धार्मिक के साथ शिक्षाप्रद नाटकों से जगाते थे अलख
तर्पण::
फोटो संख्या: 24
मेरे दादाजी स्व. बुधराम शर्मा जी ने अपना सारा जीवन सामाजिक, धार्मिक सेवा और लोगों की भलाई में बिताया। उनका निधन 13 जनवरी, 1999 को हुआ था। उनकी आज भी गांव और शहर में रामायण पाठ, रामलीला मंचन तथा शिक्षाप्रद नाटकों का कुशल संचालक के रूप में कमी महसूस की जाती है। भले वे पंद्रह साल पहले शारीरिक रूप से इस संसार को छोड़ गए हैं लेकिन उनके द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में किए गए कार्यो और समाज को दिए योगदान को याद करते हुए उनकी मौजूदगी का अहसास कराती है। मेरे पिताजी राजेंद्र प्रसाद आज भी जहां दादा जी की शिक्षा को आगे बढ़ाने का काम करते हुए हम बच्चों को प्रेरित कर रहे हैं। वहीं मैं भी बुजुर्गो के आशीर्वाद को प्रगति और आगे बढ़ने की प्रेरणा मानते हुए जीवन में कुछ अच्छे काम करने का प्रयास कर रहा हूं। पूर्वजों को याद रखने के लिए उनके द्वारा दिए गए अच्छे संस्कारों का आभार व्यक्त करने का अवसर श्राद्ध पक्ष के रूप में दिया है। श्राद्ध पक्ष में हमें अपने पूर्वजों का श्राद्ध तर्पण के माध्यम से करना चाहिए। मेरा मानना है कि अपने पितरों को का श्राद्ध करने वाला व्यक्ति उनके आशीर्वाद से सुख संपत्ति, धन धान्य, स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त कर लेता है। श्राद्ध पक्ष जीवन में श्रद्धांजलि का महा पर्व है। दादा जी की याद में गांव के हनुमान मंदिर में एक हाल बनवाकर उन्हें हमेशा अपने आसपास होने का अहसास करा रहे हैं।
-जयदीप पंडित, कंवाली।