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तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव को भी प्रभावित करेंगे हरियाणा के जाट

हरियाणा के जाट आंदोलन का तीन राज्‍यों पंजाब, उत्‍तर प्रदेश और उत्‍तराखंड के विधानसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है। हरियाणा के जाट संगठनों ने यहां भी अपनी मौजूदगी का अहसास कराएंगे।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 23 Jan 2017 10:07 AM (IST)Updated: Mon, 23 Jan 2017 10:27 AM (IST)
तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव को भी प्रभावित करेंगे  हरियाणा के जाट
तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव को भी प्रभावित करेंगे हरियाणा के जाट

चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। बामुश्किल पटरी पर आई हरियाणा की शांति एक बार फिर दांव पर है। जाटों के प्रभाव वाले पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों के चुनाव से ठीक पहले हरियाणा में जिस तरह आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जा रही है, उसे देखकर राजनीतिक दलों की बेचैनी बढ़ी हुई है। तीनों राज्यों के चुनाव नतीजे जाट राजनीति का भविष्य तय करने वाले साबित हो सकते हैैं।

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जाट बहुल तीन राज्यों के चुनाव का केंद्र बिंदु बना हरियाणा

जाट संगठनों ने यमुना नदी के उस पार उत्तर प्रदेश में चुनावी खेल को बनाने बिगाडऩे की बाजी शुरू कर दी है और इस पार इसकी व्यूह रचना हो रही है। इस बार पड़ोसी पंजाब भी इस मुहिम का हिस्सा बना है। उत्तराखंड में भी जाटों की तादाद काफी है। ऐसे में चारों सूबों के जाट समुदाय को साथ लेकर चलने का दम भरने वाली अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैैं।

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समिति उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब के चुनावों में भाजपा को नुकसान पहुंचाने के एजेंडे के साथ मैदान में है तो हरियाणा की भाजपा सरकार इस एजेंडे को कामयाब नहीं होने देने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई पड़ रही है। पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह अखिल भारतीय जाट महासभा के प्रधान हैैं। हरियाणा में जाट पहले से दोफाड़ हैैं। उत्तर प्रदेश में जाट किसी एक पार्टी के साथ बंधा हुआ नहीं है। ऐसे में चुनाव नतीजे जो भी होंगे, उनका असर जाटों की भविष्य की राजनीति पर पड़ता नजर आएगा।

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जाट आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष यशपाल मलिक का दावा है कि तीनों राज्यों में हर उस दल या आजाद उम्मीदवार को समर्थन दिया जाएगा, जो भाजपा के खिलाफ होगा। दूसरी तरफ जाट राजनीति पर निगाह रखने वालों का कहना है कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा व उत्तराखंड के जाट और पंजाब के जट्ट समुदाय का सोचने का बुनियादी तरीका पूरी तरह जुदा है। जब कभी किसी सूबे में जाट राजनीति मुखर हुई तो कुछ जिलों को छोड़कर दूसरे सूबों ने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। ऐसे में राजनीतिक दलों के साथ साथ जाट संगठनों के लिए भी यह अग्नि परीक्षा का दौर है।


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