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दादी के हाथ का चूरमा खाना भाता है रणदीप को

जागरण संवाददाता, रोहतक : फिल्म अभिनेता रणदीप हुड्डा बचपन में बेहद शरारती थे। ट्यूशन पढ़ने से बचने के

By Edited By: Published: Sat, 30 Apr 2016 01:47 AM (IST)Updated: Sat, 30 Apr 2016 01:47 AM (IST)
दादी के हाथ का चूरमा खाना भाता है रणदीप को

जागरण संवाददाता, रोहतक : फिल्म अभिनेता रणदीप हुड्डा बचपन में बेहद शरारती थे। ट्यूशन पढ़ने से बचने के लिए घर में लगे खिड़कियों के पर्दे के पीछे छिप जाना और स्कूल से बस में बैठकर अपने गांव जसिया में अकेले ही पहुंचना भी उनकी शरारत में शामिल रहा। जबकि घर वाले अपने लाडले को तलाशने में जुटे रहते। कई दफा इसी बात को लेकर रणदीप ने अपने पापा डा. रनबीर ¨सह की भी डांट खानी पड़ी। हालांकि हर बार रणदीप अपनी दादी नंदो देवी के हाथ का चूरमा खाने के लिए गांव तक छुपकर जाने की बात कहकर बच जाते। दादी के हाथ का चूरमा खाने का सिलसिला तो अभी भी रणदीप का बरकरार है। मौका पाते ही अपनी फेवरेट डिश यानि चूरमा को दादी के हाथों से खाने के लिए गांव दौड़े चले जाते हैं।

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फरीदाबाद से रोहतक पहुंची फिल्म अभिनेता रणदीप की मां आशा ने जागरण को रणदीप के बचपन की शरारतों से लेकर एक फिल्म अभिनेता बनने तक किए संघर्ष को बयां किया। खाने के शौकीन के अलावा रणदीप अच्छे घुड़सवार भी हैं। फिलहाल फिल्म अभिनेता सलमान खान के साथ सुल्तान फिल्म की शू¨टग में रणदीप व्यस्त हैं। यहां बता दें कि हाल ही में महाराष्ट्र सरकार की तरफ से फायर ब्रिगेड के ब्रांड एंबेसडर भी बनाया गया है। हरियाणा के ब्लड माफिया की पृष्टभूमि पर बनी फिल्म लाल रंग रिलीज हो चुकी है। जबकि 20 मई को सबरजीत की बायोपिक रिलीज होने वाली है। जागरण संवाददाता से पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस में वार्ता करते हुए मां आशा ने कहा कि सबरजीत फिल्म का प्रमोशन रोहतक में ही होगा।

नसीरूद्दीन शाह नहीं मौका देते तो बेटे को मिलता देरी से चांस

यूं तो दसवीं से ही कलाकार बनने के लिए नाटक मंचन से जुड़ गए। मां आशा का कहना है कि 1998 में फिल्म अभिनेता नसीरूद्दीन शाह के थियेटर से जुड़े। यहां कई साल तक नसीरूद्दीन के साथ थियेटर किया तो उन्होंने रणदीप की प्रतिभा को पहचाना। आशा का तो यह भी कहना है कि यही वजह है कि बेटा रणदीप नसीरूद्दीन को अपना गुरु मानता है। यह भी कहती हैं कि यदि नसीरूद्दीन शाह थियेटर में मौका नहीं देते तो बेटे को फिल्मों में देरी से चांस मिलता।

दसवीं से चढ़ा था कलाकार बनने का शौक

मां आशा का मानना है कि हमारी तो मुंबई में कोई पहचान नहीं थी। दसवीं क्लास से कलाकार बनने का शौक चढ़ा। आठवीं तक रोहतक से पढ़ाई की तो दसवीं राई स्थित मोतीलाल नेहरू स्कूल ऑफ स्पो‌र्ट्स से किया। यहां नाटक का निर्देशन करने के साथ ही अभिनय भी किया। फिर दिल्ली से 12वीं करने के बाद बीबीए करने आस्ट्रेलिया चले गए। यहां से लौटने के बाद फिल्मों का रूख किया।

फ्रिज से निकालकर कच्चा दूध पीने की थी आदत

रणदीप को चूरमे के अलावा खाने के साथ मक्खन और दूध पीना सबसे अधिक पसंद है। अपने बेटे की पसंद के बारे में बताते हुए मां आशा कहती हैं कि दूध का तो इतना शौक था कि खाना भी नहीं खाता था। कई दफा तो ऐसा होता कि फ्रिज में रखा दूध चाहे कच्चा हो या फिर ठंडा, उसे इससे मतलब नहीं होता था। एक साथ दो से ढाई लीटर तक दूध फ्रिज से निकालकर पी जाता।

मां को बड़ी बहू चाहिए, बेटा अभी तैयार नहीं

रणदीप की मां आशा कहती हैं कि मेरी पहली दिली तमन्ना थी कि बेटा बड़ा अभिनेता बने, यह सपना पूरा हो गया। जबकि दूसरी हसरत यह पाले हुए हैं कि इनका बेटा जल्द ही शादी कर ले, जिससे घर में बड़ी बहू आ सके। यहां बता दें कि रणदीप के छोटे भाई संदीप ¨सगापुर में इंजीनियर हैं, इनकी शादी हो चुकी है। इसलिए मां चाहती हैं कि बड़ी बहू भी घर में आ जाए। हालांकि मां आशा कहती हैं कि शादी के लिए हमारा कोई प्रेशर नहीं, बल्कि यह रणदीप का व्यक्तिगत फैसला है।


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