अठारह हजार श्लोकों से हुई भागवत रचना- अतुल शास्त्री
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : भागवत में ही राधा नाम के बाण विद्यमान हैं, इसके नाम से ही मनुष्य
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : भागवत में ही राधा नाम के बाण विद्यमान हैं, इसके नाम से ही मनुष्य को छह महीने की समाधि लग जाती है। सुखदेव को भागवत का मुख्य पात्र माना गया है। यह शब्द अतुल कृष्ण शास्त्री ने कहे। जो अमादलपुर के प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर में श्रीमद् भागवत कथामृत वर्षा कर रहे हैं। यह आयोजन साप्ताहिक दृष्टिगत कराया जा रहा है। उसके मुख्य आयोजक ब्रह्मचारी अखिलानंद हैं। इसका शुभारंभ मंत्रोच्चारण से साथ किया गया। कथावाचक शास्त्री ने कहा कि जब ब्यास जी एक दिन उदास बैठे थे तो नारद उनसे मिलने आए। जब नारद ने ब्यास जी से उनकी उदासी का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि वे भगवान नाम के प्रचार को लेकर ¨चतित हैं। इसका उपाय बताएं, इस पर नारद ने उन्हें भागवत रचना का ज्ञान दिया। ज्ञान प्राप्ति पर व्यास जी ने अठारह हजार श्लोकों से श्रीमद्भागवत की रचना की। उन्होंने कहा अब इसके प्रचार के लिए उन्हें ¨चता सताने लगी। उनकी ¨चता देख भगवान स्वयं सुखदेव के रूप में अवतरित हुए। जिन्हें भागवत का मुख्य पात्र माना गया। सुखदेव जी अपनी मां के गर्भ में 16 वर्षों तक रहे। जन्म से ही इनमें वैराग्य की भावना रही। जो बडा होने पर भगवान की प्राप्ति के लिए जंगल में चले गए। उन्होंने कहा सुखदेव जी को जब भागवत ज्ञान की प्राप्ति हुई तब उन्होंने इसका प्रचार आरंभ किया। उन्हें समाधि न लगे इसलिए ब्यास जी ने पूरी भागवत के श्लोकों में राधा नाम का कहीं भी जिक्र नही किया। उन्होंने कहा कथा का भाव यह है कि भागवत में ही राधा नाम के सभी गुण छिपे हैं। राधा ही भागवत है, भागवत ही राधा है। इसका व्यक्ति जितना भी श्रवण कर ले वह कम है। अंत में उन्होंने भजनों के साथ वहां सभी श्रद्धालुओं को भक्तिमय बनाया।