सिर्फ मंच तक सिमट कर रह गई हरियाणवी संस्कृति
रणबीर धानियां, धनौरी (कैथल) : आधुनिकता की चकाचौंध में सांस्कृतिक कार्यक्रमों तक सिमटी स
रणबीर धानियां, धनौरी (कैथल) : आधुनिकता की चकाचौंध में सांस्कृतिक कार्यक्रमों तक सिमटी संस्कृति को सुदृढ़ बनाने की बीड़ा प्रख्यात हरियाणवीं लोकगायक विक्की फिरोजपरिया की टीम ने उठाया है। हरियाणवीं कल्चर में कई वर्षों से रंगे फिरोजपुरिया, रोक्की मेहरा और हास्य कलाकार पप्पू लांबा को इस बात का भारी मलाल है कि जिस संस्कृति की गूंज कभी विश्वभर में सुनाई पड़ती थी, आज वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों के शामियानों के अंदर घुटकर रह गई है। न लोगों को जगाने वाले सांग रहे और न तनाव को दूर करने वाले चुटकुले। किस्से कहानियों की बाते तो बीते जमाने की बात बनकर रह गई। इस प्रकार के परिदृश्य में यह साफ नजर आ रहा है कि हरियाणवीं संस्कृति सिर्फ और सिर्फ मंच तक सिमटकर रह गई है। तेजी से पहचान खोती सभ्यता का भारी मलाल लोक गायकों को है। इनका कहना है कि पुराने समय में दिनभर की थकान को दूर करने के लिए चौपाल, चबूतरों और सार्वजनिक स्थानों पर सांझ ढलते ही सुरीली रागिनी और अन्य प्रस्तुति गूंज उठती थी। आज मनोरंजन की दुनिया टेलीविजन, कंप्यूटर, लैपटाप और मोबाइलों में गुम होकर रह गई है।
कद छोटा और सोच बुलंद
हास्य कलाकार पप्पू लांबा का कद महज 3 फीट 10 इंच है। इस खुशमिजाज एवं ¨जदादिल कलाकार को कहीं भी अपने छोटे कद से शिकायत नहीं। इनका कहना है कि वे बचपन से ही इस सच्चाई को स्वीकार कर चुके हैं। उनका मकसद हरियाणवीं संस्कृति का प्रचार करते हुए आम जन को तनावमुक्त करना है। व्यक्ति का व्यक्तित्व कद से ऊंचा नहीं होता बल्कि बुलंद सोच उसे जनहित के प्रति प्रेरित करती है।
सोच बदलने की जरूरत
कलाकार रोक्की मेहरा का कहना है कि वे जनजागृति के मकसद से मंचन करते हैं। कला चाहने वाले उन्हें आंखों पर बैठाते हैं, लेकिन संकीर्ण विचारधारा के लोग इस भूमिका को अलग नजरिये से देखते हैं। इससे जाहिर होता है कि महिलाओं को आज भी खुलकर अपनी बात रखने का अधिकार नहीं है। सोच बदलो निसंदेह समाज बदलेगा।