नौनिहालों की कहानी, सिर पर धूप व हाथों में जूठे बर्तन-पानी
भूपेंद्र पंवार, सिरसा
चत्तगरगढ़पट्टी के राजकीय मिडिल स्कूल को अपग्रेड कर सीनियर सेकेंडरी का दर्जा तो दे दिया लेकिन अभी तक यहा न तो पर्याप्त स्टाफ है और न ही अन्य सुविधाएं। पहले से कमरों की कमी झेल रहे विद्यालय में अब 9वीं से 12वीं कक्षा के भी दाखिले के आदेश आ चुके है। ऐसे में अब बच्चों की कक्षाएं कड़ी धूप में लगानी पड़ रही है। इसके अलावा मिड-डे मील के जूठे बर्तन भी बच्चों से ही धुलवाए जा रहे है।
नए शैक्षणिक सत्र से चत्तरगढ़पट्टी के स्कूल को अपग्रेड कर 9वीं से 12वीं कक्षा तक के भी दाखिले किए जाने के आदेश मिले है। इसलिए अब स्कूल में 9वीं और 10वीं कक्षा में दाखिला प्रक्रिया शुरू हो गई है। लेकिन यहा न तो पर्याप्त स्टाफ भेजा गया और न ही अन्य बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई गई है। बताया जा रहा है कि परिसर में प्राइमरी और मिडिल विंग चल रही है। प्राइमरी के लिए हालाकि अलग भवन है लेकिन छठी से आठवीं कक्षा के लिए पहले ही कमरों की कमी है। ऐसे में अब इसी स्कूल में 9वीं से 12वीं के भी दाखिले शुरू करने और कक्षाएं लगाने की बात कही गई है। लेकिन ऐसे में अब यहा समस्या खड़ी हो गई है।
बताया जा रहा है कि स्कूल में छठी से आठवीं तक करीब साढ़े चार सौ बच्चे शिक्षा हासिल कर रहे है लेकिन कमरे केवल पाच है। इनमें से एक कमरे में ऑफिस, एक में साइंस रूम और एक को एजूसेट रूम बनाया गया है। ऐसे में कक्षा लगाने के लिए केवल दो कमरे शेष बचे है। इतना ही नहीं अब 9वीं कक्षा में भी 45 और दसवीं कक्षा में पाच बच्चों का दाखिला हो चुका है। छठी से आठवीं कक्षा के लिए हालाकि यहा 10 टीचर का प्रावधान है लेकिन 8 टीचर ही नियुक्त है।
मिड-डे मील कर्मचारियों की नियुक्ति बावजूद है यह हालात
स्कूल में हालाकि मिड-डे मील का खाना बच्चों को मिलता है। लेकिन खाना खाने के बाद बच्चों को स्वयं ही बर्तन धोने पड़ते है। यहा मिड-डे मील कर्मचारियों की नियुक्ति भी है लेकिन इसके बावजूद बच्चों से ही बर्तन धुलवाए जाते है। टीचरों के सामने ही बच्चे बर्तन धोते है लेकिन उन्हे रोकने वाला कोई नहीं होता।
'मुझे पता है कि स्कूल में कमरों और स्टाफ की बेहद कमी है। यहा न तो पर्याप्त कमरे और न ही आधारभूत सुविधाएं। इस बारे में विभाग को पत्र लिखा जा चुका है। अब सरकार की ओर से आदेश आया है कि इस स्कूल को अपग्रेड कर दिया गया है और दाखिला प्रक्रिया शुरू करे। ऐसे में हम क्या कर सकते है। सरकार के आदेश है तो मानने ही पड़ेंगे।'
- कुमकुम ग्रोवर, जिला शिक्षा अधिकारी