लाश फाड़ने से लेकर सिलने तक की कीमत एक रुपया
सर्वेंद्र पुंडीर, रोहतक लाश का नाम सुनते ही जहां हर किसी की रूह कांप जाती है, वहीं पीजीआइ के मॉर्
सर्वेंद्र पुंडीर, रोहतक
लाश का नाम सुनते ही जहां हर किसी की रूह कांप जाती है, वहीं पीजीआइ के मॉर्चरी विभाग के कर्मचारी ऐसे हैं जो लाश की चीर-फाड़ करने के बाद दोबारा सिलते हैं। हैरानी की बात ये है कि इस मुश्किल कार्य करने के एवज में मेहनताना प्रति लाश एक रुपये मिलता है। हालांकि इन कर्मचारियों को वेतन अलग से मिलता है। कर्मचारियों की एक रुपये रकम को बढ़ाकर सौ रुपये कर दिया था, लेकिन अभी तक बढ़ीर् रकम कर्मचारियों को नहीं मिल रही। अब कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री को फैक्स भेजकर यह रकम दिलाने की मांग की है।
पीजीआइएमएस की मॉर्चरी में वर्तमान में नौ कर्मचारी हैं। जिसमें सबसे वरिष्ठ गजे¨सह है। इसके अलावा मॉर्चरी में सीनियर टेक्निशियन, एलटी जोगेंद्र गहलोत, बिजेंद्र, बिजेंद्र गोयल आदि लोग भी काम करते हैं। गजे¨सह ने बताया कि उनका काम लाश को नहलाने से लेकर फाड़ने और फिर सिलने का होता है। उसके बाद वह लाश को उनके परिजनों को सौंपते है। इस काम के लिए उन्हें सरकार की तरफ से वेतन से अलग एक रूपया प्रति लाश दिया जाता है। उन्होंने बताया कि पांच माह पूर्व सरकार से प्रदेश के सभी मॉर्चरी कर्मचारियों ने रुपये बढ़ाने की मांग की थी। जिसके बाद सरकार ने प्रत्येक लाश पर सौ रुपये देने का एलान किया था। कर्मचारियों का कहना है कि सरकार की तरफ से सभी सिविल अस्पतालों के सीएमओ को इसका सरकूलर भी भेज दिया गया था। इसके बावजूद उन्हें अभी तक भी बढ़े हुए रुपये नहीं मिले है। अब उन्होंने इस संबंध में प्रदेश के मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखकर अवगत कराया है, ताकि उन्हें बढ़े हुए रूपये जल्द से जल्द मिलने शुरू हो जाए।
शरीर से आने लगती है बदबू
गजे¨सह का कहना है कि वह सुबह से शाम तक प्रतिदिन तीन से चार लाशों का पोस्टमार्टम कर देते हैं। कभी कभी यह संख्या बढ़कर 15 तक भी पहुंच जाती है। स्टाफ कम होने के कारण उनकी हालत खराब हो जाती है। जिस दिन गली सड़ी लाश आ जाती है उस दिन उनके पूरे शरीर में बदबू हो जाती है। वह लाशों के साथ सबसे अधिक मेहनत करते हैं। बावजूद इसके उनके साथ ऐसा हो रहा है।
बिसरा भी सुरक्षित रखना होता है
गजे¨सह ने बताया कि डॉक्टर जिस लाश का बिसरा सुरक्षित रखने के लिए बोलते हैं तो वहीं बिसरा लाश के अंदर से उठाते हैं और उसे सुरक्षित भी वहीं रखते है। बिसरा जब तक लेबोरेट्री में जांच के लिए नहीं जाता, तब तक उन्हें ही बिसरा की सुरक्षा करनी पड़ती है। यह भी ध्यान रखना पड़ता है कि बिसरा बदल तो नहीं गया। क्योंकि बिसरा की संख्या अधिक होने के कारण कभी कभी बदलने का भी डर रहता है।