कड़वे बोल चोट करते हैं पर सच्चे होते हैं : दयानंद सरस्वती
जागरण संवाददाता, पानीपत साधु के बोल कड़वे तो हो सकते हैं परंतु सच्चे होते हैं। प्रत्येक
जागरण संवाददाता, पानीपत
साधु के बोल कड़वे तो हो सकते हैं परंतु सच्चे होते हैं। प्रत्येक अवसर पर मीठे बोल बोलने वाला सच्चा हितैषी नहीं हो सकता। कड़वे बोलों में यदि सही सलाह दी गई है तो उस पर जरूरी मंथन करना चाहिए।
स्वामी दयानंद सरस्वती (मुरथल वाले) ने सेठी चौक के पास स्थित हरि मंदिर में कथा के दौरान यह प्रवचन दिया। कथा के पांचवें दिन उन्होंने एक सेठ के गृह प्रवेश की कहानी सुनायी। सेठ ने साधु से पूछा कि आपको मेरा घर कैसा लगा। साधु ने कहा कि घर में एक मूर्ख की कमी रह गई है। सेठ ने एक मूर्ख को नौकरी पर रखते हुए, उसे छड़ी देकर बड़ा मूर्ख तलाश करने का काम सौंप दिया। मूर्ख नौकर दस वर्ष तक अपने से बड़ा मूर्ख नहीं तलाश सका। सेठ का अंत समय आया तो मूर्ख ने उससे पूछा कि कहां और किस सवारी में बैठकर जा रहे हो। सेठ उत्तर नहीं दे सका तो मूर्ख ने छड़ी वहीं फेंक दी। वह सेठ से बोला दूर जा रहे हो, पर यह नहीं पता कि कहां और कैसे जाओगे, सबसे बड़े मूर्ख तो आप हैं। यह सुनने के बाद सेठ को संत के कड़वे बोल याद आए और मीठे लगने लगे।
वेद कमल ने भजन सुनाकर माहौल को भक्तिमय बना दिया। इस मौके पर संत लाल, किशोर, दर्शन, हरनाम, अमरजीत, उत्तम आहूजा, जगदीश जुनेजा, ईश्वर लाल, धर्मपाल, रमेश चुघ, पवन चुघ, पुरुषोत्तम खुराना, शक्ति सिंह, ओम प्रकाश, राघव चुघ व सुरेन्द्र जुनेजा मौजूद रहे।