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डिप्रेशन से लड़ने में सबकी भूमिका हो : हेंक बेकेडम

भारत को भले ही संतुष्ट रहने वालों के देश के रूप में देखा जाता हो, लेकिन यहां भी चार से पांच फीसद लोग अवसादग्रस्त हैं।

By Srishti VermaEdited By: Published: Fri, 07 Apr 2017 11:37 AM (IST)Updated: Fri, 07 Apr 2017 12:11 PM (IST)
डिप्रेशन से लड़ने में सबकी भूमिका हो : हेंक बेकेडम
डिप्रेशन से लड़ने में सबकी भूमिका हो : हेंक बेकेडम

अवसाद (डिप्रेशन) को हल्के में लेना बहुत भारी पड़ सकता है। यह आदमी के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को तो गंभीरता से प्रभावित करता ही है, गंभीर मामलों में यह आत्महत्या करने की वजह बनता है। भारत को भले ही संतुष्ट रहने वालों के देश के रूप में देखा जाता हो, लेकिन यहां भी चार से पांच फीसद लोग अवसादग्रस्त हैं। ऐसे में इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस का आयोजन इसी विषय पर किया जा रहा है। डिप्रेशन से लड़ने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने नारा दिया है- ‘डिप्रेशन : आओ बात करें’। पेश है भारत के संदर्भ में इसकी अहमियत को लेकर डब्ल्यूएचओ के भारत प्रतिनिधि हेंक बेकेडम से बातचीत के प्रमुख अंश...

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इस बार दुनिया भर में विश्व स्वास्थ्य दिवस डिप्रेशन के मुद्दे पर आयोजित किया जा रहा है। लेकिन भारत के लिए यह क्यों अहम है?
-भारत में चार से पांच फीसद लोग डिप्रेशन के शिकार हैं। यह लोगों की सेहत को तो प्रभावित करता ही है, उनके काम व उत्पादकता को भी प्रभावित करता है। ऐसे व्यक्ति के साथ पूरा परिवार प्रभावित होता है।

डिप्रेशन को लेकर डब्ल्यूएचओ ने नारा दिया है- आओ बात करें। ऐसा क्यों?
-यह ऐसी समस्या है जिससे निपटने में सबकी भूमिका होनी चाहिए। अक्सर इससे प्रभावित व्यक्ति को पता ही नहीं होता कि वह डिप्रेशन का शिकार है। कई बार वह अपने परिवार के लोगों से इस बारे में बात नहीं करना चाहता। ऐसे में यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम अपने मित्रों, सहकर्मियों और परिवार के लोगों का ध्यान रखें। अगर कोई लंबे समय से अच्छा महसूस नहीं कर रहा तो उससे बात करना, उसके साथ समय बिताना और उसके बोझ को हल्का करना सभी के लिए जरूरी भी है और यह किया भी जा सकता है। अगर शुरुआती दौर में व्यक्ति को पता चल जाए कि वह अवसाद का शिकार है तो इस पर बहुत आसानी से काबू पाया जा सकता है। साथ ही उसे यह भी नहीं लगना चाहिए कि वह किसी ऐसी बीमारी का शिकार है जिसके लिए उसे शर्मिंदा होना चाहिए। हालांकि यह भी सही है कि कई बार सिर्फ इतना ही काफी नहीं होता और उसे इलाज की जरूरत होती है।

क्या आपके किसी नजदीकी व्यक्ति को ऐसी समस्या हुई?
-मेरे एक बहुत पुराने पारिवारिक मित्र हैं, उनके बच्चे ने आत्महत्या कर ली थी। डिप्रेशन आत्महत्या का एक बड़ा कारण है। हालांकि ऐसा नहीं है कि आत्महत्या करने वाला हर व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार हो। लेकिन ऐसे 70 से 80 प्रतिशत मामलों का कारण डिप्रेशन ही होता है।

इस समस्या के लिहाज से भारत की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए?
-यह सही है कि हर क्लीनिक में एक मनोवैज्ञानिक उपलब्ध नहीं हो सकता। इसलिए मौजूदा स्वास्थ्य प्रदाताओं को इस संबंध में प्रशिक्षण दिया जा सकता है। इस लिहाज से भारत ने अच्छी पहल की भी है। क्योंकि हम तब तक इंतजार में बैठे नहीं रह सकते, जब तक कि हमारे पास पर्याप्त संख्या में मनोवैज्ञानिक उपलब्ध नहीं हो जाएं। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि लोगों को मित्र, सहकर्मी और परिवार के सदस्य के तौर पर जागरूक किया जाए। इसके लिए बहुत ज्यादा संसाधन की भी जरूरत नहीं है।

क्या स्वास्थ्य पर हो रहा सरकारी खर्च पर्याप्त है?
-स्वास्थ्य पैमानों पर देखें तो इस क्षेत्र के 11 देशों में भारत लगातार निचले तीन देशों में बना हुआ है। स्वास्थ्य पर हो रहा खर्च अब भी बहुत कम है। इस वर्ष तो स्वास्थ्य बजट में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन पिछले तीन साल के औसत को देखें तो इस पर बहुत कम ध्यान दिया गया। राज्य सरकारों की जो प्रवृत्ति है, वे इस पर उतना ध्यान नहीं देती हैं। ऐसे में केंद्र को ही इसे प्राथमिकता में लेना होगा।

बदलती सामाजिक परिस्थितियों..
-सामाजिक परिस्थितियां लगातार बदल रही हैं। अब बचपन से ही इतने तरह के दबाव होते हैं। अक्सर बच्चों के पास खेलने का समय नहीं होता है। अभिभावकों की उम्मीदें काफी बढ़ गई हैं। हालांकि यह जरूरी है कि बच्चों को सुदृढ़ बुनियादी शिक्षा मिले। लेकिन बेहतर नतीजों के लिए मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को भुलाना ठीक नहीं होगा। इस लिहाज से वयस्कों को भी अपने कामकाज और जीवनशैली को संतुलित बनाना होगा। यह नहीं भूलें कि आपको खुद को शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से तरोताजा रखना है।

हाल में जारी भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति पर आपका क्या कहना है?
-इसने प्राथमिक स्वास्थ्य पर दो-तिहाई खर्च करने की वकालत की है, जो बहुत अच्छा है। इसी तरह इसमें यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज की बात की गई है, जो बहुत अच्छी बात है। यूनिवर्सल हेल्थ बहुत लंबा और कठिन रास्ता है। मगर इस पर हमें चलना ही होगा। एक समय चीन भी भारत जैसी स्थिति में था। लेकिन इसने यह कर दिखाया है।

योग उपयोगी पर अनिवार्य न हो

डिप्रेशन से लड़ने में योग कितना प्रभावी हो सकता है?
-इस लिहाज से योग बहुत उपयोगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी योग के प्रचार को लेकर बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है। हम अपने दफ्तर में हर सप्ताह दो बार योग क्लास करवाते हैं। मैं खुद भी प्रणायाम और कुछ आसान आसन करता हूं।

दफ्तरों के साथ स्कूलों और कालेजों में क्या इसे अनिवार्य करना ठीक होगा?
-शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए योग बहुत उपयोगी है। मगर मैं यह नहीं कहूंगा कि सिर्फ योग से ही यह उद्देश्य पूरा हो सकता है। कोई अन्य गतिविधि भी हो सकती है। तरीके आपको खुद ढूंढ़ने हैं, लेकिन इसकी जरूरत को ध्यान में रखना होगा।

-मुकेश केजरीवाल ’ नई दिल्ली’ 

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