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शिक्षा की अलख जगाने वाला गाव लड़ रहा है अस्तित्व की लड़ाई

-मूलभूत सुविधाओं के लिए अधिकारियों से गुहार लगा चुके हैं ग्रामीण -सबसे पुराना शिक्षण स्थान का गौरव

By Edited By: Published: Fri, 19 Dec 2014 05:01 PM (IST)Updated: Fri, 19 Dec 2014 05:01 PM (IST)
शिक्षा की अलख जगाने वाला गाव लड़ रहा है अस्तित्व की लड़ाई

-मूलभूत सुविधाओं के लिए अधिकारियों से गुहार लगा चुके हैं ग्रामीण

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-सबसे पुराना शिक्षण स्थान का गौरव भी गोकलपुर को हासिल है

सुभाष दूरदर्शी, मंडी अटेली : जिला महेंद्रगढ़ में गोकलपुर गाव ऐसा है जहा हमारे बुजुगरें ने पीपल के नीचे बैठकर शिक्षा अर्जित कर प्रदेश में जिला का नाम रोशन किया है। क्षेत्र का सबसे पुराना शिक्षण स्थान का गौरव भी गोकलपुर को हासिल है। राष्ट्रपिता महात्मा गाधी के सहयोगी समाजसेवी स्वर्गीय बनवारीलाल माथुर गोकलुपर में पीपल के पेड़ के नीचे हमारे बुजुर्गो को शिक्षा दिया करते थे। धीरे-धीरे उन्होंने यहा एक निजी स्कूल खोला जो महात्मा गाधी मेमोरियल के नाम से जाना जाता था। स्कूल के माध्यम से उन्होने शिक्षा का बढ़ावा देकर क्षेत्र को आगे बढ़ाने का काम किया। इतना ही नही इस महान देश भक्त ने अपनी 8 एकड़ जमीन भवन सहित सरकार को सौंप कर राजकीय विद्यालय स्कूल की नींव रखवाई। यह ऐसा गाव है जिसमें आजादी के समय भी वे सुख सुविधाएं थी जो आज भी बहुत से कम गावों में देखने को मिलती है। आज यही गाव प्रदेश के मानचित्र में रहने के लिए अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। कभी मानचित्र से यह गाव गायब न हो जाए इससे प्रबुद्ध लोग भी चिंतित है। आजादी के समय से ही इस गाव में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध है। गाव में डाकखाना, सामुदायिक अस्पताल, जल घर केन्द्र, सार्वजनिक टेलीफोन सेवा केन्द्र, ट्यूबवेल, पानी की टकी, पूजा के लिए मंदिर, सड़क, लाइट का यथोचित प्रबंध है। आजादी के समय 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गाधी के सहयोगी बनवारीलाल माथूर ने तत्कालीन रेलवे मंत्री लाल बहादुर शास्त्री से स्कूल का उदघाटन करवा कर अपना निजी स्कूल को सरकार के हवाले कर दिया। सरकार के हवाले करने के बाद भी वह जीवन पर्यन्त इसकी शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने में लगे रहे। इस स्कूल ने बोर्ड में टाप विद्यार्थी निकले जो आज बड़े पदों पर आसीन है। अपने खून पसीने से सींच कर तैयार किया गया स्कूल सरकार को सौंपने के बाद समाजसेवी बनवारीलाल माथुर कुछ समय बाद स्वर्ग सिधार गए। उनके मृत्यु के बाद कुछ अध्यापकों के आचरण के चलते विद्यार्थियों का इस स्कूल से मोह भंग होना शुरू हो गया। आज स्कूल भी अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है। इस स्कूल से पढ़कर बने हजारों शिक्षकों को गोकलपुर के मानचित्र से गायब होने की चिंता सता रही है। अगर ऐसे ही चलता रहा तो आने वाली पीढ़ी को क्षेत्र में शिक्षा की अलख जगाने वाला गाव का नाम सुनने को नही मिलेगा। अब भी गाव में जल सेवा प्रदान करने वाले जन स्वास्थ्य कर्मचारी गाव में सप्लाई देता है लेकिन गाव में पानी पीने वाला कोई नही है। ऐसे में जल केंद्र का पानी नजदीकी ढाणी में रहने वाले व गावों में रहने वाले लोग ही उठा रहे है। उस समय बना डाकघर भी अब नाम का ही रह गया । पशु अस्पताल गाव सलीमपुर में स्थापित कर दिया।


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