क्या करेंजब बच्चे की नाक से निकले खून?
गर्मियों के मौसम में वयस्कों की तुलना में बच्चों की नाक से खून आने (नकसीर फूटने) के मामले कुछ ज्यादा ही बढ़ जाते हैं। आम तौर पर बच्चों की नाक से खून आने के मामले नुकसानरहित होते हैं और कुछ समय बाद खून बहना स्वयं बंद हो जाता है। अधिकांश मामलों में यह समस्या बिल्कुल
गर्मियों के मौसम में वयस्कों की तुलना में बच्चों की नाक से खून आने (नकसीर फूटने) के मामले कुछ ज्यादा ही बढ़ जाते हैं।
आम तौर पर बच्चों की नाक से खून आने के मामले नुकसानरहित होते हैं और कुछ समय बाद खून बहना स्वयं बंद हो जाता है। अधिकांश मामलों में यह समस्या बिल्कुल भी जानलेवा नहीं होती, लेकिन मां-बाप को चिंता हो ही जाती है। 9 प्रतिशत बच्चों में नकसीर फूटने के मामले बार-बार सामने आते हैं, इसका प्रमुख कारण नाक की बीच वाली हड्डी के सामने वाले भाग में रक्त की जो छोटी -छोटी नलिकाएं (ब्लड वेसेल्स) होती हैं, उन नलिकाओं में गर्मी के कारण शुष्कता (ड्राईनेस) आ जाती है।
प्राथमिक कारण
-नाक में उंगली डालने के कारण नाखून लगने से।
-गर्म मौसम के चलते नाक में मौजूद श्लेष्मा झिल्ली का सूख जाना।
-नाक में किसी बाहरी वस्तु का प्रवेश करना।
इस समस्या के कुछ कारण ऐसे भी होते हैं, जो बहुत सामान्य नहीं होते। जैसे..
-लिवर की बीमारी। इस कारण रक्त में थक्का बनाने वाले कारकों में कमी आ जाती है।
-वंशानुगत हैमोरेजिक टेलेनजीएकटेसिस नामक रोग के कारण भी नकसीर की समस्या पैदा हो सकती है।
उपचार
बच्चों में नकसीर फूटने के ज्यादातर मामले सामान्य होते हैं और किसी हस्तक्षेप के बगैर स्वयं ठीक हो जाते हैं। जब किसी बच्चे में यह समस्या देखने में आए, तो उपचार के बुनियादी पहलू का इस आधार पर आकलन किया जाता है कितना खून बह गया है।
बच्चे की नाक के रक्तस्राव को रोकने के लिए इस विधि पर अमल करें। पीड़ित बच्चे को बिठाकर थोड़ा आगे झुकाएं और घड़ी देखकर पांच मिनट के लिए हल्के से उसकी नाक दबाएं और साथ में बर्फ का इस्तेमाल भी करें। इसके साथ ही बच्चे की नाक से खून बहना 95 प्रतिशत रुक जाता है। खून बहने को रोकने के इस सरल उपाय के बाद बच्चा नियमित गतिविधियों को फिर से शुरू कर सकता है।
अगर सीधे तौर पर दबाव देने के बाद भी नाक से खून बहना नहीं रुके, तो पीड़ित बच्चे को शीघ्र अस्पताल भेजना चाहिए। ऐसे रोगियों को चिकित्सकीय मदद की भी आवश्यकता होती है। नैजल पैक भी नाक में डालना पड़ सकता है। यहां तक की एंडोस्कोपिक आर्टरी लाइगेशन तकनीक की भी जरूरत पड़ सकती है।
(डॉ.डब्लू.वी.बी.एस. रामालिंगम
सीनियर ईएनटी स्पेशलिस्ट
बी.एलके. हॉस्पिटल, नई दिल्ली)