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मौत बनकर घूम रहे बंदर-कुत्ते, जिंदगीभर का दर्द दे रहे

जागरण संवाददाता, पानीपत शहर की कालोनियां हो या फिर जिले के गांव। सभी जगह आवारा कुत्तो

By Edited By: Published: Wed, 28 Sep 2016 03:10 AM (IST)Updated: Wed, 28 Sep 2016 03:10 AM (IST)
मौत बनकर घूम रहे बंदर-कुत्ते, जिंदगीभर का दर्द दे रहे

जागरण संवाददाता, पानीपत

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शहर की कालोनियां हो या फिर जिले के गांव। सभी जगह आवारा कुत्तों व बंदरों का आतंक है। पैदल राहगीरों व दोपहिया चालकों को आवारा कुत्ते-बंदर निशाना बनाते हैं। घरों की छतों पर टहलना भी बंदरों ने मुश्किल कर दिया है। आवारा कुत्ते तो चार पहिया वाहनों के पीछे भी दौड़ लगाते हैं। कई बार दुर्घटनाएं भी होती रहीं हैं। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों पर सरसरी नजर डालें तो प्रत्येक माह 100 से अधिक मरीज एंटी रैबीज टीका लगवाने पहुंचते रहे हैं। इनमें सत्तर गांवों के मरीज भी शामिल हैं।

बाहरी कॉलोनियों में ज्यादा आतंक :

पानीपत शहर की बाहरी कॉलोनियों में फैक्ट्रियां होने के कारण श्रमिक तबका ज्यादा रहता है। इन कॉलोनियों में मीट-मछली की दुकानें भी खूब हैं। इनके कारण आवारा कुत्ते सड़कों में मंडराते हैं। राहगीरों व कालोनी के बच्चों के लिए यहां के कुत्ते खतरा बने हुए हैं।

पॉश कालोनियों में भी दहशत :

शहर की पॉश कॉलोनियों में भी आवारा कुत्तों की दहशत है। सेक्टर-12 में शहर विधायक रोहिता रेवड़ी, पानीपत ग्रामीण विधायक महिपाल ढांडा और समालखा विधायक रवींद्र मच्छरौली का निवास है। इसके बावजूद यहां पर आवारा कुत्तों के झुंड सड़कों पर टहलते लोगों को निशाना बनाते रहे हैं। इन कालोनियों में बंदरों का भी खूब आतंक है।

इन कालोनियों में रहें सावधान :

तहसील कैंप, सेक्टर 6 व 7, महावीर कालोनी, विकास नगर, सेक्टर 24-25 के चौराहे, सज्जन चौक, माल गोदाम रोड, सब्जी मण्डी आदि कॉलोनियों में आवारा कुत्तों को ज्यादा आतंक हैं। जिन कालोनियों में धार्मिक स्थल अधिक हैं, वहां बंदर भी खूब हैं। यहां से गुजरने वाले लोगों को अतिरिक्त सावधान रहने की जरूरत है।

जानलेवा भी है रेबीज :

शहरी स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डॉ. अमित ने बताया कि बताया कि जैसे ही कुत्ता, बंदर, भेडि़या, चमगादड़ मनुष्य को काटते हैं। उनकी लार के जरिए रैबीज का वायरस रक्त ग्रंथियों द्वारा शरीर में प्रवेश करने लगता है। यह नर्वस सिस्टम को कमजोर करता है। जानवर के काटने पर साफ पानी में एंटीसेप्टिक डालकर करीब पन्द्रह मिनट तक घाव को धोना चाहिए। इसके बाद नजदीक अस्पताल पहुंचकर एंटी रैबीज का टीका लगवाया चाहिए। इलाज में देरी जानलेवा भी साबित हो सकती है।

रैबीज के लक्षण :

-मरीज का पानी से डरना।

-उजाले से डरना।

-शरीर में बुखार बने रहना।

-मरीज बार-बार बेहोश हो जाता है।

-मरीज का मानसिक संतुलन बिगड़ना।

-स्वभाव अत्यधिक उग्र हो जाना।

लगाए जाते हैं छह इंजेक्शन :

कुत्ता या बंदर काटने पर एंटी रैबीज के अब चौदह नहीं बल्कि छह इंजेक्शन लगाए जाते हैं। प्रथम दिन, तृतीय दिन, सातवें दिन, चौहदवें दिन, इक्कीसवें दिन और नब्बे दिन बाद।

कुत्ते पर भी रखें नजर :

चिकित्सक की मानें तो जिस कुत्ते ने काटा है, उस कुत्ते पर भी पन्द्रह दिन तक निगरानी रखने की जरूरत है। यदि इस दौरान कुत्ता पागल हो जाता है तो एंटी रैबीज का पूरा कोर्स कराना जरूरी है। लापरवाही व देरी घातक हो सकती है।

वर्जन :

सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आलोक जैन ने बताया कि एंटी रैबीज की वायल्स स्टॉक में पर्याप्त हैं। मरीजों ओपीडी के किसी भी समय या फिर इमरजेंसी में पहुंचकर इंजेक्शन लगवा सकता है।

केस नं. 1

करीब एक वर्ष पूर्व नारायणा गांव निवासी एक युवक को बैनीवाल कंप्लैक्स में बंदरों ने घेर लिया था। बंदरों से स्वयं का घिरा देख भय के कारण युवक की मौत हो गई थी।

केस नं. 2

चुलकाना रोड निवासी 32 वर्षीय रीना 11 सितम्बर को किसी काम से छत पर गई थी। अचानक बंदरों ने उस पर हमले का प्रयास किया। बंदरों से डरकर भागने के दौरान वह छत से गिर गई। पीजीआई चंडीगढ़ में उपचार के दौरान रीना ने दम तोड़ दिया था।

केस नं. 3

पड़ाव मुहल्ला निवासी दिव्यांग आशा पत्नी दिनेश मकान की छत पर कपड़ा सुखाने गई थी। चलने से लाचार होने के कारण बंदरों ने उसे दबोच लिया। महिला के शरीर पर घाव के निशान अभी भरे नहीं हैं।


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