भाजपा में भड़क रही जाट और गैरजाट की चिंगारी
जाट आरक्षण से पल्ला झाड़ चुकी भाजपा के लिए उसकी ही पार्टी के सांसद राजकुमार सैनी ने दिक्कतें पैदा कर दी हैं। गैर जाट मतों के सहारे चुनाव जीती भाजपा ने पहले खुद ही पिछड़ा वर्ग के नेता सैनी को हवा दी। अब पानी सिर से गुजरने को तैयार है।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। जाट आरक्षण से पल्ला झाड़ चुकी भाजपा के लिए उसकी ही पार्टी के सांसद राजकुमार सैनी ने दिक्कतें पैदा कर दी हैं। गैर जाट मतों के सहारे चुनाव जीती भाजपा ने पहले खुद ही पिछड़ा वर्ग के नेता सैनी को हवा दी। अब पानी सिर से गुजरने को तैयार है तो भाजपा की परेशानी एकाएक बढ़ गई है।
भाजपा के जिन जाट नेताओं ने खुद को पार्टी अनुशासन की डोर में बांधते हुए आरक्षण पर चुप्पी साध ली थी, अब उन्होंने हाईकमान को खुलकर कह दिया कि अगर सैनी पर नकेल नहीं कसी गई तो उनके लिए मुश्किल हो जाएगा। ऐसी स्थिति में उनके लिए न तो चुप बैठना मुमकिन होगा और न ही वे अपने समाज को कोई जवाब देने की स्थिति में रहेंगे।
जाट नेताओं की कशमकश और गैर जाट सांसद की खुलकर लड़ी जा रही इस लड़ाई से पार्टी के भीतर टकराव के हालात पैदा हो गए हैं। भाजपा आरंभ में जाट आरक्षण की विरोधी नहीं थी, लेकिन हरियाणा में उसकी जीत का आधार गैर जाट मतदाता ही रहे। इन सबके बीच भाजपा को सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को आधार बनाने का मौका मिल गया, जिसमें अदालत ने जाट आरक्षण को रद कर दिया था।
आरंभ में जाट आरक्षण की पैरवी के लिए बैठकों के दौर भी चले, लेकिन जब अहसास हुआ कि उसके प्रयास सिरे चढऩे वाले नहीं हैं तो भाजपा ने जाट आरक्षण की लड़ाई से यह कहते हुए खुद को पीछे कर लिया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आगे वह मजबूर है।
हरियाणा दौरे पर आए भाजपा प्रभारी डा. अनिल जैन दो बार जाट आरक्षण पर अपनी पार्टी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बंधा बताकर साफ कर चुके हैं कि अब यह मुद्दा प्राथमिकता पर नहीं है। यही वजह रही कि प्रदेश भाजपा के जाट नेताओं ने खुद को इसी पार्टी लाइन पर बांधकर चुप्पी साध ली। बात यहीं तक रहती तो बिगड़ती नहीं। कुरुक्षेत्र के सांसद राजकुमार सैनी ने जाटों पर हमले जारी रखते हुए दिल्ली में पिछड़ा वर्ग की राज्य स्तरीय रैली तक का ऐलान कर दिया। वह जिस जिले में जा रहे, वहीं जाटों को भला-बुरा कह रहे हैं।
इससे भाजपा के उन जाट नेताओं से जवाबतलबी शुरू हो गई, जो अभी तक चुप्पी साधे हुए थे। पार्टी प्रभारी डा. अनिल जैन और प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला को सार्वजनिक रूप से कहना पड़ा कि सैनी के बयानों और गतिविधियों का संज्ञान लिया जाएगा। लेकिन सैनी पर इसका कोई खास फर्क पड़ा है, ऐसा नजर नहीं आ रहा।
केंद्रीय मंत्री संजीव बाल्याण की नसीहतों का भी उन पर कोई फर्क नहीं है। वह पार्टी की परवाह किए बिना अपनी जाट विरोधी मुहिम को जारी रखे हुए हैं, जबकि पार्टी का एक तबका उनकी मुहिम को हाईकमान के मूक समर्थन की रणनीति से जोड़कर देख रहा है।