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आशा बन गई थ्रोबाल चैंपियन

विजय गाहल्याण, पानीपत : अगर हौसले बुलंद है तो फिर पहाड़ जैसी बड़ी समस्याओं को भी लांघा जा सकता

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Apr 2017 02:13 AM (IST)Updated: Sun, 23 Apr 2017 02:13 AM (IST)
आशा बन गई थ्रोबाल चैंपियन
आशा बन गई थ्रोबाल चैंपियन

विजय गाहल्याण, पानीपत : अगर हौसले बुलंद है तो फिर पहाड़ जैसी बड़ी समस्याओं को भी लांघा जा सकता है। ऐसा ही किया है उग्राखेड़ी गांव के ट्रैक्टर-ट्राली चालक सदाराम की बड़ी बेटी आशा ने। वह राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर हैंडबॉल में 50 पदक जीत चुकी है।

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इस कामयाबी तक पहुंचने के लिए कहानी भी दिलचस्प है। आशा को पीटी ऊषा की तरह धावक बनने का जुनून था लेकिन ट्रैक पर 100 मीटर दौड़ते ही हांफ जाती थी। उसे लगा कि वह धावक नहीं बन पाएगी और ट्रैक से किनारा कर लिया। एक दिन उसने गांव के स्टेडियम में लड़कियों को हैंडबॉल खेलते देखा और इस खेल को अपना लिया। इसके बाद आशा न सिर्फ अपनी टीम की सबसे तेज दौड़ने वाली खिलाड़ी बनीं, बल्कि एक बार उसके हाथ में बॉल आ जाती है तो वह उसे नेट में डाल कर गोल करके ही लौटती है। आर्य पीजी कॉलेज की बीए फाइनल की छात्रा आशा बताती हैं कि उसकी मां गीता बीमार है। छोटी बहन व भाई है, इसलिए घर का चूल्हा-चौकी करने की जिम्मेदारी उसी की है। वह घर का काम निपटाकर सुबह-शाम दो-दो घंटे मैदान में हैंडबॉल का अभ्यास करती है। वह अपने परिवार व रिश्तेदारी में इकलौती ऐसी खिलाड़ी है जो राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीती है।

स्कॉलरशिप से होता है खुराक का जुगाड़ : आशा के घर की आर्थिक स्थिति कमजोर है। पिता की कमाई से घर का गुजारा मुश्किल से चलता है, इसलिए खेल पोशाक व खुराक का प्रबंध करना मुश्किल है। राज्य व राष्ट्रीय स्तर की हैंडबॉल प्रतियोगिता जीतने पर सरकार से जो पुरस्कार की राशि मिलती है, उसी से आशा खुराक की व्यवस्था करती है।

आशा की उपलब्धि

-सीनियर नेशनल हैंडबॉल प्रतियोगिता में दो स्वर्ण पदक।

-ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी हैंडबॉल चैंपियनशिप में रजत व कांस्य पदक।

-जूनियर नेशनल हैंडबॉल चैंपियनशिप में दो स्वर्ण पदक।

-सब जूनियर हैंडबॉल चैंपियनशिप में दो स्वर्ण पदक।

स्पीड से विरोधी खिलाड़ियों को मात देती हैं : उग्राखेड़ी के हैंडबॉल के कोच नवनीत मलिक ने बताया कि सात साल पहले आशा सामान्य खिलाड़ी थी। वह तेज नहीं दौड़ पाती थी। आशा ने कड़ा अभ्यास किया और अब वह विरोधी खिलाड़ियों की पकड़ में नहीं आ पाती है। इसी खूबी की वजह से वह प्रदेश की टीम में जगह बनाने में कामयाब रहती है।


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