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युवा पीढ़ी रही नदारद, बुजुर्गो ने बढ़ाया कलाकारों का उत्साह

जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : बेशक हरियाणा में सांग व रागनी में संस्कृति की झलक दिखाई दे

By Edited By: Published: Tue, 25 Oct 2016 08:10 PM (IST)Updated: Tue, 25 Oct 2016 08:10 PM (IST)
युवा पीढ़ी रही नदारद, बुजुर्गो ने बढ़ाया कलाकारों का उत्साह

जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : बेशक हरियाणा में सांग व रागनी में संस्कृति की झलक दिखाई देती हो, लेकिन युवा पीढ़ी संस्कृति के इस आईने को देखने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। केवल बुजुर्ग ही रागनी व सांग को देखने के लिए उमड़ रहे हैं। उम्र 70 से पार हो चुकी है, लेकिन सांग व रागनी सुनने के प्रति उत्साह अभी कम नहीं हुआ है। ओपन-एयर-थियेटर में रागनी प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। युवाओं ने रागनी की प्रस्तुति जरूर दी, लेकिन वहां उनकी हौसला अफजाई करने के लिए केवल बुजुर्ग ही बैठे थे। नाममात्र के युवा ही थियेटर में दिखाई दिए।

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युवाओं ने संस्कृति व सभ्यता से जुड़ी रागनियों की प्रस्तुतियां दी, लेकिन युवा पीढ़ी के पल्ले कुछ नहीं पड़ा और वे सीट छोड़कर कर निकल गए। अलबत्ता युवा पीढ़ी की उपस्थिति नाममात्र के होने से कलाकारों का उत्साह कम नहीं हुआ है। बुजुर्गों ने जवानी के रंग बिखरते हुए प्रस्तुतियों पर न केवल तालियां बजाई बल्कि सीटियां बजाकर कलाकारों का खूब हौसला बढ़ाया।

कलाकारों ने हरियाणवी संस्कृति को बड़े ही सुरले अंदाज में प्रस्तुत किया। प्रेरणा एवं उत्साह से ओत-प्रोत रागनियों को सुनकर बुजुर्गों ने ठुमके लगाने से भी गुरजे नहीं किया। छात्राओं ने भी रागनी की प्रस्तुतियां दी, लेकिन ओपन-एयर-थियेटर में इक्का-दुक्का छात्रा ही दिखाई दी। युवा पीढ़ी का संस्कृति के प्रति अलगाव देखकर कलाकार थोड़े ¨चतित भी दिखाई दिए, परंतु बुजुर्गों की तालियों की गड़गड़हाट से कलाकारों ने दोगुने जोश के साथ प्रस्तुति दी।

दोपहर को खुले मंच पर सांग को देखने के लिए बुजुर्गों की ऐसी भीड़ उमड़ी कि सांग शुरू होने से पहले बुजुर्ग मंच के सामने एकत्रित होने शुरू हो गए थे। हालांकि मंच के नजदीक ढोल-नगाड़ों की थाप पर युवाओं खूब झूम रहे थे। नगाड़ों की थाप पर युवाओं ने खूब ठुमके लगाए, इनमें छात्राएं भी पीछे नहीं रही।

बहरहाल ओपन-एयर-थियेटर एवं खुले मंच पर बुजुर्गों की उपस्थिति एवं युवाओं की नदारदगी को देखकर

यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि युवा पीढ़ी संस्कृति एवं सभ्यता से जुड़ने में तनिक भी गंभीर नहीं है। कलाकारों की टीस भी दर्शा रही है कि जब तक युवा पीढ़ी संस्कृति के साथ नहीं जुड़ेगी तब तक उनकी प्रस्तुतियों की फनकार फीकी रही रहेगी।


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