सब्जियों की खेती बनी घाटे का सौदा
संजय सिंगला, रानिया ओलावृष्टि ने सब्जी उत्पादक की कमर तोड़ दी है। सब्जियों की फसल को पचास प्रतिशत स
संजय सिंगला, रानिया
ओलावृष्टि ने सब्जी उत्पादक की कमर तोड़ दी है। सब्जियों की फसल को पचास प्रतिशत से भी ज्यादा नुकसान पहुचा है। पिछले वर्षाें के दौरान इन दिनों जो सब्जी मात्र दस रुपये प्रति किलो बिकती आज उसका बाजार भाव अस्सी रुपये किलो है। महगी दरों पर सब्जी बिकने के बावजूद किसान की लागत पूरी नहीं हो रही है।
टमाटर की खेती को लेकर रानिया क्षेत्र उत्तरी भारत में एक विशेष पहचान रखता है। क्षेत्र के दो दर्जन गावों के लगभग एक हजार एकड़ रकबे में टमाटर व अन्य सब्जियों की खेती होती है। टमाटर के पौधे को फल लगना शुरू होते ही दिल्ली, राजस्थान, पंजाब व हरियाणा के बड़े व्यापारी इस क्षेत्र में अपना डेरा डाल लेते हैं। यहा के टमाटर की बीकानेर, अमृतसर, दिल्ली, जालंधर, लुधियाणा व मानसा की सब्जी मंडियों में विशेष माग होती है। टमाटर की खेती से छोटा किसान भी मालामाल हो जाता है। बड़े मुनाफे को देखते हुए ही क्षेत्र के किसानों का झुकाव टमाटर की खेती में दिन प्रति दिन बढ़ रहा है। मगर इस वर्ष कुदरत की मार पड़ने के कारण टमाटर की खेती घाटे का सौदा बन गई है। तीन सप्ताह पहले क्षेत्र में हुई ओलावृष्टि से टमाटर की फसल को 70 प्रतिशत नुकसान पहुचा है। उस समय टमाटर के पौधे पर लगे फूल फल का रूप ले चुके थे। ओलावृष्टि से शत-प्रतिशत फल जमीन पर गिरकर नष्ट हो गया। अब तीन सप्ताह बाद टमाटर के पौधे पर दोबारा फूल लगना शुरू हुआ है। अगर मौसम अनुकूल रहा तो नुकसान की कुछ भरपाई होने की उम्मीद है।
क्षेत्र में भिंडी, करेला, घिया, चप्पन कद्दू, हरी मिर्च व पेठा की फसल भी खूब होती है। इन सब्जियों की फसल पर भी ओलावृष्टि की मार से पचास प्रतिशत नुकसान हुआ है। सब्जियों का उत्पादन कम होने और माग ज्यादा होने के कारण भाव आसमान छू रहे है। भिंडी व करेला बाजार में अस्सी रुपये किलो बिक रहा है। हरी मिर्च पचास रुपये प्रति किलो बिक रही है। ऊंचे रेटों पर सब्जी बिकने के बावजूद किसान की लागत पूरी नहीं हो रही है। सब्जी उत्पादक किसान आर्थिक रूप से पूरी तरह टूट गया है।
सब्जी उत्पादक कर्म सिंह, संता सिंह, मोती सिंह, मेजर सिंह, गुरबचन सिंह, सेवा सिंह, टहल सिंह, दयाल ¨सह, मक्खन सिंह, बख्शीश सिंह ने बताया कि कर्ज के ऐसे दलदल में धस गए है कि उससे बाहर निकलने में अब बर्षों निकल जाएंगें।
थाली से सब्जिया गायब
बढ़े भाव के कारण गरीब क थाली से सब्जी गायब हो चुकी है। अस्सी रुपये प्रति किलो सब्जी खरीदना गरीब ही नहीं मध्यम वर्ग के लिए भी मुश्किल हो गया है। पहले इन दिनों सब्जियों की भरमार होती थी और अधिकतर सब्जिया दस रुपये प्रति किलो के भाव से मिल जाती थीं।
सब्जी उत्पादक की व्यथा
दो एकड़ भूमि ठेके पर लेकर सब्जियों की खेती की थी। खेती पर 35 हजार रुपये बीज, खाद व कीटनाशक दवा पर प्रति एकड़ खर्च हो चुका है और 45 हजार रुपये छह माही ठेका दिया है। अस्सी हजार रुपये प्रति एकड़ लागत भी पूरी होती नहीं दिख रही। पिछले सालों के दौरान यही किसान इसी जमीन से डेढ़ लाख से दो लाख रुपये आमदन लेता रहा है।
-लछमन सिंह,सब्जी उत्पादक।
सब्जी की खेती में मेहनत बहुत करनी पड़ती है। पूरे परिवार को खेत में ही झुग्गी बनाकर रहना पड़ता है। अब कुदरत की इस एक मार ने ही और धधा अपनाने के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है।
-पूर्ण सिंह,किसान।
ओलावृष्टि से पहले खेत में लहराती सब्जी की फसल को देख परिवार ने ढेरों अरमान पाल लिए थे। मगर दस मिनट की ओलावृष्टि ने सारे अरमानों पर पानी फेर दिया है। सब्जी ऊंचे भावों पर बिकने के बावजूद घाटा वहन करना पड़ेगा।
-जसवीर सिंह,किसान।
सब्जी उत्पादक को चौतरफा मार पड़ रही है। उन्होंने कहा कि छह माह पहले कर्ज लेकर बेटी की शादी की थी। मगर कुदरत के एक ही झटके से सब तबाह हो गया। फसल की लागत और परिवार के पालन पोषण का कर्ज अब और चढ़ गया है।
-मंगल सिंह, किसान।
सब्जियों के कम उत्पादन के कारण अच्छे भाव मिलने की उम्मीद थी। मगर ऊंचे भावों का लाभ भी व्यापारी को ही मिल रहा है। आर्थिक तंगी के चलते किसान मंडी में व्यापारी के मनचाहे भाव पर सब्जी बेचने को मजबूर है। मंडी में जो सब्जी चालीस रुपये प्रति किलो बिक रही है बाजार में उसका भाव अस्सी रुपये प्रति किलो है।
-श्रवण सिंह,छोटे किसान।