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लीड:  रैन बसेरे को बना दिया मयखाना

रात का रिर्पोटर का लोगो फोटो संख्या: 4, 5, 6 व 7 सबहेड- बस स्टैंड स्थित रैन बसेरे में मिलीं शरा

By Edited By: Published: Mon, 22 Dec 2014 01:05 AM (IST)Updated: Mon, 22 Dec 2014 01:05 AM (IST)
लीड:  रैन बसेरे को बना दिया मयखाना

रात का रिर्पोटर का लोगो

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फोटो संख्या: 4, 5, 6 व 7

सबहेड- बस स्टैंड स्थित रैन बसेरे में मिलीं शराब की बोतलें

-रेडक्रास भवन के रैन बसेरे तक पहुंचना ही असंभव, मुख्य भवन पर ही लटका रहता है ताला

ज्ञान प्रसाद, रेवाड़ी: जाड़े की दांत किटकिटाती ठंड। समय रात के करीब साढ़े 9 बजे। शुक्रवार रात ठिठुरन के बीच मैं अपने साथी ललित मोहन के साथ पहुंचा हूं यहां के गढ़ी बोलनी रोड पर स्थित रेडक्रास भवन के रैन बसेरे में रह रहे लोगों का हालचाल जानने के लिए। घर से निकलते वक्त मेरे मन में ये जिज्ञासा थी कि आखिर इस हाड़ कंपाने वाली सर्दी में कैसे लोग रैन बसेरे में रात बिता रहे हैं। रेडक्रास व जिला प्रशासन ने सरकार की ओर से उनके लिए क्या सुविधाएं कर रखी हैं, लेकिन ये क्या..? मैं चौंका। क्योंकि यहां तो रेडक्रास भवन पर ही ताला लगा है और रैन बसेरा परिसर के अंदर है।

बाहर लगा रैन बसेरे का साइन बोर्ड हमारा मुंह चिढ़ा रहा था। अचानक मेरे मन में ख्याल कौंधा। मुझे ध्यान आया कि कुछ दिन पहले बस स्टैंड पर रेडक्रास सोसायटी ने दूसरा रैन बसेरा भी शुरू कर दिया है। मुझे लगा सर्दी में अधिकांश जरूरतमंद वहीं पर आराम फरमा रहे होंगे। मैने कुछ ही दूर स्थित बस स्टैंड की ओर अपनी मोटरसाइकिल बढ़ा दी, लेकिन वहां पहुंचकर जो देखा, उससे ऐसा लगा जैसे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के नाम पर ठिठुरते लोगों के साथ मजाक हो रहा है। मैने तथा मेरे साथी ललित मोहन ने अंदर झांककर देखा तो हम हैरत में पड़ गये। यहां शराब की खाली बोतलें मानो ये कह रही थीं कि जनाब, ये रैन बसेरा नहीं मयखाना है।

रैन बसेरों का सच यही है। बस स्टैंड स्थित रैन बसेरे में जहां बिस्तरों की जगह शराब की खाली बोतलें रखी हुई हैं, वहीं ताला लगा होने के कारण यहां के अंबेडकर चौक पर स्थित रेडक्रास भवन के रैन बसेरे तक पहुंचना किसी के लिए भी असंभव है। मुख्य भवन पर रात के समय ताला ही लटका रहता है। रेडक्रास भवन तथा बस स्टैंड पर बने रैन बसेरे बस नाम के हैं। यहां पर लगे साइन बोर्ड केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पेट भर रहे हैं, जरूरतमंद की मदद नहीं।

देश की सर्वोच्च अदालत को कड़ाके की सर्दी में रात बिताने वालों पर बेशक रहम आ गया हो, परंतु सड़कों पर रात गुजारने वालों को यहां पर लाकर सुलाने की जहमत उठाने के लिए अफसरशाही तैयार नहीं है।

रेडक्रास के रैन बसेरे में हम सवा दस बजे तक रुके। इस उम्मीद में कि शायद कोई रात के समय कुछ देर के लिए कहीं पर चला गया हो, लेकिन सन्नाटे को चीरती शीतलहर में मेरी उम्मीद सवा दस बजे तक भी पूरी नहीं हुई। मुझे रविवार तड़के रेलवे स्टेशन परिसर में ठंड से ठिठुरते लोग आसरा ढूंढते मिले, लेकिन उन्हें रैन बसेरे के बारे में कोई समझ नहीं थी।

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सिर्फ एक बेंच और बन गया रैन बसेरा

बस स्टैंड परिसर में बनाये गये रैन बसेरे में सिर्फ एक छोटी सी बेंच पड़ी हुई है। मेरे यहां पहुंचने पर इस छोटे से कमरे में शराब व पानी की बोतल, प्लास्टिक के गिलास व पानी का जग रखा हुआ था। ये साबित कर रहे थे कि कुछ देर पहले तक यहां संभवतया जाम टकरा रहे होंगे।

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ताला तभी लगाया जाता है, जब कोई रुकने के लिए यहां नहीं आता। परंतु इन दिनों काफी संख्या में लोग यहां पर रुक रहे हैं। बस स्टैंड पर रेडक्रास सोसायटी ने बिस्तरों की व्यवस्था की थी, लेकिन रुकने वाले उन्हें ही उठाकर ले गये। हम फिर से वहां पर व्यवस्था करेंगे। हमने बस स्टैंड के पास रेडक्रास भवन में पूरा इंतजाम किया हुआ है। शनिवार की रात भी कई लोग रुके हुए थे। ये संभव है कुछ देर के लिए यहां पर कार्यरत कर्मचारी कहीं पर चला गया हो। लेकिन जरूरतमंद की मदद के लिए हर संभव उपाय किये जा रहे हैं। यहां पर 50 से अधिक कंबल व रजाईयां है।

-महेश गुप्ता, सचिव, रेडक्रास सोसायटी, रेवाड़ी।


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