एंजियोप्लास्टी : खुशी से कराएं अपने दिल का इलाज
बैलून एंजियोप्लास्टी और विभिन्न तरह के स्टेंट्स के विकास के कारण हृदय धमनियों में अवरोध को हटाने के लिए बाईपास सर्जरी की जरूरत समाप्त हो चुकी है...
आमतौर पर सीने में दर्द या भारीपन को लोग गैस का नाम दे देते हैं और इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं। अधिकतर दिल के दौरे के आने से पहले कुछ लक्षण महूसस होते हैं। कई बार सिर्फ बेचैनी होती है, सीने में दर्द नहीं महसूस होता।
इसलिए पड़ता है दौरा
दिल तक खून पहुंचाने वाली किसी एक या एक से अधिक धमनियों में जमे वसा के थक्के (क्लॉट्स) के कारण रुकावट आ जाती है। थक्के के कारण खून का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है। खून नहीं मिलने से दिल की मांसपेशियों की गति रुक जाती है। अधिकांश मौतें दिल के दौरे में थक्के के फट जाने से होती हैं। ऐसा हार्ट अटैक, जिसके लक्षण अस्पष्ट हों या जिसका पता ही न चले, उसे साइलेंट हार्ट अटैक कहते हैं।
हार्ट अटैक: तब हो जाएं सचेत
- सीने में बेचैनी और एेंठन होना। इस दौरान सीने में दर्द भी संभव है।
- सीने के केंद्र में कुछ समय तक तेज दबाव या जकड़न का भी अहसास हो सकता है।
- दर्द और बेचैनी की यह स्थिति छाती से लेकर पीड़ित व्यक्ति के कंधों, बाजुओं, दांतों अथवा जबड़ों तक महसूस हो सकती है।
- पसीना आना और सांस फूलना।
- सिर चकराना और किसी कारण के बगैर थकान महसूस होना।
- उपर्युक्त लक्षणों में से किसी भी लक्षण के प्रकट होने पर अतिशीघ्र एंबुलेंस के लिए अस्पताल को फोन करें और अच्छे अस्पताल में अनुभवी हार्ट विशेषज्ञ से संपर्क करें।
हर मामले में बाईपास सर्जरी नहीं
दिल के दौरे को टालने या दिल के दौरे के पड़ने पर मरीज की जान बचाने के लिए एक समय ऑपरेशन का सहारा लेना पड़ता था, लेकिन बैलून एंजियोप्लास्टी और विभिन्न तरह के स्टेंट्स के विकास के कारण अब हृदय धमनियों में अवरोध (ब्लॉकेज) को हटाने के लिए हर मामले में बाईपास सर्जरी कराने की जरूरत नहीं है।
ओपन हार्ट सर्जरी का विकल्प
उपर्युक्त दोनों नवीनतम तकनीकों को ओपन हार्ट सर्जरी का कारगर विकल्प माना जाने लगा है। मौजूदा समय में एंजियोप्लास्टी के साथ धमनियों में स्टेंट इंप्लांट का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है। इस तकनीक को कोरोनरी स्टेंटिंग कहा जाता है। इस तकनीक को एंजियोप्लास्टी भी कहते हैं। इसमें अंतर इतना है कि अवरुद्ध धमनी में एंजियोप्लास्टी तकनीक की मदद से स्टेंट नामक स्प्रिंगनुमा यंत्र पहुंचाया जाता है और फिर इसे ऑटोमेटिक
छतरी की तरह खोल दिया जाता है।
आम तौर पर स्टेंटिंग एंजियोप्लास्टी का प्रयोग एक या दो धमनियों में होने वाले अवरोध (ब्लॉकेज) को दूर करने के लिए किया जाता है। अगर तीनों धमनियों में अवरोध हो, तो आम तौर पर बाईपास सर्जरी की जाती है। बाईपास में चीर-फाड़ करनी पड़ती है और अगर बाईपास के बाद फिर से अवरोध उत्पन्न हो जाए, तो उसे या तो स्टेंटिंग एंजियोप्लास्टी से ठीक किया जाता है या फिर दोबारा बाईपास करना पड़ सकता है, जो बहुत जोखिमभरा होता है। कुछ मरीजों को हाई ब्लड प्रेशर और हृदय रोग के अलावा डायबिटीज और अन्य बीमारियां भी होती हैं। इस स्थिति में उनकी बाईपास सर्जरी में जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। ऐसा देखने में आया है कि कुछ लोग बहुत
