स्वयं के भीतर आंकने की कला आवश्यक : डॉ. मारकंडे
जागरण संवाददाता, रोहतक : भारतीय संत परंपरा में नाथ संप्रदाय के योगियों का अपना विशेष स्थान है। व्यक्
जागरण संवाददाता, रोहतक : भारतीय संत परंपरा में नाथ संप्रदाय के योगियों का अपना विशेष स्थान है। व्यक्ति स्वयं के मर्म को इनके द्वारा बताए गए मार्ग पर चलकर आसानी से पा सकता है। साबरी विद्या को जनमानस तक उपयुक्त रूप में मानस पटल पर लाने का श्रेय इसी संप्रदाय के योगियों को जाता है। ये कहना है बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय कुलपति डॉ. मारकंडे का। वे मंगलवार को विश्वविद्यालय में नवनाथ परंपरा और नाथ संप्रदाय के अग्रणी योगी चरपटी नाथ पर अपने विचार रख रहे थे। उन्होंने कहा कि आज जनमानस इन योगियों को मात्र एक सिद्ध पुरुष के रूप में देखता है जबकि आज का विज्ञान अपने धरातल पर उनके अध्यात्म की तुलना करता है। साबरी मंत्रों के साथ-साथ चरपटी नाथ को एक पारंगत और विज्ञान खगोल शास्त्री भी मानना आवश्यक है। अमेरिकी अनुसंधान संस्थान नासा आज अनेक ऐसी सृष्टियों के होने की सार्थकता प्रमाणित कर चुका है जिसके बारे में चरपटी नाथ ने अपने समय में बता दिया था। आज भी पश्चिमी विज्ञान हमारे इन मनीषियों पर गहन अध्ययन कर रहा है। गुरु गोरखनाथ, मछेंद्रनाथ, चरपटी नाथ जैसे महान योगियों द्वारा संकलित साबरी मंत्रों की विश्वसनीयता पर आज पश्चिमी देश रिसर्च कर रहे हैं। इन योगियों ने मानवता को सन्देश दिया कि मध्यम मार्ग उत्तम मार्ग है।
हमें स्वयं के मर्म को जानना होगा। स्वयं के भीतर झांकने की कला को इन योगियों ने प्रकाशवान बनाया। हमें इन मनीषियों के ज्ञान मार्ग का सम्मान करते हुए पूर्णरूपेण स्वयं को जानने की कोशिश करनी होगी। आज के संदर्भ में जब आपसी भाइचारा, अक्रांताओं द्वारा समय-समय पर खंडित हो रहा है तब इन योगियों की शिक्षा हमें उत्तम मार्ग दे सकती है। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सभी शिक्षकगण उपस्थित थे।