गोधन की दुर्दशा पर जताई चिंता
संवाद सहयोगी, गुहला-चीका हिंदू धर्म में माता का दर्जा पाने वाली गोमाता आज बदहाली का जीवन जीने को
संवाद सहयोगी, गुहला-चीका
हिंदू धर्म में माता का दर्जा पाने वाली गोमाता आज बदहाली का जीवन जीने को मजबूर है। उक्त शब्द संत जमनापुरी महाराज ने गोमाता की दिन प्रतिदिन हो रही दुर्दशा पर चिंता व्यक्त करते हुए पत्रकारों से कहे।
छवि रामदास ने बताया कि आज के समय में अनेक गोमाताएं लावारिश पशुओं की तरह शहरों की सड़कों पर घुम रही हैं लेकिन प्रशासन व सरकार उनकी सुरक्षा को लेकर पूरी तरह से सजग नहीं है। गोशाला संचालक भी इस समस्या को नजरअंदाज करते हुए अपनी आखें मूंद लेते है। ऐसे में गऊ माता आम आदमी की सहानूभूति के लिए भी तरस गई है।
विदेशी दवाएं कर रही प्रभावित
संत ने बताया कि आज के समय मे न केवल लावारिस घूम रही गऊओं की स्थिति ऐसी है अपितु घर में पालतू गऊओं को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि पहले की देसी गाय तो एक दिन में लगभग 5 व 6 लीटर के करीब दूध दे दिया करती थीं व पूरे के पूरे परिवार को दूध,मिठाई व पनीर से लबरेज कर देती थीं। लेकिन आज की गाय पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं दे पाती है। इसका कारण है यह है कि मानव दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए गऊ पर विदेशी दवाओं का इस्तेमाल करता है ताकि वह अधिक मात्रा में दूध हासिल कर मुनाफा कमा सके। इन दवाओं के कारण गऊ माता के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा है। दूध की मात्रा पहले की तुलना में कम हो गई है।
संत ने प्रशासनिक अधिकारियों व सरकार से गुहार लगाई है कि वे गऊ माता की सुरक्षा को लेकर नई नई नीतिया बनाएं व उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली दवाओं की बिक्री पर भी रोक लगाएं। तभी जाकर गऊ माता के स्वास्थ्य की रक्षा की जा सकती है।