बाटम--इस बार बदल सकता है महेंद्रगढ़ का समीकरण
चुनावी परिदृश्य का लोगो लगाएं
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फ्लैग-अहीर बाहुल्य रहने के कारण इस क्षेत्र में हमेशा अहीर मतदाताओं का वर्चस्व रहा है
-अटेली पूर्ण रूप से अहीर बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र बन गई
-भाजपा की नजर भी अहीर मतों के बंटवारे की ओर
हरबिलास बालवान, महेंद्रगढ़ :
महेंद्रगढ़ विधानसभा क्षेत्र अहीर बाहुल्य रहने के कारण इस क्षेत्र में हमेशा अहीर मतदाताओं का वर्चस्व रहा है। प्रत्येक पार्टी का प्रत्याशी अहीर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए विगत चुनाव में जीतोड़ प्रयास करते रहे है।
अहीर मतों के बंटवारे के कारण ही प्रो. राम बिलास शर्मा 1982 से लेकर 1996 तक चार बार लगातार कम मत लेने के बावजूद विधायक बनते रहे है। 2000 के चुनावों में अहीर मतों के धु्रवीकरण होने के कारण राव दान सिंह ने एक तरफा जीत हासिल की थी। इन्हीं मतों के दम पर वे लगातार विधायक बनते आ रहे है। 2008 के परिसीमन के दौरान महेंद्रगढ़ विधान सभा के अहीर बाहुल्य गाव अटेली विधानसभा के साथ लगा दिए जाने के कारण अटेली पूर्ण रूप से अहीर बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र बन गई। महेद्रगढ़ में लोहारू विधानसभा के सतनाली क्षेत्र के राजपूत एवं जाट समुदाय के गाव महेंद्रगढ़ में जुड़ने के कारण अहीर मतों का दबदबा कम हो गया। वे निर्णायक तो हो सकते है लेकिन किसी उम्मीदवार को जिताने की स्थिति में नहीं रहने के कारण राजनेताओं ने भी स्थिति को भांपकर सतनाली क्षेत्र के मतदाताओं पर डोरे डालने आरभ कर दिए। विधायक राव दान सिंह ने भी अपनी एक सोची समझी रणनीति के तहत अपने कार्यकाल में सतनाली क्षेत्र के विकास एवं रोजगार के माध्यम से जोड़ने का कार्य अपने कार्यकाल में करने का प्रयास किया है। उन्हें भी पता है कि अकेले अहीर मतों के सहारे उनकी डगर पार होने वाली नहीं है। इस क्षेत्र के लोगों का भाजपा की ओर रुझान अधिक होने के कारण भाजपा की नजर भी अहीर मतों के बंटवारे की ओर है। इनेलो से राव बहादुर सिंह प्रत्याशी घोषित होने एवं राव दान सिंह की काग्रेस की ओर से दावेदारी पक्की मानने के कारण भाजपा के संभावित उम्मीदवार प्रो. रामबिलास शर्मा भी अहीर मतों को अपने पक्ष में करने की कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते।
विगत का इतिहास रहा है कि जब भी कद्दावर जो अहीर नेता मैदान में आए है बाजी रामबिलास के पक्ष में रही है। वहीं समीकरण अबकी बार बनते नजर आ रहे है। जिससे भाजपा खेमे की बाछे खिली हुई है। भाजपा कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि अब उनका वनवास समाप्त होने का समय आ गया है। इसी उद्देश्य को लेकर वे भाजपा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में पसीना बहा रहे है। असली लड़ाई चुनाव आचार संहिता लगने के बाद सभी पार्टियों के उम्मीदवार मैदान में आने के बाद आरभ होगी। अभी तो केवल कयास ही लगाए जा रहे है।