ठेकेदार पैसे को तरसे, जनता विकास को
जागरण संवाददाता, रोहतक : पूरे शहर में आम जनता को विकास को तरस रही है तो विकास कार्य कराने वाले ठेकेदार पैसे को तरस गए हैं। एक अनुमान के मुताबिक निगम में ठेकेदारों के करीब 10 करोड़ रुपये की राशि अटकी हुई है। अधिकारियों की लेट-लतीफी ठेकेदारों पर तो भारी पड़ ही रही है साथ में इसका खामियाजा आम जनता को भी भुगतना पड़ रहा है। समय पर पेमेंट न होने की वजह से ठेकेदार विकास कार्य की रफ्तार धीमी कर दे रहे हैं। यहीं वजह है कि शहर के विकास कार्य समय पर नहीं हो पा रहे हैं। करोड़ों रुपये की यह राशि एक-दो माह की नहीं तीन-चार साल तक पुरानी भी है, जिसका भुगतान अधिकारियों की कार्यशैली की वजह से नहीं हो पा रहा है। पेमेंट का भुगतान कराने के लिए अधिकारियों के चक्कर काटकर थक चुके हैं। ठेकेदारों में अधिकारियों के प्रति रोष तो है लेकिन वे खुलकर भी इसका विरोध नहीं जता रहे हैं।
न समय पर मॉनिटरिंग, न समय पर बन रही फाइल
निगम में ठेकेदारों की ओर से जो भी विकास कार्य कराए जाते हैं उनकी अधिकारियों की ओर से एक बार भी समय पर मॉनिटरिंग नहीं की जाती है। मानीटरिंग लेट होने की वजह से पेमेंट की फाइल भी समय पर नहीं बन पाती है। इसकी रिपोर्ट बनाने में भी अधिकारी एक से दो माह तक लगा देते हैं और ठेकेदार अधिकारियों के चक्कर काटते रहते हैं।
लंबी प्रक्रिया फूला रही ठेकेदारों के सांस
विकास कार्याें की पेमेंट की लंबी प्रक्रिया भुगतान में सबसे बड़ा रोड़ा बनी हुई है। जेई के बिल बनाने तक, एमई, एक्सइएन, एसई, एसएओ, एसओ, एओ, ज्वाइंट कमिश्नर समेत संबंधित अधिकारियों के पास चैक बनने तक दो से तीन बार फाइल घूमती रहती है। वैसे तो यह प्रक्रिया एक सप्ताह से लेकर दो सप्ताह के अंदर-अंदर हो जानी चाहिए लेकिन कई बार इस प्रक्रिया में एक साल ही नहीं बल्कि निगम में लंबित कई पेमेंट को तो चार-चार साल लग गए और अब भी यह पेमेंट अटकी ही हुई है।
क्लर्को व जेई की कमी भी बनी बाधा
लंबी प्रक्रिया के बाद ठेकेदारों की पेमेंट अटकने का दूसरा सबसे बड़ा कारण निगम में कर्मचारियों व जेई की भारी कमी होना भी है। निगम की तकनीकी शाखा में जहां आठ से 10 क्लर्काें की जरूरत है वहीं यहां पर सिर्फ एक ही क्लर्क के सहारे पूरी तकनीकी शाखा चल रही है। वहीं जेई करीब 20 होने चाहिए लेकिन यहां पर मात्र पांच-छह जेई ही काम कर रहे हैं। इन दोनों कर्मचारियों की वजह से ठेकेदारों के बिल बनाने में भी देरी हो जाती है।
अधिकारी रहते हैं- मीटिंग में व्यस्त
निगम की तकनीकी शाखा व विकास कार्याें की मॉनिटरिंग और बिलों का भुगतान करने वाले संबंधित अधिकारी अधिकांश समय उच्च अधिकारियों व विधायक की मीटिंग में ही व्यस्त रहते हैं। ठेकेदार जब भी निगम कार्यालय में अपने बिल बनवाने व उनकी पेमेंट के संबंध में अधिकारियों से संपर्क करते हैं तभी पता चलता है संबंधित अधिकारी मीटिंग में गए हुए हैं। ठेकेदारों की समय पर पेमेंट न होने में यह भी एक बहुत बड़ा कारण है।
वर्ष 2009-10 के भी एक करोड़ अटके
वर्ष 2009-10 में नगर निगम पहले नगर परिषद थी। फिलहाल शहरी में विकास कार्य कराने वाले ठेकेदार उस समय भी कार्य करते थे। नगर परिषद के समय की विभिन्न विकास कार्याें की करीब एक करोड़ रुपये की पेमेंट अब भी निगम में अटकी पड़ी है। इसके अलावा प्रगति पर चल रहे विकास कार्याें की भी करीब 10 करोड़ रुपये की राशि का अब तक भुगतान नहीं हुआ है।
कार्य लेट होने पर ठेकेदारों को जुर्माना, कर्मचारियों पर कुछ नहीं
निगम में कार्य करने वाले ठेकेदारों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अगर ठेकेदारों की ओर से विकास कार्य में देरी की जाती है तो उन पर निगम की ओर से भारी -भरकम जुर्माना लगा दिया जाता है, वहीं दूसरी तरफ अधिकारियों की ओर से उनकी पेमेंट में लेट-लतीफी करने पर किसी भी तरह के जुर्माने का प्रावधान नहीं है।
जल्द पेमेंट के कार्यकारी अभियंता को दिए हैं निर्देश : गोयल
इस बारे में नगर निगम के एसई एके गोयल का कहना है कि स्टाफ की कमी की वजह से पेमेंट होने में देरी होती है। फिर भी उन्होंने कार्यकारी अभियंता को ठेकेदारों की पेमेंट जल्द से जल्द कराने के निर्देश दिए हैं। ठेकेदारों को कोई परेशानी नहीं होने दी जाएगी।