तकलीफ होती है, तो आपको परिधीय धमनी रोग (पेरिफेरल आर्टरी डिजीज संक्षेप में-पीएडी) हो सकता है। इस रोग को हल्के में लेना आपके लिए भारी पड़ सकता है। आइए जानते हैं-पीएडी से कैसे पाया जाए छुटकारा...
चलते समय अगर आपके पैरों में तकलीफ होती है, तो आपको परिधीय धमनी रोग (पेरिफेरल आर्टरी डिजीज संक्षेप में-पीएडी) हो सकता है। इस रोग को हल्के में लेना आपके लिए भारी पड़ सकता है। आइए जानते हैं-पीएडी से कैसे पाया जाए छुटकारा...
परिधीय धमनी रोग (पेरीफेरल आर्टरी डिजीज संक्षेप में-पीएडी) आम तौर पर पैरों और हाथों में होने वाली बीमारी है। इस बीमारी में पैरों और हाथों में रक्त संचार में बाधा पहुंचती है। इस कारण कई तरह की बीमारियां पैदा हो सकती हैं। इस रोग के लक्षण प्रभावित क्षेत्र और रक्त संचार में अवरोध के स्तर के अनुसार बदलते रहते हंै।
पैरों के रक्त संचार में कमी पीएडी रोग में पैरों में रक्त संचार की क्रिया सुचारु रूप से नहीं होती। इसके कारण पैरों के रक्त संचार में कमी आती है। अगर इस रोग का समय रहते समुचित इलाज नहीं किया गया, तो प्रभावित अंग को काटने की नौबत भी आ सकती है और गंभीर स्थिति में मरीज की मौत भी संभव है। शरीर के निचले अंगों की धमनियों में संकरापन या अवरोध होने की स्थिति में पेरिफेरल धमनी रोग उत्पन्न होते हैं।
एथेरोस्क्लीरोसिस नामक रोग होना इसका सबसे सामान्य कारण है। किशोरावस्था से ही एथेरोस्क्लीरोसिस पनपने लगता है। इसके बाद कुछ समय-आम तौर पर दशकों-तक यह बढ़ता रहता है। इस कारण रक्त प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है। अगर समय से इस रोग का उपचार नहीं किया जाए, तो यह पैरों में दिक्कत पैदा करता है और चलने-फिरने की क्षमता में कमी आती है। गंभीर स्थिति में यह रोग गैंगरीन में भी तब्दील
हो सकता है।
जब इस तरह के अवरोध हृदय में होते हैं तो सीने में दर्द होता है, जिसे एंजाइना कहा जाता है और जब मस्तिष्क में ऐसा होता है, तो स्ट्रोक होता है। कारण पीएडी के कुछ जोखिम भरे कारकों में उम्र का बढऩा, धूम्रपान, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हाइपरकोलेस्टेरोलेमिया (रक्त में कोलेस्टेरॉल की
अनियंत्रित मौजूदगी) जैसे कारण शामिल हैं। अगर परिवार के सदस्यों को पैरों की धमनियों में रुकावट की समस्या है, तो आपको पीएडी होने का खतरा अधिक है। जिन मरीजों के हृदय की धमनियों में अवरोध होते हैं, उनमें से लगभग 40 प्रतिशत मरीजों के पैरों की धमनियों में भी अवरोध होते हैं।
डायग्नोसिस
पीएडी का पता लगाने के लिए कई परीक्षण किये जा सकते हैं। एंकल ब्रैकियल इंडेक्स (एबीआई), अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन और एमआरआई जैसे अन्य परीक्षण भी किए जा सकते हैं।
रोकथाम
धूम्रपान करना, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हाई कोलेस्टेरॉल आदि समस्याओं से ग्रस्त होना पीएडी के जोखिम को बढ़ा देता है।
कोलेस्टेरॉल को नियंत्रित करने से पीएडी की बिगड़ती स्थिति को रोका जा सकता है। क्लाडीकेशन (नसों में ऐंठन आना, चलते समय दर्द होना और धमनियों में रक्त प्रवाह में रुकावट होना आदि समस्याएं) के लक्षणों को कम किया जा सकता है। धूम्रपान छोडऩे और मधुमेह और उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने पर क्लाडीकेशन के
लक्षणों (जैसे दर्द) में सुधार हो सकता है। क्लाडीकेशन के लक्षणों में सुधार करने के लिए
कई दवाएं दी जा सकती हैं। व्यायाम कार्यक्रम क्लाडीकेशन के लक्षणों को कम कर सकता है। व्यायाम प्रशिक्षण के अंतर्गत हर सप्ताह कम से कम तीन बार ट्रेडमिल या किसी ट्रैक पर 45 से 60 मिनट तक चला जाता है।
इलाज
तेज दर्द और बेचैनी वाले चुनिंदा रोगियों में, विशेषकर जिनमें उपचार असफल साबित हुआ हो, उनके लिए रीवैस्कुलराइजेशन प्रोसीजर्स लाभप्रद साबित हो सकते हंै। इस प्रोसीजर से हाथ व पैरों में रक्त प्रवाह में वृद्धि हो जाती है।
आम तौर पर इन प्रक्रियाओं (प्रोसीजर्स) को दो सामान्य श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।
बैलून एंजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग जैसी 'कैथेटर आधारित' प्रक्रियाएं या सर्जरी। रीवैस्कुलराइजेशन
तकनीक का चयन आपकी शारीरिक संरचना, लक्षणों की गंभीरता, पूर्व में किये गये इलाज और आपका समग्र स्वास्थ्य जैसे विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है। बैलून एंजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग जैसी कैथेटर आधारित तकनीकें काफी विकसित हुई हैं। इन तकनीकों के जरिये मरीज को अगले दिन घर भेज दिया जाता है।
डॉ. समीर गुप्ता
इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट
मेट्रो हॉस्पिटल एन्ड हार्ट इंस्टीट्यूट, नोएडा