स्टेम सेल थेरेपी: हताशा को बदले आशा में
हार्ट अटैक एक गंभीर रोग है, लेकिन इसका समुचित इलाज कराने के बाद भी अगर दिल हमेशा के लिए कमजोर हो जाये, तो यह एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन जाता है। कालांतर में यह समस्या हार्ट फेल्यर के रूप में पीड़ित व्यक्ति के लिए जानलेवा भी बन सकती है। इस समस्या के समाधान की तलाश में अम्
हार्ट अटैक एक गंभीर रोग है, लेकिन इसका समुचित इलाज कराने के बाद भी अगर दिल हमेशा के लिए कमजोर हो जाये, तो यह एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन जाता है। कालांतर में यह समस्या हार्ट फेल्यर के रूप में पीड़ित व्यक्ति के लिए जानलेवा भी बन सकती है। इस समस्या के समाधान की तलाश में अमेरिका समेत अन्य विकसित देशों के हृदय रोग विशेषज्ञ शोध-अनुसंधान कर रहे हैं। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार हार्ट अटैक और कालांतर में हार्ट फेल्यर की समस्या को नियंत्रित करने की सबसे कारगर चिकित्सा पद्धतियों में स्टेम सेल थेरेपी प्रमुख है।
उत्साहवर्द्धक परिणाम
विश्व प्रसिद्ध मेडिकल पत्रिका-लैंसेट- में प्रकाशित एक लेख के अनुसार हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के प्रोफेसर डॉ. रिचर्ड ली ने एक प्रयोग किया। इस प्रयोग के अंतर्गत हार्ट अटैक से पीड़ित हो चुके 17 रोगियों को आटोलोगस कार्डिएक स्टेम सेल्स उनके हृदयों में एक नली द्वारा प्रत्यारोपित की गयीं। नतीजे में पाया गया कि रोगियों के हार्ट की मांसपेशी में आया विकार 50 प्रतिशत तक कम हो गया।
वहीं किंग्स कॉलेज, लंदन के डॉक्टर जार्जिना एलीसन का 'सेल' नामक प्रतिष्ठित पत्रिका में बीते दिनों एक लेख प्रकाशित हुआ था। इस शोधपरक लेख के अनुसार कार्डिएक स्टेम सेल्स में होमिंग(यहां आशय उन कार्डिएक स्टेम सेल्स से है, जो शरीर के किसी निर्धारित भाग को स्वयं तलाश लेती हैं)की विशेषता है। इस वजह से वे रक्तनलिका में प्रवाहित करने पर हृदय में पहुंचकर सक्रिय होकर अपना प्रभाव दिखाने लगती हैं। इस तरह कार्डिएक स्टेम सेल्स हार्ट फेल्यर के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
यह प्रयोग भी सफल रहा
इसी तरह 71 वर्षीय सर्बिया (यूरोप) के निवासी मिरोस्लाव ड्लैसिक बताते हैं कि हार्ट अटैक के बाद उन्हें सांस फूलने की तकलीफ जारी थी। थोड़ा-सा परिश्रम करने से सांस तेजी से फूलने लगती थी और लगता था कि अब कभी वह सक्रिय रूप से जिंदगी न बिता सकेंगे लेकिन अमेरिका के मेयो क्लीनिक मिनेसोटा के कार्डियो-वैस्कुलर सर्जरी विभाग में कार्यरत प्रोफेसर ऐन्ड्रे टेरजिक ने उन्हें बोन मैरो से प्राप्त स्टेम सेल्स को कार्डिएक स्टेम सेल्स में परिवर्तित कर ट्रांसप्लांट किया। नतीजा आशा से बेहतर रहा, क्योंकि रोगी का इजेक्शन फ्रैक्शन(हार्ट की पंप करने की क्षमता) बढ़ गयी थी।
देश के अनुभव
विकसित देशों में ही नहीं बल्कि अपने देश के रोगी भी लाभान्वित हो रहे हैं। इसकी बानगी पेश कर रहे हैं उमराव हॉस्पिटल, मुंबई के कार्डियो वैस्कुलर सर्जन डॉ. राजीव श्रीवास्तव। डॉ. राजीव कई रोगियों के हार्ट की पंपिंग क्षमता स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन द्वारा बढ़ा चुके हैं।
मधुमेह में भी लाभप्रद
जीवन-शैली से संबंधित बीमारियों में हार्ट अटैक के अलावा मधुमेह (डाइबिटीज) को शामिल किया जाता है। इस रोग में भी स्टेम सेल थेरेपी लाभप्रद साबित हुई है। देश के एक प्रमुख पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर ए.भंसाली के 'सेल ट्रांसप्लांटेशन' नामक जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर के अनुसार स्टेम सेल थेरेपी से डाइबिटीज टाइप-2 के रोगियों में इंसुलिन की डोज काफी कम हो गयी और ऐसे लोगों में किसी प्रकार के दुष्प्रभाव भी नहीं पाये गये। गौरतलब है कि टाइप 2 डाइबिटीज से ग्रस्त ऐसे रोगी, जिन पर दवाएं बेअसर होने लगती हैं, उन्हें इंसुलिन की भी जरूरत पड़ सकती है।
बहरहाल, स्टेम सेल्स का प्रभाव इंसुलिन की डोज कम करने तक ही सीमित नहीं है। एक अमेरिकन जर्नल में आयरलैंड के डॉ. ओ. लाफलिन और प्रोफेसर टिमोथी ने अपने लेख में बताया है कि जब स्टेम सेल्स और कोलाजेन (एक प्रकार की कृत्रिम प्रोटीन से निर्मित सतह) की सतह को डाइबिटिक अल्सर पर चिपकाया गया, तो घाव की हीलिंग काफी तेज हो गयी। वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसा स्टेम सेल्स के द्वारा ग्रोथ फैक्टर के रिलीज होने और नयी रक्त नलिकाओं के निर्माण की वजह से होता है।
गौरतलब है कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और डीसीजीआई सरीखी स्तरीय सरकारी संस्थाओं द्वारा डाइबिटीज के संदर्भ में क्लीनिकल रिसर्च की अनुमति पहले ही दी जा चुकी है। गौरतलब है कि यह रिसर्च ऐलोजेनिक स्टेम सेल्स पर आधारित है, जहां बोन मैरो को डोनर्स से प्राप्त किया जायेगा।
(डॉ. बी.एस. राजपूत कंसल्टेंट स्टेम सेल्स ट्रांसप्लांट सर्जन क्रिटी केयर, हॉस्पिटल, मुंबई)