ज्यादा भयभीत होने के कारण बाईपास कराना नहीं चाहते और जब कम उम्र के व्यक्तियों को भी तीनों धमनियों में ब्लॉक होने पर बाईपास कराने का सुझाव दिया जाता है, तो उनके लिए यह निर्णय लेना बहुत कठिन होता
है। ऐसे रोगियों को बाईपास की सलाह दी जाती है, किंतु मैंने यह ऑब्जर्व किया है कि सर्जरी के डर से मरीज तैयार नहीं होते हैं। इसलिए रोगियों की जान बचाने के लिए हमें स्टेंटिंग एंजियोप्लास्टी का सहारा लेना पड़ता है।
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जब धमनी सौ फीसदी ब्लॉक्ड हो
कई बार जो धमनी 100 प्रतिशत तक बंद (ब्लॉक्ड) होती है, उसे खास तकनीक से खोला जाता है। जिन धमनियों में कैल्शियम जमा होता है, उन्हें डायमंड ड्रिलिंग तकनीक के जरिये खोला जाता है। इस तरह उन मरीजों को जो चीरफाड़ से डरे होते हैं, उन्हें बाईपास से बचाया जाता है। बहरहाल मैं पाठकों को यही सलाह दूंगा कि जिन लोगों की तीनों धमनियों में अवरोध (ब्लॉकेज) हैं, तो उन्हें बाईपास सर्जरी को अहमियत देनी चाहिए, लेकिन जो लोग बाईपास नहीें कराना चाहते, उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि 90 प्रतिशत से ज्यादा लोगों में धमनियों को स्टेंटिंग एंजियोप्लास्टी द्वारा खोला जा सकता है। ज्यादातर लोगों को हृदय की धमनियों में अवरोध या रुकावट का पता बहुत देर से लगता है। इस स्थिति से बचने के लिए हर व्यक्ति को 25 साल के बाद जनरल कार्डियक चेकअप कराना चाहिए।
स्टेंट किसी वरदान से कम नहीं
स्टेंट हृदय रोगियों के लिए बहुत बड़ा वरदान है। ऐसा देखने में आया है कि कई बार हृदय धमनी में 90 प्रतिशत से भी ज्यादा अवरोध होता है और इसके साथ ही साथ हार्ट अटैक भी जारी रहता है। ऐसे वक्त में एक अरजेंट सिचुएशन पैदा हो जाती है और बाईपास सर्जरी की तैयारी करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में स्टेंंटिंग से कुछ ही मिनटों में प्रमुख या मेन आर्टरी खोल दी जाती है और एक मरते हुए मरीज को नई जिंदगी मिल जाती है। मेरी राय में मरीज और डॉक्टर का रिश्ता विश्वास की डोर से बंधा होता है। इस विश्वास को टूटना नहीं चाहिए।
इसलिए विशेषज्ञ डॉक्टर को जरूरत पड़ने पर ही स्टेंट डालना चाहिए। तकनीकों और कारगर उपचार विधियों की उपलब्धता के बावजूद हृदय रोगों से बचे रहने के लिए परहेज करना ही उचित है। नियमित व्यायाम करके, वजन पर नियंत्रण रखकर, धूम्रपान न करके, हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखकर, कम नमक का सेवन करके और तनाव से दूर रहने से हृदय रोगों से एक हद तक बचना संभव है।
डॉ.पुरुषोत्तम लाल
सीनियर इंटरवेंशनल
कार्डियोलॉजिस्ट, मेट्रो हार्ट
इंस्टीट्यूट, नोएडा
- जेएनएन