एडवांस: शिक्षा में समानता देना बड़ी चुनौती
म्हारा हरियाणा-48 वर्ष :: -आज भी कागजों में ही चल रहा है शिक्षा का अधिकार कानून और अनुच्छेद 134ए
म्हारा हरियाणा-48 वर्ष ::
-आज भी कागजों में ही चल रहा है शिक्षा का अधिकार कानून और अनुच्छेद 134ए
-निजी स्कूलों में आज भी महंगा है आम बच्चों को पढ़ना
ज्ञान प्रसाद, रेवाड़ी :
नई सरकार के समक्ष शिक्षा में समानता देना बड़ी चुनौती का काम रहेगा। सरकार शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 और अनुच्छेद 134ए को अभी तक प्रभावी नहीं बना सकी है।
नहीं है अधिकारियों और निजी स्कूलों के बीच तालमेल
गरीबों के बच्चों को निजी स्कूलों में मुफ्त पढ़ाने के लिए निर्धारित की गई सीटों को प्रभावी नहीं बना सकी है। नई सरकार के समक्ष इसे प्रभावी बनाने के लिए निजी स्कूल संचालकों और शिक्षा विभाग के अधिकारियों के बीच तालमेल बनाने के लिए नए सिरे से पहल करनी होगी।
कानून दो, पालन एक का भी नहीं
अभी तक प्रदेश में शिक्षा का अधिकार कानून को प्रभावी नहीं बना सकी है। निजी स्कूलों में गरीब परिवार के बच्चे को पढ़ाना आज भी काफी महंगा साबित हो रहा है। सरकारी स्कूलों में भी शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत छात्र और अध्यापक अनुपात को व्यावहारिक नहीं बनाया जा सका है।
नहीं है स्कूलों में सुविधाएं
सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी और पर्याप्त संसाधनों का अभाव आज भी बरकरार है। शिक्षा का अधिकार कानून के अनुसार किसी भी कक्षा में 30 से अधिक छात्र होने पर अलग सेक्शन बनाने का नियम है लेकिन प्राथमिक स्कूलों में एक ही शिक्षक पहली से पाचवीं कक्षा तक को पढ़ा रहे हैं। अपर प्राइमरी में भी शिक्षक और छात्र अनुपात में काफी असमानताएं हैं। निजी स्कूलों में तो आरटीइ लागू ही नहीं हैं। इसके पीछे विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि प्रदेश में शिक्षा का अधिकार निजी स्कूलों पर लागू करने की आवश्यकता ही नहीं है। उनका मानना है कि किसी भी गांव या शहर से छात्र का घर से स्कूल तक एक किलोमीटर के दायरे में सरकारी स्कूल नहीं होने की स्थिति में नजदीकी निजी स्कूल में मुफ्त पढ़ाने का प्रावधान है। अधिकारियों का मानना है कि जिले में प्रत्येक एक किलोमीटर की दूरी पर सरकारी स्कूल मौजूद है।
134ए का नहीं हो पाया पालन
अनुच्छेद 134ए के तहत निजी स्कूलों में गरीब और मेधावी बच्चों के लिए दस फीसद सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। इसके लिए कई बार फेरबदल होता रहा। पिछले सत्र में कभी अभिभावकों से इनकम सर्टिफिकेट मंगाए गए तो कभी सरपंच की पुष्टि के आधार पर गिने चुने बच्चों को दाखिला दिय गया। इसमें भी स्कूल संचालकों पर भेदभाव और अपने चहेतों के बच्चों को लाभ देने का आरोप लगता रहा।
इस बार हुई प्रवेश परीक्षा
वर्तमान सत्र में मेधावी बच्चों का चयन करने के नाम पर प्रवेश परीक्षा आयोजित की गई। इसमें पहली से पाचवीं तक अलग अलग चरणों में तो छठी से ग्यारहवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए अलग से परीक्षा आयोजित की गई। आनलाइन आवेदन करने का प्रावधान रखे जाने के बाद सैकड़ों ने आवेदन तो किया लेकिन सभी को प्रवेश परीक्षा में बैठने का अवसर नहीं मिला। किसी को एडमिट कार्ड नहीं मिले तो किसी के नाम ही प्रवेश पत्र की सूची से गायब थे। जिन खुशनसीब का परिणाम आया उनमें से भी कईयों को अपनी पसंद के स्कूलों में प्रवेश नहीं मिल पाया। आज भी अभिभावक और स्कूल संचालकों के बीच खींचतान की स्थिति बरकरार है। इसमें सुधार करने के साथ निजी स्कूल और शिक्षा विभाग के बीच तालमेल बैठाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे ताकि निजी स्कूलों में गरीब और जरूरतमंद अभिभावकों के बच्चों को सस्ती और सुलभ शिक्षा मिल सके।