भदोई के अकलीम ने हुनर से दिव्यांगता को हराया
विनीश गौड़, कुरुक्षेत्र ¨जदगी की असली उड़ान बाकी है, ¨जदगी के कई इम्तिहान बाकी है, अभी
विनीश गौड़, कुरुक्षेत्र
¨जदगी की असली उड़ान बाकी है, ¨जदगी के कई इम्तिहान बाकी है, अभी तो नापी है मुट्ठी भर जमीन हमने, अभी तो सारा आसमान बाकी है। उत्तर प्रदेश के भदोई का अकलीम खान यही हौसला अपने मन में लिए हुए निकल पड़े हैं। दिव्यांगता भी उसका हौसला नहीं तोड़ पाई। होश संभालते ही जो सबसे पहली कला सीखने का जज्बा उनमें पैदा हुआ वह था कालीन बनाने का, यही जज्बा आज उन्हें अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव तक ले आया है। देश विदेश के लोग उनकी कला के मुरीद हैं।
भारत सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ टेक्सटाइल ने भी उनके जज्बे को सराहा और सरकारी मेलों में उन्हें अपना हुनर दिखाने का मौका दिया। बड़े भाई नदीम अहमद की सरपरस्ती में उन्होंने अपनी कला को इस कदर मांझा कि आज मशीन से बने कालीन भी उनके हाथ से बने कालीन के सामने टिक नहीं पाते।
अपने भाई नदीम अहमद के साथ अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव में हैंडमेड कालीन लेकर आए अकलीम बताते हैं कि बचपन में ही बुखार के दौरान एक चिकित्सक की लापरवाही ने उन्हें 80 प्रतिशत दिव्यांग बना दिया। इसके बाद होश संभाला तो दिव्यांगता उनके हर काम में आड़े आती गई, लेकिन इसके साथ ही उनमें कहीं कोने में हौसला भी बढ़ता गया। कुछ लोगों ने उन्हें हर कदम पर प्रेरित किया इसी का नतीजा है कि आज वे कालीन बनाने के क्षेत्र में अपने आपको स्थापित कर पाए हैं। अकलीम आज एक हाथ से ऐसा कालीन बना देते हैं जो मशीनों से बने कालीन को भी मात दे दें।
यही जज्बा है जो आज अकलीम और उनका भाई नदीम अहमद 40 परिवारों की रोजी रोटी का सहारा बन रहे हैं। भारत सरकार उन्हें हर सरकारी मेलों में अपना हुनर दिखाने का मौका देती है। वे अब तक प्रगति मैदान, सूरजकुंड और तमाम बड़े मेलों में अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित कर चुके हैं।
अकलीम के मुताबिक गुलतरास वॉश कालीन लोगों की सबसे पहली पसंद बन रही है। पिछले कई वर्षो से धर्मनगरी के गीता जयंती महोत्सव में हैंडमेड कालीन लेकर आते हैं, जिन्हें लोगों की ओर से काफी सराहा जाता है, हालांकि इस बार नोटबंदी से उनकी कला के मुरीद कम ही मिल रहे हैं।