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स्कूल स्तर पर दम तोड़ रहे 'म्हारे क्रिकेटर'

जागरण संवाददाता, सिरसा : हरियाणा के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले म्हारे धुरंधर बेशक गली-मौहल्लों

By Edited By: Published: Sun, 29 Nov 2015 01:01 AM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2015 01:01 AM (IST)
स्कूल स्तर पर दम तोड़ रहे 'म्हारे क्रिकेटर'

जागरण संवाददाता, सिरसा :

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हरियाणा के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले म्हारे धुरंधर बेशक गली-मौहल्लों में क्रिकेट की छोटी पीच पर अपने शॉट दिखा रहे है। मगर सूबे के सरकारी स्कूलों में क्रिकेट के ग्राउंड की सुविधा न होने के कारण उनकी प्रतिभा स्कूल स्तर पर ही दम तोड़ रही है। उनके शुरूआती जोश पर अव्यवस्था की जो पौध फुल रही है उससे वे सचिन और सहवाग के लक्ष्य कदम पर नहीं चल पा रहे है। ग्राउंड की कमी का दंश उनके प्रशिक्षण की राह में बाधा बन रहा है और वे गली-मौहल्लों में ही अपनी प्रतिभा को दफन कर रहे है। ऐसा नहीं है कि शिक्षा विभाग के प्रशिक्षकों को इस बात की जानकारी न हो, फिर भी वे भी इस अनदेखा कर रहे है। चाहे जिला, राज्य, नेशनल एवं रणजी स्तर की प्रतियोगिता हो सभी से पूर्व विभाग के अधिकारियों को ग्राउंड के जुगाड़ के लिए इम्तिहान देना पड़ता है। कई बार तो अधिकारियों को भी निजी ग्राउंड की अनुमति न मिलने के कारण उन्हें इस तरह की प्रतियोगिताएं छोटे ग्राउंड पर इधर-उधर एवं दूसरे शहरों में जाकर करवानी पड़ती है। विभाग चाहकर भी इस कमी को बरसों से पूरा नहीं कर पा रहा है। ऐसे में 'म्हारे क्रिकेटरों' के जुनून को जहां जंग लग रहा है, वहीं सचिन और सहवाग जैसे क्रिकेटर बनने के सपने भी चूर हो रहे है। बता दें कि अंडर 14 आयु वर्ग से ही स्कूल के विद्यार्थी क्रिकेट के पायदान पर फिसल रहे है।

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दूसरे राज्यों में दमखम नहीं दिखा पाते हमारे गबरू

भले ही निजी छोटे ग्राउंड पर जेब ढीली करके प्रशिक्षण पाने वाले स्कूली विद्यार्थी क्रिकेट के लिए पसीना बहाते हो, मगर दूसरे राज्यों के बड़े क्रिकेट मैदान में उनकी प्रतिभा पर विराम लग जाता है और गबरू दमखम नहीं दिखा पाते है। कहीं न कहीं प्रतियोगिता से लौटने के बाद उनका सर भी शर्म से झुक जाता है, क्योंकि वे हरियाणा की झोली में पदक नहीं डाल पाते है। आने के बाद खिलाड़ी केवल और केवल स्कूलों में क्रिकेट के ग्राउंड एवं स्पेशलिस्ट प्रशिक्षक के न होने का उल्लेख करते है।

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जिला स्तर पर हो जाती है जेब खाली

स्कूली खिलाड़ी योगेंद्र, विश्वास एवं रूप की माने तो कई बार शिक्षा विभाग को जिला स्तर पर उन्हें खिलाने के लिए बड़ा ग्राउंड नहीं मिलता है। इस कारण विभागीय अधिकारियों को निजी आयोजकों से एक दिन के लिए किराये पर ग्राउंड लेना पड़ता है। इसके लिए कई बार विभाग द्वारा उनसे शुल्क भ्वसूला जाता है। खेलने से पहले ही उन्हें जेब खाली करनी पड़ती है। राज्य स्तरीय, नेशनल एवं रणजी में इसके लिए उन्हें कुछ नहीं देना पड़ता, क्योंकि विभाग इसके लिए अलग से बजट जारी करता है।

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स्कूलों में नहीं कोई क्रिकेट का मैदान : एईओ

शिक्षा विभाग के खेल अधिकारी यानी एईओ अजीत का कहना है कि स्कूलों में क्रिकेट के लिए कोई मैदान नहीं है। स्कूल स्तर पर क्रिकेट का प्रशिक्षण देने के लिए उन्हें ग्राउंड उधार पर लेना पड़ता है। कई बार तो उन्हें स्टेडियम एवं सरकारी भूमि के ग्राउंड की भी अनुमति नहीं मिलती है। इस कारण प्रशिक्षण देने में बाधा होती है। साथ ही क्रिकेट की राज्य स्तरीय प्रतियोगिता के लिए उन्हें दूसरे रोहतक के स्टेडियम पर आश्रित रहना पड़ता है। यदि यहां भी उन्हें अनुमति नहीं मिलती है तो प्राइवेट शिक्षण संस्थानों के ग्राउंड पर विद्यार्थियों को खिलाने की व्यवस्था की जाती है।


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