बोन कैंसर रोगी अब बचा सकेंगे अपने अंगों को
बोन कैंसर एक सामान्य रोग नहीं है, लेकिन जब भी होता है तो ज्यादातर मामलों में हाथ या पैर को काटना पड़ता है। फिर भी जान बचाने की कोई गारंटी नहीं होती। बहरहाल, इलाज में आए नये तरीकों (यहां आशय- प्रोटोकाल) और उन्नत श्रेणी के लिम्ब साल्वेज इंप्लांट के प्रयोग से
बोन कैंसर एक सामान्य रोग नहीं है, लेकिन जब भी होता है तो ज्यादातर मामलों में हाथ या पैर
को काटना पड़ता है। फिर भी जान बचाने की कोई गारंटी नहीं होती। बहरहाल, इलाज में आए
नये तरीकों (यहां आशय- प्रोटोकाल) और उन्नत श्रेणी के लिम्ब साल्वेज इंप्लांट के प्रयोग से
मरीज के अंग के साथ-साथ जान बचाना भी अब संभव हो चुका है।
अब्दुल एक 13 वर्षीय पाकिस्तानी है। जब लगभग सात माह पूर्व उसकी दाहिनी बाजू
में सूजन और दर्द शुरू हुआ, तब डॉक्टरों ने उसे मवाद समझकर चीरा लगा दिया, लेकिन
उसकी तकलीफ कम होने की बजाय और बढ़ गयी। तब डॉक्टरों ने उसे एमआरआई और
बॉयोप्सी की सलाह दी थी। कुछ ही दिनों में आयी रिपोर्ट से यह साबित हो गया कि वह पाकिस्तानी
बालक एक खतरनाक बोन कैंसर ऑस्टियोसारकोमा से पीडि़त है। तुरंत ही कीमोथेरेपी शुरू की गई और उसका असर भी अच्छा दिखा। बाजू की सूजन और दर्द काफी कम हो गया, पर लाहौर और कराची के बड़े अस्पतालों के सभी कैंसर सर्जन्स ने बाजू काटने की सलाह दी। ऐसा इसलिए, क्योंकि कैंसर कंधे से कोहनी तक फैल चुका था।
ऐसे में उन्हें पड़ोसी मुल्क की याद आयी और उन्होंने मुझसे मुंबई में स्थित नानावती हॉस्पिटल के एच.सी.जी. कैंसर सेंटर में संपर्क किया।
डॉक्टरों के समक्ष चुनौती
यह काफी चुनौती भरा मामला था। लगभग छह घंटे की सर्जरी में हमारी टीम ने कैंसर ग्रस्त पूरी
बोन को निकाला और नये आए मॉड्युलर इंप्लांट सिस्टम को लगा दिया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह
थी कि इसमें मरीज की कोई भी रक्त नलिका या नस को क्षति नहीं पहुंची। इसलिए रिकवरी भी
तेजी से हुई। ऑपरेशन के बाद भी मरीज को कीमोथेरेपी दी जा रही है।
क्या है नया प्रोटोकाल
-लिम्ब साल्वेज सर्जरी (जहां तक संभव हो मरीज का हाथ या पैर बचाया जाए)।
-कीमोथेरेपी (सर्जरी के पहले और बाद)।
-डेन्ड्राइटिक सेल थेरेपी, जहां पर कीमोथेरेपी प्रभावी न हो या कीमो के बाद भी जान जाने का
खतरा हो)।
जब कीमोथेरेपी हो बेअसर तब...
बोन कैंसर के ज्यादातर मामलों में कीमोथेरेपी प्रभावी होती है, लेकिन कोन्ड्रोसारकोमा नामक
बोन कैंसर में इसका प्रभाव नगण्य है। ऐसी हालत में फंसी, हरियाणा की 28 वर्षीय एक महिला और
उसके परिजनों ने जब दिल्ली के अस्पतालों के चक्कर लगाने शुरू किए, तब सबका लगभग
एक ही जबाव था कि बाजू काटना ही इसका एक इलाज है। ऐसा इसलिए, क्योंकि कीमोथेरेपी और
रेडियोथेरेपी इस मर्ज में बेअसर है और ऑपरेशन के बाद भी दोबारा कैंसर होने का जोखिम रहता
है। उस महिला को इतनी कम उम्र में अपनी बाजू गंवाना मंजूर नहीं था। इसलिए उसने संपर्क
किया। ट्यूमर बेहद बड़ा था, लेकिन सावधानीपूर्वक निकाल लिया गया और उसे
डेन्ड्राइटिक सेल वैक्सीन बनाने के लिए एक खास लैब में भेजा गया, जहां पर उच्च शिक्षा प्राप्त
पीएचडी ऑन्कोजेनेटिक्स द्वारा उस वैक्सीन को बनाया जायेगा और कीमोथेरेपी की जगह उसका
प्रयोग किया जायेगा।
ये बानगियां हैं, नये इलाज की जहां अंग के संरक्षण के साथ जान की भी सुरक्षा है।
अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार सन् 2015 में सिर्फ अमेरिका में बोन कैंसर के तीन
हजार नये रोगियों के डिटेक्ट होने का अनुमान है और लगभग डेढ़ हजार पीडि़त व्यक्तियों की
मृत्यु होने का अनुमान है। ऐसी स्थिति से जूझने के लिये इलाज के अन्य पहलुओं पर भी ध्यान
देने की जरूरत है।
बोन कैंसर के लक्षण
-हड्डी में दर्द।
-जोड़ के पास सूजन।
- अकारण फ्रैक्चर।
- हमेशा थकान रहना।
- तेजी से वजन का गिरना।
जांचें कराएं: बोन स्कैन, सीटी स्कैन,एमआरआई. पेट स्कैन और एक्स-रे।
रिस्क फैक्टर
बोन कैंसर किसी भी उम्र के रोगी को हो सकता है, लेकिन रेडिएशन थेरेपी के बाद इसकी
संभावना बढ़ जाती है। इसी प्रकार पेजेट्स बोन डिजीज और जीन विकृति से संबंधित रोगों में भी
इसकी संभावना बढ़ जाती है।
डॉ. बी.एस.राजपूत
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हार सकता है कैंसर
आर्थोपेडिक व स्टेम सेल ट्रांसप्लांट सर्जन
क्रिटीकेयर हॉस्पिटल-रिसर्च सेंटर, जुहू, मुंबई