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ऑस्टियोपोरोसिस- ऐसे दें शिकस्त

ऑस्टियोपोरोसिस नामक रोग में शरीर की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं जो थोड़ा-सा आघात या चोट लगने पर टूट जाती हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस रोग में हड्डियां आंतरिक रूप से खोखली और कमजोर हो जाती हैं.. चोट लगने पर ऑस्टियोपोरोसिस की स्थिति में शरीर के प्रभावित भाग की किसी भी हड्डी मे

By Edited By: Published: Tue, 14 Oct 2014 10:13 AM (IST)Updated: Tue, 14 Oct 2014 10:13 AM (IST)
ऑस्टियोपोरोसिस- ऐसे दें शिकस्त

ऑस्टियोपोरोसिस नामक रोग में शरीर की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं जो थोड़ा-सा आघात या चोट लगने पर टूट जाती हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस रोग में हड्डियां आंतरिक रूप से खोखली और कमजोर हो जाती हैं..

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चोट लगने पर ऑस्टियोपोरोसिस की स्थिति में शरीर के प्रभावित भाग की किसी भी हड्डी में फ्रैक्चर हो सकता है, लेकिन आम तौर पर कूल्हे व कलाई की हड्डी और रीढ़ की हड्डी (स्पाइनल कॉर्ड) में फ्रैक्चर कहीं ज्यादा होते हैं। इनके अलावा शरीर के अन्य भागों की हड्डियों में होने वाले फ्रैक्चर प्लास्टर आदि चढ़ाने से कुछ समय बाद ठीक हो जाते हैं, लेकिन रीढ़ की हड्डी में प्लास्टर नहींचढ़ाया जा सकता। ऑस्टियोपोरोसिस वृद्ध लोगों में ज्यादा होता है।

वर्टिब्रल कंप्रेशन फ्रैक्चर

वस्तुत: रीढ़ की हड्डी का फ्रैक्चर कहीं ज्यादा गंभीर रूप अख्तियार कर सकता है। कई बार चोट लगे बगैर ऑस्टियोपोरोसिस की स्थिति में रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर हो जाता है, जिसे वर्टिब्रल कंप्रेशन फ्रैक्चर कहते हैं। यह फ्रैक्चर कालांतर में कमर दर्द के रूप में तब्दील हो जाता है।

वर्टिब्रल कंप्रेशन फ्रैक्चर में सबसे आम लक्षण पीठ का दर्द है।

कारण: गौरतलब है कि खान-पान में कैल्शियम की कमी की वजह से हड्डियों का घनत्व कम होने लगता है, जिसका प्रतिकूल असर हड्डियाें पर पड़ता है और ये कमजोर होने लगती हैं।

लक्षण: शुरुआती दौर में आम तौर पर ऑस्टियोपोरोसिस के कोई भी लक्षण उजागर नहीं होते। इसलिए यह समस्या अनदेखी रह जाती है।

ऑस्टियोपोरोसिस से रीढ़ की छोटी छोटी हड्डियां (वर्टिबा) कमजोर हो जाती हैं। इस कारण ये विकारग्रस्त हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप रीढ़ गोलाकार हो जाती है या इसमें कुबड़ापन आ जाता है। इस स्थिति में फ्रैक्चर का जोखिम बढ़ जाता है।

जांच: बोनडेनसिटोमीट्री।

इलाज: रीढ़ की हड्डी की सर्जरी में आधुनिक तकनीक बैलून काइफोप्लॉस्टी अत्यंत सुरक्षित व कारगर है।

इस तकनीक में आर्थोपेडिक बैलून की मदद से टूटी हड्डी को उठाकर सही स्थिति में रखते हैं। इस कारण हड्डी अपनी बुनियादी स्थिति में आ जाती है। इस तकनीक से पहले रोगी को कई तरह की चिकित्सकीय जांचों जैसे एक्सरे आदि से गुजरना पड़ता है ताकि रोगी के फ्रैक्चर की सही स्थिति का पता लगाया जा सके।

(डॉ.मनोज मिगलानी, आर्थो-स्पाइन सर्जन फोर्टिस हॉस्पिटल, नई दिल्ली)

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