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गीता की प्रेरणाओं से मन को करें स्थिर : ज्ञानानंद

By Edited By: Published: Sun, 13 Apr 2014 07:24 PM (IST)Updated: Sun, 13 Apr 2014 07:24 PM (IST)
गीता की प्रेरणाओं से मन को करें स्थिर : ज्ञानानंद

जागरण संवाददाता, कैथल:

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महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने कहा कि हर व्यक्ति की इच्छाएं और कामनाएं अलग होती है। मनुष्य मानसिक शाति न कर अपने इच्छाओं को पूरा करने में लगा रहता है, जिससे उसका मन हमेशा अशात रहता है।

ज्ञानानंद हुडा सेक्टर-19 के कम्युनिटी सेंटर में चल रहे श्री गीता ज्ञान महोत्सव को संबोधित कर रहे थे। दूसरे दिन का शुभारभ समाजसेवी कैलाश भगत, पारस मित्तल, डॉ. आर.डी. चावला, जयभगवान गर्ग व मागेराम खुरानिया ने भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्जवलित करके किया। श्री कृष्ण कृपा सेवा समिति द्वारा आयोजित श्री गीता ज्ञान महोत्सव में ज्ञानानंद ने कहा कि शाति और अशाति विषय मन का है, शरीर का नहीं। गीता में कहा भी गया है कि अर्जुन तु कर्म कर, फल की इच्छा न कर। इसी तरह भगवान भक्तों को कहते है कि अगर तू अपने मन के भाव को मुझमें लगाएगा तो तेरा मन भी स्थिर रहेगा। तभी व्यक्ति का मन अस्थिर न होकर परमात्मा में लगेगा। महाराज जी ने श्रद्धालुओं को बताया कि व्यक्ति ने यह कभी नहीं सोचा कि मन है क्या चीज। उन्होंने बताया कि मन केवल विचार है। अगर व्यक्ति विचार करेगा कि प्रभु तेरी कृपा है। जो उसके पास है अगर उसी में संतुष्ट रहेगा तो उसका मन भी शात और स्थिर रहेगा। उन्होंने श्रद्धालुओं को सूरदास का उदाहरण देते हुए बताया कि सूरदास ने कभी आखें नहीं खोली, लेकिन उन्होने अपने ज्ञान से लाखों लोगों की आखों को खोल दिया। उनमें प्रेम, विश्वास, भाव और निष्ठा पैदा की। उन्होंने बताया कि जब सूरदास कहीं अटक जाते थे तो भगवान स्वयं उनका पथ प्रदर्शक बनते थे। इसी तरह विद्वानों में अष्टावक्र का नाम लिया जाता है। उन्होंने श्रद्धालुओ को गीता की प्रेरणाओं से मन को स्थिर करने को कहा। जिसका मन स्थिर है, वहीं सच्चा धनवान है। गीता से व्यक्ति का सकारात्मक चिंतन होता है। गीता एक सोच बदलने का ग्रंथ है। महाराज जी ने बताया कि व्यक्ति को जितना मिला है, वह उसमें संतुष्ट न रहकर और अधिक पाने की इच्छा में लगा रहता है, ऐसे में व्यक्ति को प्रभु में ध्यान लगाकर उसमें ही संतुष्ट रहना चाहिए, जितना उसे मिला, उसे ही प्रभु की कृपा माननी चाहिए। कर्तव्य से जी न चुराकर काम में लगे रहना चाहिए। मन को भाव में लगाना चाहिए। शरीर से कर्म योग, मन से भाव योग व बुद्धि से ज्ञान योग करेगे तो निश्चित रूप से अच्छा फल मिलेगा और जीवन को अच्छे ढग से व्यतीत किया जा सकता है। उज्जवला शर्मा ने महाराज जी का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने आए हुए हजारों लोगों को श्री गीता ज्ञान की प्रेरणा दी। महोत्सव का सफल मंच संचालन समाजसेवी महेद्र खन्ना ने किया। इस अवसर पर श्री कृष्ण कृपा सेवा समिति के प्रधान संजय गर्ग, महासचिव सुषम कपूर, शरद बंसल, अश्विनी खुराना, प्रदर्शन परुथी, सुरेद्र कत्याल, राम अरोड़ा, सुभाष गोघ, जोगेंद्र गोघ, सतीश राजपाल, सुजीत कपूर, रामलाल पप्पू, संजय पाई वाले, कृष्ण नंदा, प्रवीण चावला, अजय भंजाना, राजेंद्र, सुनील कपूर, सुनील खुराना, जगदीश कालड़ा, रामलाल कालड़ा आदि उपस्थित थे।


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