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सर्दियों में सांस के रोगी रहें सचेत

सर्दियों में तापमान में कमी और वातावरण में प्रदूषित तत्वों की बढ़ी हुई मात्रा सेहत के लिए मुसीबत का कारण बन सकती है। सर्दियों का मौसम खासतौर पर सांस के मरीजों के स्वास्थ्य के लिए चुनौती बन जाता है। इस मौसम में सांस संबंधी दिक्कतें जैसे दमा, फ्लू और सर्दी-जुकाम

By deepali groverEdited By: Published: Tue, 09 Dec 2014 10:34 AM (IST)Updated: Tue, 09 Dec 2014 10:52 AM (IST)
सर्दियों में सांस के रोगी रहें सचेत

सर्दियों में तापमान में कमी और वातावरण में प्रदूषित तत्वों की बढ़ी हुई मात्रा सेहत के लिए मुसीबत का कारण बन सकती है। सर्दियों का मौसम खासतौर पर सांस के मरीजों के स्वास्थ्य के लिए चुनौती बन जाता है। इस मौसम में सांस संबंधी दिक्कतें जैसे दमा, फ्लू और सर्दी-जुकाम के मरीजों की संख्या काफी बढ़ जाती है।

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प्रदूषित कोहरे का दुष्प्रभाव

सर्दियों में होने वाला कोहरा (जो वायुमंडल की जलवाष्प के संघनित होने से बनता है) कमोबेश हानिरहित होता है, लेकिन धुएं और सस्पेन्डिड पार्टिकल्स (छोटे-छोटे प्रदूषित कणों) के इर्द-गिर्द जमने से बना स्मोग (प्रदूषित कोहरा) मानव शरीर और खासतौर पर श्वसन तंत्र के लिए किसी विपत्ति से कम नहीं होता। इस वजह से लोगों की आंखों में जलन, आंसू, नाक में खुजली, गले में खराश और खांसी जैसे लक्षण सामान्य तौर पर देखने को मिलते हैं। सर्दी बढ़ने के साथ ही सांस की नली की संवेदनशीलता तुलनात्मक रूप से बढ़ जाती है, जिससे सांस की नली सिकुड़ती है। इस कारण सांस के रोगियों में समस्या की आशंका बढ़ जाती है।

वृद्ध रहें सजग

वृद्धों में सांस संबंधी समस्याएं कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती हैं। दरअसल बुजुर्गों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण उन्हें सांस संबधी बीमारियों का ज्यादा खतरा रहता है।

दमा या अस्थमा: वातावरण में किसी भी प्रकार के बदलाव से शरीर में परिवर्तन होता है, जिससे, एलर्जी और अस्थमा के रोगी मुख्य रूप से प्रभावित होते हैं। जाड़े में इन मरीजों की परेशानियां बढ़ जाती है। इसलिए उन्हें विशेष तौर पर अपना ख्याल रखने की सलाह दी जाती है।

फ्लू या इंफ्लूएंजा: यह समय फ्लू या इंफ्लूएंजा के वाइरस के सक्रिय होने का है। इस कारण फ्लू के मामलों में काफी वृद्धि हो जाती है। बच्चों, वृद्धों, गर्भवती महिलाएं और एच.आई.वी. से पीडि़त रोगियों में यह संक्रमण गंभीर रूप ले सकता है।

क्या करें

-सांस के रोगी खासकर दमा के मरीज न सिर्फ सर्दी से बचाव करें बल्कि नियमित रूप से डॉक्टर के संपर्क में रहें। डॉक्टर की सलाह से अपने इनहेलर की डोज भी दुरुस्त कर लें। कई बार इनहेलर्स की मात्रा बढ़ानी होती है।

-सर्दी से बचकर रहें। पूरा शरीर ढकने वाले कपड़े पहनें। सिर, गले और कान को खासतौर पर ढकें।

-सर्दी के कारण साबुन-पानी से हाथ धोने की अच्छी आदत न छोड़ें।

-गुनगुने पानी से नहाएं।

-सर्दी के मौसम में मालिश लाभप्रद है।

-सर्दी, जुकाम, खांसी, फ्लू और सांस की अन्य बीमारियों से ग्रस्त रोगियों को सुबह- शाम भाप(स्टीम) लेनी चाहिए।

-फ्लू के रोगी खांसते या छींकते समय मुंह पर हाथ रखें या रूमाल का प्रयोग करें।

-फ्लू के रोगियों द्वारा इस्तेमाल की गई वस्तुओं जैसे रूमाल व चादरों आदि को सुरक्षित विधि से साफ करें।

-अगर आप में फ्लू के लक्षण हैं, तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें और घर मे ही रहें।

-फ्लू पीडि़त से कम से कम 1 मीटर दूर रहें।

-हाथ मिलाने या गले मिलने से बचें, भारतीय पद्धति के अनुसार नमस्कार करें।


क्या न करें

-सर्दी में सांस के मरीजों को सुबह की सैर नहीं करनी चाहिए।

-सुबह ठंडे पानी से न नहाएं। सांस के रोगियों को अलाव के धुएं से बचना चाहिए, अन्यथा इससे उन्हें सांस का दौरा पड़ सकता है।

(डॉ.सूर्यकांत त्रिपाठी, वरिष्ठ सांस रोग विशेषज्ञ)

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