कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के मंच पर मंथन महाभारत
बात-बेबाक ------ सतीश चंद्र श्रीवास्तव, कुरुक्षेत्र : गीता ज्ञान पर मनन - चिंतन के साथ कुरुक्षेत्र
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सतीश चंद्र श्रीवास्तव, कुरुक्षेत्र :
गीता ज्ञान पर मनन - चिंतन के साथ कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का मंच मंगलवार को मंथन महाभारत का साक्षी भी बन गया। उद्घाटन के मुख्य अतिथि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी क्या नहीं आए, मर्यादाएं भी बदल गईं। कुर्सियों की संख्या बढ़ गई और कुलपति कसमसा कर रह गए। स्थानीय विधायक को अचानक मंच पर स्थान मिल गया और केंद्र की सरकार में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सांसद श्रोताओं की पहली पंक्ति तक ही पहुंच पाए।
अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी में देश - विदेश के विद्वान अगले तीन दिनों तक गीता ज्ञान पर मंथन करेंगे। राष्ट्रपति का प्रतिनिधित्व करते हुए उद्घाटन सत्र में राज्यपाल कप्तान सिंह ने 21वीं शताब्दी को भारत के पुनर्जागरण की शताब्दी बताया। साथ ही दावा किया कि देश को पहली बार ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जिसका 'हाई कमान' जनता है। मुख्यमंत्री ने भी दो जिलों के खुले में शौच मुक्त होने के दावे ठोक प्रदेश की प्रतिष्ठा को मजबूती देने की कोशिश की।
यद्यपि ब्रह्म सरोवर में हवन कार्यक्रम से लेकर गीता गोष्ठी तक स्थानीय सांसद राजकुमार सैनी के साथ भाजपा नेताओं और मंत्रियों का व्यवहार कुछ और ही संदेश दे रहा था। अपनी उपस्थिति में न वह सहज थे और न अन्य। थोड़ी नजदीकी, थोड़ी सी दूरी। ऐसे जैसे परायों में अपने या अपनों में पराये। 35 बिरादरी और गैर जाट राजनीति की धुरी बनने की प्रक्रिया का हिस्सा या परिणाम। मर्मज्ञ आकलन करने लगे, अगले चुनाव में शायद ही उन्हें कमल का फूल हाथ लगे। कुछ का मत था, इसीलिए राजकुमार ने अलग संगठन की प्रत्यंचा चढ़ा ली है।
एक और 'हाई कमान' प्रभाव कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. कैलाश चंद्र शर्मा पर जरूर दिखा। वनस्पति विज्ञानी पहली बार तो राजनीति विज्ञानी का आदेश टाल गए, दूसरी बार अपने लिए अलग कुर्सी की व्यवस्था करनी ही पड़ गई। प्रदेश के शिक्षा और पर्यटन मंत्री प्रो. रामबिलास की इच्छानुसार वर्तमान पार्टीगत सत्ता प्रतिष्ठान के 'हाई कमान' को मंच पर लाने के लिए खुद नीचे जाना पड़ा। राष्ट्रपति के साथ मंच पर शायद ही यह उपस्थिति दर्ज हो पाती। इसी के साथ यह भी मंथन शुरू हो गया कि बिना ढांचागत सुविधाओं का विकास किए खुले में शौच का लक्ष्य किस तरह हासिल कर लिया गया? बातें सड़कों के गढ्डे, विकास में अड़ंगे और अनिर्णय से अनिश्चय तक के मंथन की तरफ बढ़ गईं। घोषणाओं और जमीनी हकीकत के बीच खाई चर्चा के साथ चौड़ी होती जा रही थी। सत्ता में महत्ता और कार्यकर्ता मंच ने नीचे के मंथन का हिस्सा रहे। जो दो नंबर पर थे, वह क्यों फिसल गए। तीन नंबर कैसे दो नंबर हो गया। गीता का आत्ममंथन मंच से हटते ही राजनीतिक और वर्तमान परिदृश्य के मंथन महाभारत में फंस गया। नोटबंदी के प्रतिफल पर विश्लेषण के बिना इसपर विराम भी नहीं लग सकता था।