आसमां से बजी आफत की घंटी, जमीं पर बोलने लगे राम-राम
अमरदीप गुप्ता, यमुनानगर इस बार शहर में बरसे बादलों ने आफत की ऐसी घंटी बजाई कि प्रशास
अमरदीप गुप्ता, यमुनानगर
इस बार शहर में बरसे बादलों ने आफत की ऐसी घंटी बजाई कि प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के साथ लोग भी राम-राम जपने लग गए। शायद यह चेतावनी थी सोए हुए सिस्टम को जगाने के लिए है। एयरकंडीशन कमरों में बैठ अफसरों को शहर का लचर सिस्टम दिखाने की कि अगर खुद न सुधरे तो खुदा से आस मत रखना कि वह किसी को बचाएगा।
पवित्र नदी यमुना के नाम पर बसे यमुनानगर में बीता एक सप्ताह बारिश के नाम रहा। बारिश भी इतनी कि सूबे के एक सबसे बड़े अफसर जो दूसरों को सुरक्षा देने का वादा करते हैं, खुद ही दूसरों के भरोसे हो गए। ऐसे में शहर तो डूबना ही था, जब सीवर सिस्टम ही ठप पड़ा हुआ हो। मानसून सीजन की शुरुआत में ही हुई बारिश से यमुनानगर की गलियां यमुना की तरह लगने लगीं, बस कसर रह गई थी तो सिर्फ किश्ती चलाने की। इन हालातों के बीच जूझते रहे लोग बचाव की गुहार लगाते रहे और घरों में चार से पांच दिन तक कैद रहे। वहीं बुद्धिजीवियों के बीच एक ही चर्चा कि मानसून से पूर्व सफाई कार्यो के लिए आने वाला बजट आखिर कहां खर्च किया गया कि लोग जलभराव से अपने ही घर में खाना खाने तक के लिए मोहताज हो गए। इसका गुस्सा भी प्रशासन को झेलना पड़ा, तिलमिलाए प्रभावित लोगों ने सरकारी खाने को ठुकरा लंगर के भोजन पर ही सहमति जताई।
प्रभावितों का कहना था कि बारिश तो हर बार ही आती थी, लेकिन ऐसी नौबत नहीं आई। इस बार गली-मुहल्ले तो दूर हाईवे तक तरण ताल बन गए। खैर कुछ भी हो हजारों लोगों को जख्म देने वाली यह बारिश कुछ घंटों में कई करोड़ की संपत्ति को कौड़ी कर गई। वहीं इस प्राकृतिक आपदा के अलावा कई क्षेत्रों की बरसाती नदियों में आए उफान ने पांच जाने ले ली, जो लोगों का दिल दहला गई।
लोगों के लिए भी आत्म¨चतन का समय है कि वे कितने जागरूक। आखिर सीवर सिस्टम जाम होने का मुख्य कारण पोलिथिन, कचरा और फेंकी गई बोतले ही तो। अगर इस पर रोक लगा ली तो मानो ऐसी नौबत फिर न देखनी पड़ेगी।