डिजीटल इंडिया का सपना, टीवी तक खराब हैं सरकारी स्कूल में
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : प्रधानमंत्री ने लोगों को डिजिटल इंडिया का सपना दिखाया है। वहीं
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : प्रधानमंत्री ने लोगों को डिजिटल इंडिया का सपना दिखाया है। वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल डिजिटल इंडिया सप्ताह मना चुके हैं, लेकिन प्रदेश के सरकारी स्कूलों में रखे टीवी तक खराब पड़े हैं। वर्ष 2007 में सरकार ने स्कूलों में शिक्षा को डिजिटल करने के उद्देश्य से एजुसेट सिस्टम लगाए थे। करोड़ों रुपये खर्च कर खरीदे गए ज्यादातर एजुसेट सिस्टम अलमारी की शोभा बढ़ा रहे हैं।
वर्ष 2007 में जिले के 609 प्राइमरी और 41 सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में एजुसेट सिस्टम लगाए गए थे। प्राइमरी स्कूलों में 27 इंच का सैमसंग टीवी, 12-12 वोल्ट की दो बैटरियां, एक यूपीएस, सेट टॉप बॉक्स और एक डिश एंटिना था, जबकि सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में टीवी की जगह 42 इंच की एलईडी थी। जब ये रखे गए थे, तो यूपीएस और बैटरी की तीन साल की वारंटी थी।
एक साल भी नहीं चली बैटरी
स्कूलों में रखे एजुसेट की बैटरियां एक साल भी ठीक से नहीं चली, जबकि ये तीन साल की वारंटी में थीं। जिस कंपनी के पास ठेका था, उसने समय पर उनकी मरम्मत नहीं की। उन्हें लगाए आज सात साल हो गए हैं। आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि जिन बैटरियों की वारंटी तीन साल की थी, आज सात साल बाद उनकी क्या हालत होगी। रही-सही कसर स्कूल के अध्यापकों ने पूरी कर दी। जो ठीक हो सकती थी, उन्हें ठीक नहीं कराया गया। कई स्कूलों ने उन्हें ठीक कराने के लिए डीईओ को लिखा तो कोई जवाब नहीं मिला। इसलिए सरकारी तंत्र की उदासीनता की भेंट एजुसेट चढ़े हैं।
बिजली कट बने बाधा
शहर में तो फिर भी कुछ एजुसेट सिस्टम ठीक है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में बिजली कटौती डिजीटल शिक्षा की राह में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। वैसे तो एजुसेट सिस्टम चलते ही नहीं है। क्योंकि बैटरियां खराब हैं, इसलिए बिजली भी साथ नहीं दे रही। ग्रामीण क्षेत्र में एक सप्ताह बिजली सुबह 11 से दोपहर एक बजे तक और दूसरे सप्ताह दोपहर एक बजे से तीन बजे तक चलती है। कई बार तो इसमें भी फाल्ट आ जाता है। यदि सभी एजुसेट सिस्टम को ठीक मान लिया जाए, तो भी विद्यार्थी इसका फायदा सिर्फ उसी सप्ताह उठा पाते हैं, जब बिजली सुबह 11 से दोपहर एक बजे तक चलती हो, लेकिन ऐसा संभव नहीं है। एजुसेट सिस्टम का बैटरी बैकअप नहीं है। उनके न चलने का यह भी एक प्रमुख कारण है। इसके साथ ही सिग्नल सही नहीं आते हैं। इससे भी सिस्टम फ्लॉप साबित हुए हैं।
90 प्रतिशत पड़े हैं बंद : सरीन
राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष प्रदीप सरीन का कहना है कि केवल एक साल ही एजुसेट सही चले हैं। उसके बाद से यह बंद हैं। 90 प्रतिशत स्कूलों के सिस्टम खराब पड़े हैं। उनकी देखरेख को लेकर विभाग भी गंभीर नहीं हैं। संघ भी कई बार इनको चलाने की मांग कर चुका हैं, लेकिन अधिकारियों ने कोई रुचि नहीं दिखाई। सिस्टम मात्र शो पीस बन कर रह गए।
'जल्द ठीक कराने का प्रयास'
डीईओ आनंद चौधरी का कहना है कि खराब एजुसेट सिस्टम को ठीक कराने के लिए निदेशालय को पत्र लिख चुके हैं। आर्डर मिलते ही उन्हें ठीक करा दिया जाएगा। अगर किसी एजुसेट में छोटी-मोटी कमी तो उसे स्कूल स्तर पर भी ठीक कराने का प्रयास किया जाएगा।